पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३९४

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पमड़ी चमरशिखा प्रमड़ी-संशा को [हिं० पमहा] चमं । त्वचा । वाल। तकला या तेगुणा धूमता है। चरखे की गुड़ियों में लगाने की महा.-३० 'चनमा' और 'गाल'। चक्ती । 30---(क) एक टका के चरखा बनावल देहि चमरकरण-सं० [सं०] चमत्कार करने या होने की क्रिया। टेकुमा बमरख लाबल 1- कबीर (शब्द०)। (ख) और चमत्कार-कंधा दु० [सं०] वि० धमाकारी, चमत्कृत] १. धाश्चर्य । मुबड़ी कमर हो गई सिर हो गया दगला । मुह सूख के विस्मय । २. पारनयं का विषय । वह जिसे देखकर चित्त में चमरण हुमानन हो गया तकला । - नजीर (पन्द०)। विस्मययुक्त माहलाद उत्पन्न हो । अद्भुत व्यापार । विचित्र चमरख-वि० सी० दुबली पतली (स्त्री)। जैसे, वह तो सूखकर पटना । प्रसाधारण भौर प्रलौकिक वात । फारामात । ३. चमरख हो गई है। पानठापन यिनिता विलक्षणता । जैसे,—इस कविता चमरखा- संज्ञा पुं० [सं० चर्मक शा] एफ सुगंधित जड़ जो उबटन में कोई चमत्कार नहीं है । ४. दमरू 1 ५. अपामार्ग । चिचड़ा प्रादि में पड़ती है। चमत्कारक-वि० [20] चमत्कार उत्पन्न करनेवाला। चमगाय-संदा सी० [म. चमर+हि. गाय) सुरागाय हिमालय माश्चर्यजनक विलक्षण । अनूठा । पर्वत के प्रदेशों को वह गाय जिसकी पूछ का चैवर बनता चमत्कारिक-वि० [सं०] १. चमत्कार संबंधी। २. चमत्कार पैदा है। चंवरी गाय । 30--सब फसल छाई में मिल गई, सैकड़ों फर देनेचाता। चौंका देनेवाला । ३. विचित्र या प्रसंभव - भेड़ें और वीसों चमरगाय मर गई और छतें उड़ गई।- प्रतीत होनेवाला (को०)। वो दुनिया, पृ०७५। पमत्कारित-वि० [सं०] चमत्त । विस्मित [को०] । चमरगिद्ध-संसा पुं० [कर्म>हि० चमर+गीध] एक बड़ा गिक्ष । समकारिता-संका मौ० [सं०] चमत्कृत करने का भाव या शक्ति। नोंचकर मांस खानेवाला गोध । चमत्कारपन कि० चमरचलाक-वि० [हिं० चमार+फा० चालाफ] निम्न कोटि की चमत्कारवाद-संशा पुं० [सं०] साहित्य में वह मत जो बाह्य सौंदर्य चालाकी करनेवाला । गहित युक्ति लगानेवाला । मथति पतगारादि सो कविता के लिये प्रावश्यक मानता है। चमरजुलाहा--संज्ञा पुं० [हिं० चमार-+-जुलाहा] कपड़ा बुननेवाला काव्य में पमरकार का समर्थन करनेवाला चाद या सिद्धांत । हिंदू । हिंदू जुलाहा । कोरी। उ०--प्रलंकारों को प्रधानता देने पर किस तरह के चमत्कार- चमरदष्टि-संक्षा सी० [हिं० चमर+मं दृष्टि ] दे० 'चर्मदृष्टि'। यार का जन्म होता है, उसकी मिसालें उन्होंने रीतिकालीन - उ--च मरदृष्टि की कुलफी दीनो, चौरासी भरमार्य हो । कवियों से दी है।-प्राचार्य, पृ० १२। कबीर श०, भा० २, पृ० ५। अमरकारी-वि० [सं० चमत्कारिन्] [वि० सी० चमत्कारिणी] जिसमें चमरटोला---संज्ञा पुं० [हिं० चमार+टोला] चमारों का मुहल्ला पमरकार हो। जिसमें कुछ विलक्षणता हो। अद्भुत । २. या निवास । समकार दिनानेयाला । अद्भुत दृश्य उपस्थित करनेवाला। चपरटोलो-संश स्त्री० [हिं०चमार+टोली] १. चामरों को बस्ती। थिलक्षण बातें करनेवाला । करामाती । २. चमारों का झुड । ' धमत्कृत-वि०म०] पाश्चापित । विस्मित | चमरपुन्छ'--ए। पुं० [सं०] १. चयर । २. लोमड़ी । ३. गिलहरी धमत्कृति-संहा श्री [सं०] पाश्चर्य । विस्मय । [को०। जमदप्टि@-शाली [म. चर्म + दृष्टि देखो 'चर्मदृष्टि' । ३०-- चमरयुच्छ --वि० चयर की तरह पूछ्याला (पशु) जिसकी पूछ सुदर सतगुरु ब्रह्मा, पर सिध की चमदृष्टि । सूधी पोर न चंवर के काम नावे [को०] । देगई, देगं दर्पन पृष्ट ।-संतवानी०, पृ० १०७। चमरवकूलिया-संघा मी० [हिं० चमरबगली] दे० 'चमर गली'। पमन - हा ० फा०] १. हरी मयारी। २. फुलवारी । घर के चमर गली-संच बी० [हिं• चमार+बगला] वगले की जाति की पदर का छोटा बगीचा । ३. गुलजार बस्ती। रौनकदार .. पाले रंग की एक चिड़िया। चमरवैल 'संद्या गुं० [सं० चमर+हि० बल ] याम नाम का एक पमर'-संघा पु. ०] [सी० पमरा] १. पुरा गाय। २. सुरा गाय . पहाड़ी बल जिसके कंधों पर बड़े बड़े वास होते हैं। उ०.- की का पना नंबर । नामर । ३. एफ दैत्य का नाम । चंगरवल, सिर हिला हिलाकर भूशा रौंदकर गा रहे थे। पमर'-० [हि धमार] चमार में संबंधित । तुच्छ । हीन । -वो दुनिया, पृ०७२ । विशेष-यह मौगिक जनों का पूर्व पद होता है। जैसे, चमरपन, चमररग --पंधा ली० [हिं० मार+रग निम्न प्रकृति । तुन्छ पमरटोला प्रादि। प्रकृति । निम्नता । तुच्छता। . चमररग+-पि. निम्न या तुच्छ स्वभावाला। नीच।। अमरक-संशा [सं०] मधुमममी को चमरशिखा संशा श्री० [सं० मार+किसा] घोड़ों की फलंगी। पमरण- मंशा० [हिं साम+ रक्षा मजया चमहे मी बनी २०-गवहि राम ढोली मैं कोनी। तानि देह अगली इन पमती जोगरगे के पागे की पोर छोरी पिढ़ई के पास • लीनी। चनत कनौती लई दवाई। चमर शिमा हसन न -पास की गोरियों में मनी रहती है और जिसमें से होकर पा: -क्षमए (द)। .