पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३९५

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चमेरस . चे मूकन - हाता चमरस-संज्ञा पुं० [हिं० चाम ] बह घाव जो चमड़े या जूते की चमाकर-संपा पुं० [हिं० चमौवा] दे० 'चमीवा। . ___रगड़ से हो जाय। चमाक -संज्ञा स्त्री० [हिं० चमक] दे० 'चमक' । . चमराखारी--संज्ञा पुं० [हिं० चमार+खारी ] खारी नमक। चमाकना@-क्रि०अ० [हिं० चमकना] दे॰ 'चमकना'। ... चमरावत--संज्ञा झी० [हिं० चमार] चमड़ा या मोट आदि चमाचम--क्रि० वि० [हिं० चमकना की अनु० द्विशक्ति] उज्वल बनाने की मजदूरी जो जमीदार या काश्तकार की ओर से कांति के सहित । झलक के साय । जैसे,- देखो वरतन कैसे . चमारों को मिलती है। चमाचम चमक रहे हैं। चमरिक-संत्रा पुं० [सं०] कचनार का पेड़ । चमार'--संज्ञा पुं० [सं० चर्मकार] [लो चमारिन, चमारी] एक नीच चमरिया सेम--संा वी० [हिं० चमार-+सेम] सेम का एक भेद। जाति जो चमड़े का काम बनाती है। २. उक्त जाति का चमरी-संचात्री० [सं०] १. सुरा गाय । २. चवरी। ३. मंजरी। व्यक्ति । ३. तुच्छ व्यक्ति । निम्न प्रकृतिवाला व्यक्ति । चमरू---संज्ञा पुं॰ [देश॰] चमड़ा । खाल । चरसा 1-(लश.)। यो०-चमार चौदस=(१) चमारों का उत्सव । (२) वह घूम- चमरेशियन--संज्ञा पुं० [हिं० चमार] चमरपन । नीचपन । उ.- धाम जो छोटे और दरिद्र लोग इतराकर करते हैं । चार दिन यह तो आपको जवान है, उसे किरंटा, चमेरिशयन, गाली जो का जलसा। . चाहे कहें लेकिन रंग को छोड़कर वह अंगरेजों से किसी चमार--वि० निम्न प्रकृतिवाला । तुच्छ ।

वात में कम नहीं !--गवन, पृ० ११० ।

चमारनौ-संवा स्त्री० [हिं० चमार+नी (प्रत्य॰)] दे० 'चमारी' । चमरोर-संज्ञा पुं० [देश॰] एक बड़ा पेड़ जिसकी छाया बहुत घनी चमारिन:--संवा सी० [हिं० चमार+इन (प्रत्य॰)] दे० 'चमारी' । होती है। चमारी'-संज्ञा स्त्री० [हिं० चमार+ई (प्रत्य॰)] १. चमार जाति चमरौट--संज्ञा पुं० [हिं० चमार + प्रोट ( प्रत्य०) खेत, फसल 'की स्त्री । चमार की स्त्री। २.चमार का काम । ३. चमारी आदि का वह भाग जो गांव में चमारों को उनके काम के की प्रकृतिवाली स्त्री। ४. कमल का वह फूल जिसमें बदले में मिलता है। कमलगट्ट के जीरे खराब हो जाते हैं। चमरौटिया--संवा लो० [हिं०] दे॰ 'चमरौटी। चमारी-वि०१. चमार संबंधी। २. चमारों जैसा । चमारों की चमरौटी-मंशा नी० [हिं० चमार>चमरौटी (प्रत्य॰)] तरह का। चमारों की वस्ती। चमालसि -वि० [हिं० चौवालीस दे० 'चौवालीस' । उ०—वर्ष चमरौधा-संज्ञा पुं० [हिं॰ चमरौधा (प्रत्य॰)] दे० 'चमौधा'। वदीत भये कलिकाल के छस चमालसि चार हजारा। चमला--संथा पुं० [देश॰] [अल्पा० चमली ] भीख मांगने का सुंदर ० (जी०), भा० १, पृ० १२६ । ठोकरो। भिक्षापात्र । चमियारो-मंचा झौ० [देश॰] पम काठ। 'चमस--संज्ञा पुं० सं०] सिौ. अल्पाचमसी । १. सोमपान करने चमीकर-संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल की एक खान जिससे सोना का चम्मच के आकार का एक यज्ञपात्र जो पलाश आदि की निकलता था । इसी से सोने को चामीकर कहते हैं । - लकड़ी का बनता था । २. कलछा । चम्मच । ३. पापड़। ४. चमीर@--संज्ञा पुं० [सं० चामीकर, प्रा० चामीर] दे० 'चामीकर'। ' मोदक । लड्डू । ५. उर्द का आटा । घुत्रांस । ६. एक ऋषि उ०-मोताहल रहती नहीं, हैवर हरि चमीर । जेहलिया जाता का नाम । ७. नी योगिश्वरों में से एक । जुगा, वा तें रहसी वीर |--बाँकी० ग्र०, भा० ३, पृ० ८ । चमसा-संभ पुं० [मं० चमस] चमचा । चम्मच । यज्ञपात्र । चमुड' संज्ञा स्त्री० [सं० चामुण्ड ] दे० 'चामुड' 1 उ०-- चमुड चमसा-संज्ञा पुं० [हिं० चौमासा] दे० 'धौमासा'। जै चंड-मुड-भंडासुर-खंडिनि । जै सरक्त जे रक्तबीज विड्डाल चमसि-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की रोटी या लिट्टी (को०)। विहंडि नि । भूपण ग्रं०, पृ० ३ । चमसी'-संशा सी० [सं०] १. चम्मच के आकार का लकड़ी का एक एक चडा जी --वि० [देश॰] दुष्ट । पाजी। यज्ञपात्र । २.सर्द, मूग, मसूर आदि की पीठी। चमुव चमसौर-वि० [सं० चमसिन् ] सोमरस से पूर्ण चमस पाने का. -संज्ञा स्त्री० [हिं० चमू] ३० 'चमू'। उ०-विजहर चमुव न आवन पाइय । पाल्हन घर लीन्ह वह जाइय |--५० रासो अधिकारी (को०)। चमसोद्भद-संज्ञा पुं० [सं०] प्रभासक्षेत्र के पास का एक तीर्थ । - पृ० १३८ । विशेष—महाभारत में लिखा है कि सरस्वती नदी यहीं अदृश्य चमू- चमू-संथा स्त्री० [सं०] १. सेना। फौज । २. नियत संख्या की सेना हुई है। यहां पर स्नान करने का बड़ा फल लिखा है। जिसमें ७२६ हाथी, ७२६ रथ, २१८७ सवार और ६३४५ चमाइन -संचा क्षी० [देश॰] चमार की स्त्री। चमारिन। पैदल होते थे। चमाइन -वि०निम्न प्रकृतिवाली (स्त्री)। .. यौ०-चमूनाय, चमूनायक, चमूप, चमूपति=सेनानायक । चमाळ-संञ्चा पुं० [सं० चामर ] चमर । चामर । चॅवर । उ० सेनापति । - हाड़ा रायठौर, कछवाहे, गौत और रहे, अटल चकत्ता को चमूकन-संवा पुं० [हिं० चमोकन ] एक प्रकार की किलनी जो चमाउ धरि डरि कै।-भूषण (शब्द०)। चौपायों के शरीर में चिपटी रहती है।