पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४०

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खजुमा ' दामोदर के अनुसार एक ताल का नाम जिसे रूपक भी कहते . खज-संचा पुं० [सं०] १. मथानी । मंथनचक्र । २. मयन की

... 'हैं।१०. कसीस । ...

. .... क्रिया |३. कलछुल । दर्वी । ४. संघर्ष । युद्ध [को०] । खचर:-वि० प्राकाण में चलनेवाला । वे चर। खजक-संवा पुं० [सं०] मयानी (को०] . .., खचरा-वि० [हिं० साच्चर] १. वरण संकर । दोगला । २. दुष्ट । पाजी। खजप-संक्षा पुं० [सं०] पाया हुमा मक्खन । घी [को०] ! . . . . खचाखच-फ्रि०वि० [धनु०] वहतं भरा हुआ। ठसाठस । जैसे,- खजमज-वि० [अनु०] भाराव, भारी या गिरि हुई (तबीयत)। - देखते ही देखते सारा कमरा खचाखच भर गया। .. खजमजाना--क्रि० प्र० [अनु॰] तबीयत का साराब या भारी खचाना-क्रि० स० [सं०/कृपा प्रा० संच] दे० 'खंचना' । .. होना । . . मुहा०--अपनी खचाना = अपनी ही कही हुई बात को बार बार. खजल-संज्ञा पुं० [सं०] १. ओस । २. वर्पा । ३. कोहरा को । ... पुष्ट करते जाना, दूसरे के तर्क को कुछ न सुनना । उ०-- खजला-संश्ा पुं० [हिं० साजा] एक प्रकार का पकवान जिसे ... सुनी घौं है काम अपनी लोक लोकन कीति । सूर प्रभु अपनी खाजा भी कहते हैं। उ०-गुपचुप्प गुना गुल पापरिया। खचाई रही निगमन जीठि। सूर (शब्द०)। .. .. साजला सुसारि पड़ारियाँ ।-सूदन (शब्द०).. :: खचारी--संशा पुं० [सं० साचारिन् ] १. स्कंद का नाम । २. दे. खजलिया--संज्ञा पुं० देश॰] अंगूर के पौधों का एक रोग जिसमें . खवर" को०] 1 . . . उसके पत्तों और डंल्लों पर काली काली धूल सी जम जाती 'खचारी२- वि० दे० 'चर' ।.. . . है और पत्ता धीरे धीरे सूखाता जाता है । खचावट-संज्ञा स्त्री० [सं० शांचना] १. वचन । २. गठन । ३. खजहजा-संज्ञा पुं० [सं०. खाद्याद्य, प्रा० हज्जाज्ज] साने योग्य ... लिखावट . . .. उत्तम फल या मेवा। उ०--(क). और खजहजा उनकर खचित-वि०सं०] १. नींचा हपा । चित्रित या लिखित । २.. . नाऊ । देखा सब राजन अंबराक ।-जायसी (शब्द०)। .: . आवद्ध । जटित । ३. युक्त । संयुक्त । ४. परिपूर्ण । भरा (1) फरेबाजहजा दाडिम दाखा । जो बह पंथ जाइ सो .. हुमा (को०) १५. विभिन्न प्रकार के तागों में तैयार या सिला चाहा--जायसी (शब्द०)। . हया (वस्त्र), (को०)" . खजांची--संज्ञा पुं० [फा० साजानची] कोपाध्यक्ष । सचित्र-संचा पुं० [सं०] अनहोनी और असंभव वार्ता अथवा वस्तु खजा---संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मथानी । २. मथने का कार्य । मंथन । को०] 1 . ..३. दी। ४ विनाश । विध्वंस । ५. संघर्प । युद्ध [को०] । - खचिया-संज्ञा स्त्री० [देश दे चिया'। खजाक-संज्ञा पुं० [सं०] एक पक्षी [को०1 . 'खचीना-संक्षा पुं० [हिं० साचाना] १. रेखा कीर। २.चिह्न । खजाका-संथा सी० [सं०] दवी । कलछुन [को०] । खचेरना--क्रि० स० [हिं० सींचना ] घसीटना । बलपूर्वक खजाजिका–संशा स्त्री० [सं०] दे० 'खाजाका [को०] । .: सींचना । खजानची-संज्ञा पुं० [ फा साजानची ] सजाने का अफसर । .. खच्चर-संशा पुं० [देश॰] १. गधे और घोड़ी के संयोग से उत्पन्न .. खजाना-संज्ञा पुं० [अ० खाजानह.] १. वह स्थान जहाँ धन संपह विशेष-यह पशु घोड़े से बहुत मिलता जुलता होता है। इसके करके रख जाय।--धनामार । २. वह स्थान जड़ो कोई " कान प्रादि अवयवं गधे के समान होते हैं, पर शक्ति इसकी चीज संग्रह करके रखी जाय । कोश। ३. राजस्व । कर । - घोड़े से भी कुछ अधिक होती है। यह दीर्घजीवी होता है, ४. प्राधिप । बाहुल्य । ५. वंदुक में बारूद रसाने की जगह । - बहुत दाम बीमार पड़ता है और अधिक परिश्रम कर सकता कि. --देना 1-मांगना ।- जमा करना:-पहुँचना ।।" है. इसीलिये कई अवसरों पर यह घोड़े की अपेक्षा अधिक यौ०-खजाना अफसर = वह अधिकारी जिसके यहां जिले की '. 2 उपयोगी होता है। यह घोड़े की तरह समझदार होता है, सरकारी प्राय जमा होती है। और ऊँची नीची भूमि पर इसका पैर बहुत मजवून बैठता है। खजार-संज्ञा पुं० [अ० खजार] १. बहुत अधिक पानी मिला हमा ...: -;'फौजों में और पहाड़ों पर इससे बहुत काम निकलता है। दुध [को०)। खजिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] कलछी । दर्वी (को०)। .......- । खज -वि० सं० सांध, प्रा० सात] बाने योग्य । जो साया खजित-संवा पुं० [सं०] एक प्रकार के शून्यवादी बौद्ध । जा सके। भक्ष्य । उ०-चाली हसन की चल चरन चोंच खजिल - वि० [फा०] लज्जित । शरमिंदा । करि लाल । लखि परिहै बंक तय कला, झका मारत ततकाल। खजाना-संचा पुं० [फा० खजीनह] सजाना। उ०-कायर भागा. भख मारत ततकाल ध्यान मुनिवर सो धारत । बिहरत पखा . पीठ . सूर रहा रन माहि। पट लिखाया गुरूपं सारा साजीना फूलाय नहीं खाज अनाज विचारतं । वरनं दीनदयाल वैठि हंसन बाहि ।-कवीर सा०सं०. पृ०२६ ।, .. . की प्राली। मंद मंद पग देत ग्रहो यह छल की चाली।- खजुमा-संज्ञा पुं० [हिं० खाजा खाजा नाम की मिठाई । .. - दीनदयालु (शब्द॰) । - खाजला ! उ.-दोना मेलि घरे हैं जाजुप्रा । हौंस होय तो

यो०-वाज अहाज = भक्ष्यामक्ष्य । ... . .

' ल्याऊँ पूबा ।-सूर (शब्द॰) ।