पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३९३

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१४७२ अभड़ा mein . बनसोचा मी० [हिं० चमकना] १. चमकने मटकनेवाली स्थी। उचत और निर्लज्ज स्त्री। १. कुलटा स्त्री । व्यभिचारिणी 1. स्त्री। ३. बल्दी चिढ़ जानेवाली स्त्री । झल्लानेवाली स्त्री। ... भाड़ालू स्त्री। समाद-संवा पुं० [सं०चर्मचटका. पु० चमचिचड़ी, हिं० चमगिदड़ी] एक उड़नेवाला बड़ा जंत जिसके चारों पर परदार होते हैं। विशेष---यह जमीन पर अपने पैरों से चल फिर नहीं सकता, या तो हवा में उड़ता रहता है या किसी पेड़ की डाल में चिपटा रहता है। दिन के प्रकाश में यह बाहर नहीं निकलता, किसी अंधेरे स्थान में पैर ऊपर और सिर नीचे करके औत्रा सटका रहता है। इनके झुंड के झड पुराने खंडहरों आदि में सटके हुए पाए जाते हैं। इस जंतु के कान बड़े बड़े होते हैं और उनमें ग्राहट पाने की बड़ी शक्ति होती है। यद्यपि यह जंतु हवा में बहुत कपर तक उड़ता है, पर इसमें चिड़ियों के लक्षण नहीं हैं। इसकी बनावट चूहे की सी होती है, इसे कान होते हैं और यह अंडा नहीं देता, बच्चा देता है। अगले पर बहुत लबे होते हैं और उनके छोरों के पास से पतली हड्डियों की तीलियां निकली होती हैं, जिनके बीच में झिल्ली मढ़ी होती है। यही झिल्ली पर का काम देती है । तीलियों के सहारे से यह जंतु झिल्ली को छाते की तरह फैलाता और बंद करता है। यह प्रायः कीड़े मकोड़े और फल खाता है ।

