पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३९८

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चरखकश १४७७ घरचरा चरखकश-वि० [फा० चर्ख कश] १. खराद की डोरी या पट्टा, चरखाना--संज्ञा पुं० [हिं० चारखाना] दे० 'चारखाना' . खींचनेवाला । २. खराद चलानेवाला । चरखी-संक्षा ली० [हिं० चरखा का स्त्री० (अल्पा०) १. पहिए की.. चरखड़ी-संक्षा स्त्री० [हिं० चरख ] एक प्रकार का दरवाजा । . तरह घूमनेवाली कोई वस्तु । २. छोटा चरखा। ३. कपास चरखपूजा--संक्षा श्री० [फा० वर्ष+सं० पूजा] एक प्रकार की पूजा प्रोटने की चरखी। वेलनी । प्रोटनी। ४. सूत लपेटने की जो चैत की संक्रांति को होती है। फिरकी । ५. धनुप के आकार का लकड़ी का एक यंत्र जिसमें विशेष-- इसका प्रायोजन ७ या ८ दिन पहले होता है। यह एक खूटी लगी रहती है और जिसकी सहायता से मोटी पूजा शिव को प्रसन्न करने के लिये की जाती है। इसमें भक्त . रस्सियां बनाई जाती हैं। कुएँ आदि से पानी खींचने लोग गाते बजाते और नाचते हुए भक्ति में उन्मत्त से हो की गराड़ी। घिरनी। ७. पतली कमानियों से बना हया जाते हैं, यहां तक कि कोई कोई अपनी जीभ छेदते हैं, कोई जुलाहों का एक औजार जिसकी सहायता से कई सूत एक में लेहि के काँटे पर कूदते हैं और कोई अपनी पीठ को बरछी. लपेटे जाते हैं । ८. कुम्हार का चाक । . एक प्रकार की से नाथकर चारों ओर घूमते हैं । जिस खंभे पर इस बरछे प्रातिशबाजी जो छूटने के समय खूब धूमती है । को लगाकर चारो ओर घूमते हैं, उसे चरख कहते हैं । ये चरखे का गलखोड़ा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] कुश्ती का एक पेंच । सब क्रियाएँ एक प्रकार के संन्यासी करते हैं । अंग्रेजी शासन- काल में ये क्रियाएँ बहुत संक्षिप्त हो गई। बृहद्धर्म पुराण विशेष---जव विपक्षी उलटे उखाड़ से फेंकना चाहता है तब उसकी पीठ पर से चरखे के समान करवट लेकर अपनी टांग नामक ग्रंथ में इस पूजा का विधान और फल लिखा हुआ है। ऐसी कया है कि चैत्र की संक्रांति को वारण नामक इसकी गर्दन पर चढ़ाते हैं और उसका एक हाथ और एक एक शव राजा ने भक्ति के आवेश में अपने शरीर का रक्त पांव गलखोड़े से बांधकर उसे गिरा देते हैं। इसी को चरखें चढ़ाकर शिव को प्रसन्न किया था। फा गलखोड़ा पाहते हैं। चरखा-संज्ञा पुं० [फा० चर्ख] १ पहिए के ग्राकार का अथवा इसी चरगा--संज्ञा पुं० [फा० घरगी] १. बाज की जाति की एक शिकारी प्रकार का कोई और घूमनेवाला गोल चक्कर । चरख । २. चिड़िया । चरख । उ०--चरग चंगुगत चारकहि नेम प्रेम लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता से की पीर । तुलसी परबस हाड़पर परिहैं पुहुमी नीर । तुलसी ऊन, कपास या रेशम मादि को कातकर सूत बनाते हैं। रहट । (शरद०)। २. लकड़बग्घा नामक जंतु जो कुतों का शिकार विशेष—इसमें एक और बड़ा गोल चक्कर होता है, जिसे ची करता है। कहते हैं और जिसमें एक मोर एक दस्ता लगा रहता है। चरमजा -मया का ह° चार+गज+इ (प्रत्य०) । कफन . दूसरी ओर लोहे का एक बड़ा सूपा होत है, जिसे तकुमा अर्थी का कपड़ा। शव ढांकने का कपड़ा। उ०-चारगजी या तकला कहते हैं। जब चरखी घुमाई जाती है तब एक चरगजी मंगाया, चढ़ा काठ की घोड़ी। चारों कोने प्राग पतली रस्सी की सहायता से, जिसे माला कहते हैं, तकुमा लगाया, फूक दियो जस होरी।-संतवाणी०, भाग २, घूमने लगता है। उसी तकुए के घूमने से उसके सिरे पर लगे पृ० ४। हुए ऊन कास प्रादि का कतकर सूत बनता जाता है। चरगल-संचा पुं० [देश०] एक प्रकार का शिकारी पक्षी । चरण । क्रि० प्र०-कातना 1-चलाना । उ०--मृगमद मृगवन स्वान नखानहु । ग्राम स्वान बहु गड़ ३. कुएं से पानी निकालने का रहट । ४. ऊख का रस निकालने मह मानह । जुरर बाज बहु कुही बाहेला। चरगल गरवा के लिये बनी हुई लोहे की कल । ५. एक प्रकार का बेलन सोकर भेला ।-५०रा०, पृ० १८। . जिससे पौटिए तार खींचते हैं। ६. सूत लपेटने की गराड़ी। चरगह, चरगेह--संथा पुं० [सं०] १. 'चरराशि' । चरखी। रील । ७. गराड़ी। घिरनी। ८. बड़ा या बेडील चरचना @+--क्रि० स० [सं०चर्चन] १. देह में चंदन आदि पहिया। ६. रेशम खोलने का 'उड़ा' नाम का औजार । लगाना उ०--चरचति चंदन अंग हरन अति ताप पीर के । १०. गाड़ी का वह डांचा जिसमें जोतकर नया घोड़ा '-व्यास । (शब्द०)२. लेपना। पोतना। ३. भांपना। निकालते हैं। खड़खड़िया । ११. वह स्त्री या पुरुष जिसके अनुमान करना । समझ लेना । उ०-चरचहि चेष्टा परखहि सब अंग बुढ़ापे के कारण बहुत शिथिल हो गए हों। १२. नारी निपट नाहि पौषध तह वारी ।--(शब्द०)। ४. झगड़े बखेडे या झंझट का काम । : क्रि० प्र०-निकलना । पहचानना । उ0--चेला चरचन गुरु गुन गावा। खोजत १३. कुपती का एक पेंच जो उस समय किया जाता है जब जोड़ .. पूछि परम रस पावा ।—जायसी (शब्द०)। (विपक्षी) नीचे होता है। चरचना--२-क्रि० स० । सं० वर्चन ] पूजन करना । उ०- तबहिं विशेष- इस में जोड़ की दाहिनी ओर बैठकर अपनी बाई टांग नंद जू कही श्याम सो हमरे सुरपति पूजा। गोधन गिरि 4 जोड़ भी दाहिनी टांग में भीतर से डालकर निकालते हैं वाहिं चरचिहैं याही है मुखपूजा ।--सूवन (शब्द०)। और अपनी दाहिनी टांग जोड़ की गर्दन में डालकर दोनों चरचर--संक्षा श्री [अनुचरचराने की ध्वनि या स्थिति। पैर मिलाकर दंड करते हैं जिससे जोड़ चित्त हो जाता है। चरचरा'-संला पुं० [अनु॰] खाकी रंग की एक चिड़िया जतन