पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३९१

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१४.७० चमइया जगना--कि० स० [स० चर्वण] १. दांतों से कुचलना । जुगालना। ... जलपक्षी जो गोताखोर होता है। उ०—कौडेनी, चम्मा.

महा-चबा चबाकर बातें करना=स्वर बना बनाकर एक एक इत्यादि (वारि विहंग)। -प्रेमघन॰, भाग २, पृ०.२०।

1 . शब्द धीरे धीरे बोलना। मार मारकर बातें करना । च चन्मू-वि० [हिं० चब्बू ] दे० 'चन्बू'। ... ......को दाना एक ही काम को बार बार करना । किए हुए चम्भो संज्ञा पुं० [हिं० चपकना ] दूसरे का दिया. हुप्रा गोता। ., काम को फिर फिर करना । पिष्टपेपरण करना । उ० बरस दुब्बी । डुबकी। ...... पासक लो विपय ही में वास कियो तऊ ना उदास भये पवे क्रि० प्र०--देना। ... को चबाइए -प्रिया० (शब्द०)। ..... चभक'–संझा [अनु॰] पानी में किसी वस्तु के चम की ध्वनि करते २. दौत से काटना। हुए डूबने का शब्द । पवारा--मंशा पं० [हिं० चौवारा घर के कपर का बंगला! निकोष विभक्ति के साथ ही कि० वि० वत् पाता है। चौबारा । 30--उज्वल प्रखंड खंड सातएं महल महामंडल चमकर- संख्या की देश०] काटने या डंक मारने की क्रिया। वारो चद मंडल की चोही -देव (जन्द०)।.. . चभकना-क्रि० स० [अनुच.] १. चबा चबाकर खाना। २. चाव ई-संवा पुं० [हि: चवाव दे० 'चवाव' । तृप्तिपूर्वक खाना । ३. अधिक खाना। चवीणा-संवा पुं० [हि चबेना] १०. 'चवेना' । उ०-झूठ सुख संयो.कि-डालन । लेना। 1. को सुख कहें मानत है मन मोद। खलक वीरगां काल का" . चभका-संज्ञा स्त्री० [हिं० चनक ] 'चमक' उ०-वायु धातु कुछ मुत्र में कुछ गोद --कदीर ग्रं०, पृ०७१। रूप त्वचा में प्राप्त होने से त्वचा काली कर्कश हो जाय और तरा-संवा ० [मं० चत्वाल, हिं० चौतरा] १. बैठने के लिये .. चौरस बनाई.हईचो उसमें चभका चले तथा तन जाय !-माधव०, पृ० १३५। जगह । चौतरा।।२. कोतवाली। ... बड़ा बाना । चभच्चा-संघा पुं० [हिं०] दे० 'चहबच्चा' । उ०--विधवा सहमा-: नवना- पुं० [हिं० चबाना ] चबाकर खाने के लिये भूना इन ने वही उत्साह से चभच्चा खुदवाया था ।-नई०, पृ०३ । हमा अनाज! चर्वण । भूजा । . . ... चट चभड- संथा बी० [अनु०] १. वह शब्द जो किसी वस्तु का कि०प्र०—करना --होना।। . खाते समय मुह के हिलने आदि से होता है २. कुत्ते, विल्ली | गनी--संवा ही हिचवाना] १. तली दाल और मिठाई आदि ग्रादि के जीभ में पानी पीने का शब्द ।। |... जो बरातियों को जलपान के लिये दी जाती है। २. जलपान चभना-क्रि०अ० [मं चर्वण, हिं. चावना] खाया जाना। का सामान । ३. जलपान का मूल्य । ४. हवा सूखा खाना । चना--क्रि० अ० [हिं० चपना] कुचल जाना । कुवला जाना। भरा-संशा पुं॰ [] [चर्पट, हि० चबरा] थप्पड़ । झापड़ । रौंदा जाना । दरेरा खाना। उ०--रहयो ढीठ ढारसु गर्दै ..चांटा। उ०-~-सिर पर काल वसतु निसु बासर मारत तुरत. ससहरि गयो न सूरु । मुरचौ न मनु मुरबानु चभि, भौ चूरनु ... बेरा ।--भीखा००, पृ०४। . . चपि चूस । विहारी (शब्द०)। . बल-वि० [सं० चतुर्वल प्रा. उवेल्ला चारो ओर । चतुर्दिक। चभाना-क्रि० [हिं० चमना का प्र० रूप] खिलाना। भोजन ... 30-कपोल लोल हल्लते । चबैल मुंड मल्लते । -पृ० स० कराना । - १७१६२। चभोका-संशा पुं॰ [देश॰] बेवकूफ । मूर्ख । गावदी। नवना -संज्ञा पुं० [सं० चर्वण दे० 'चबैना' । उ०--सबै चना "यो०-चनोकनंदन अत्यंत मूर्ख । निहायत वेवकूफ । काल का पलट उन्हें नकाल । तीन लोक से जुदा है उन संतन मोकना-सि. हि चमकी ] १. हुवाना। गोता देना। की चाल-पलटू, भाग १, पृ०१३। । २. भिगोना । तर करना। भवना- मंवा ली हि चबेनी दे० चबेनी'। उ०-चना । चबैनी गंगजल जो पुरवं करतार । काशी कबहुं न छाडिए. - चभोरना--क्रि० स० [हिं० चुभकी] १. डुबोना। गोता देना। २. विश्वनाथ दरवार । प्राप्लावित करना । तर करना। भिगोना। उ०--(क) घेवर प्रति धिरत चोरे । स खांड़ उपर तर बोरे।--सर सपा पु० [सं० चतप्पाद, हिं० चौवा दे० चौवा' (शब्द०)। (ख) मीठे प्रति कोमल हैं. नीके। ताते तुरत बहि० चबाना] बहुत चबानेवाला । बहुत खानेवाला -संघाचन गोता मारमा पानी ले . चमोरे घी के 1-सूर (शब्द॰) । बाला' ध्वनि । उ०-याबी चिडियाएँ मछलियों पर चर्मक -संज्ञा पुं० [हिं० चमक] रे० 'चमक। , भाना साध, चन्म से पस पानी में से शिकार ले बली। चर्मकना -क्रि० अ० [हि०. चमकना] दे० 'चमकना' । उ०-वर __ --प्रेमघन॰, भा०१.१०२०1 . कृपान तरवारि चमंकहि जनु दहदिसि दामिनी दमंकहि । .' . मानस, ६८६ । ' इसका प्रयोग कि० वि० हप में से के साथ ही मिलता __ है अत: लिंग गौण हो जाता है। चमइया-संवा पुं० [हिं०] दे॰ 'चमार' 1 उ० -हमसे दीन दयाल न "५० दश०] १. इनकी। दुड़की । गोता ! २. एक: तुमसे, चरन सरन रैदास चमइया ।-रे० बानी, पृ०६५। ४५ . चभात चन्दा-संशा पुं० [सं० चतुप्पाद, ह° विशेष--इसका प्रयोग क्रि० वि० . चन्भा--संवा ० दिश०] १.डबका