चमगादड़ अनेक प्रकार के होते हैं। कुछ तो छोटे छोटे होते

हैं और कुछ इतने बड़े होते है कि परों को दोनों मोर फैलाकर नापने से वे गज डेढ़ गज ठहरते हैं। .. मचम'- संचार [देद्ध०] एक प्रकार की वंगला मिठाई जो • दूध फाड़कर उसके छेने से बनाई जाती है। चमचम-कि० वि० [हिं० चमाचम दे० 'चमाचम'। चमचमाना'--क्रि० अ० [हिं० चमक चमकना । प्रकाशमान होना । दीप्तिमान होना । झलकना। दमकना । उ०-वादर घुमड़ घड़ि पाए द्रज पर बरसत कारे घूम घटा अति ही जल । चपला प्रति चमच माति बज जन सब डरडरात टेरत शिशु ... पिता मत ब्रज गलवल । —सूर (शब्द०)। चमचमाना-क्रि० स० चमकाना झलकाना। चमक लाना । दमक लाना। - चमचा-संज्ञा पुं० [फा०मि० सं० चमस] [स्त्री० चमची] १. डांड़ी लगी हुई एक प्रकार की छोटी कटोरी या पात्र जिससे दूध, चाय घादि उठा उठाकर पीते हैं। एक प्रकार की छोटी कलछी। चम्मच । डोई। कफचा । २. चिपटा । ३. नाव में डांड़ का चौड़ा अग्रभाग। हाथा। हलेसा। पंगई। बंग । ४. कोयला निकालने का एक प्रकार का फावड़ा। गा। ५. जहाज के दरजों में प्रलकतरा डालने की चोंचदार कलछी।-(लशा)। चमचिच्चड़--विहि. चाम+चिचड़ी चिचड़ी या किलनी की तरह निपटनेवाला । पिंड या पीछा न छोड़नेवाला। मचिचोर-वि० [हिं० चाम+चिचोरना] टे० 'चमचिच्चड़' । सपी-संशोसिमना] १.छोटा चम्मच । २.माचमनी ३. छोटा चिमटा। ४. धुनापा चना नया पद या निकालने और पान पर फैलाने की चिपटे और चौड़े मुह को सनाई। चमच्च ना@-क्रि०म० [हिं० चमचमाना] ३० 'चमकना'। उ017 पलक्की चमच्ची, उठ वीर नच्ची।-हम्मीर रा०, पृ० १३६६ मजई-शास्त्री० [म.चर्मयका] १. एक प्रकार का छोटा कीड़ा जो पशुयों और कभी कभी मनुष्यों के शरीर पर उत्पन्न हो जाता है। एक प्रकार की बहुत छोटी कितनी। चिचड़ी। २. चिचड़ी की तरह चिमटनेवाली वस्तु या व्यक्ति । उ०- जगमगी जोन्ह ज्वाल जालन सों जारती न जमजाई जामिनि जुगत सम हजाती क्यों? -देव (शब्द)। ......... चमजोई-संवा बी० [हिं० चमजुई] दे० 'चमजुई। .. चमटना--क्रि० स० [हिं० विमटना] दे० 'चिमटना'। : .. चामटा-संघा पुं० [हिं० चिमटा दे० 'चिमटा' ...... चमड़ा संथा पुं० [सं० धर्म+अप० दर (स्वा०प्रत्य॰)] १. प्राणियों के सारे शरीर का वह कपरी मावरण जिसके कारण मांसा नसें यादि दिखाई नहीं देतीं। चर्म । त्वचा । जिल्द । र विशेष-चमड़े के दो विभाग होते हैं, एक भीतरी और दूसरा ऊपरी । भीतरी एमे तंतु पात्र के रूप में होता है जिसके अंदर रक्त, मजा प्रादि रहते और संचारित होते हैं। इसमें छोटी छोठी गुलथियां होती हैं। स्वेदधारक गुलयियों एक नली के रूप में होती हैं जिनका ऊपरी मुंह बाहरी चमड़े के ऊपर तक गया रहता है और निचला भाग कई फेरों में घूमी हुई गुलझटी के रूप में होता है । इसका अंश न पिघलकर अलग होता है और न छिलके के रूप में छूटता है। बाहरी- चमड़ा: या तो समय समय पर झिल्ली के रूप में छूटता या पिघलकर पलग होता है। यह वास्तव में चिपटे कोशों से बनी हुई सखी कड़ी झिल्ली है जो झड़ती है और जिसके नाखन, पंजे, खुर, बाल प्रादि बनते हैं। मुहा०-चमड़ा उधेड़ना या सोचता=(१) चमड़े को गरीर से अलग करना। (२) बहुत मार मारना । विशेप-दे० 'खाल खींचना' । २. प्राणियों के मृत शरीर पर से उतरा हुमा चर्म जिससे जूते, बंग प्रादि बहुत सी चीजें बनती है। खाल । चरसा। विशेष-काम में लाने के पहले चमड़ा सिझाकर नरम किया जाता है। सिझाने की क्रिया एक प्रकार की रासायनिक क्रिया है, जिसमें टनीन, फिटकरी, यासीस पादि द्रव्यों के संयोग से चर्म स्थित द्रव्यों में परिवर्तन होता है। भारतव में चमड़े को सिझाने के लिये उसे बबूल, बहेड़े,कत्ये, बलत, मादि की छाल के काढ़े में इबाते हैं। पशुभेद से चमड़ों के भिन्न भिन्न नाम होते हैं। जैसे-वरदी (बंज का), भारी (भंस का), गोवा (गाय का), किरकित, कीमुन्त (गदहे या घोड़े का दानेदार), मुरदरी (मरी लान का), साबर, .. हुलाली इत्यादि। महा०-चमड़ा सिझाना-चमटे को दबूल की छास, सी. "नमक भादि के पानी में डालकर मुलायम करना। ३. छाल । छिलका।