पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४००

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सा ( शब्द० } चलना। चरण -काछना ।. की योनि का चरणचार दो०-राकाराज जराकारा मासमास समासमा । राधा मीत . . तमीधारा साल सीस सुसील सा ( शब्द०)। चरणचार--संज्ञा पुं० [सं० चरण+चार] गमन । गति । चलना । उ०--किदने बन उपवन उद्यान कुसुम कलि सजे निरुपमिते,

सहज भार चरणचार से लजे।-अनामिका, पृ०११

चरणग्रंथि--संघा सी० [सं० चरणग्रंथि परों के नीचे की तरफ की गाँठ [को०] । चरणचिह्न-संज्ञा पुं० [सं०] १.परों के तलुए की रेखा। पाँव की लकीरें। २. कीचड़, धूल या वालू आदि पर पड़ा हमा पर का निशान । ३. पत्थर आदि पर बनाया हुआ चरण के आकार का चिह्न जिसका पूजन होता है। चरणतल--संचा पुं० [सं०] पैर का तलुपा। चरणदास--संज्ञा पुं० [हिं०] दिल्ली के रहनेवाले एक महात्मा साधु . का नाम जो जाति के दूसर बनिए थे। . विशेष—इनका जन्म सं० १७६० वि० में और शरीरांत सं० १८३८ वि० में हुआ था। इनके बनाए कई ग्रंथ हैं जिनमें से स्वरोदय बहुत ही प्रसिद्ध है। इन्होंने अपना एक पृथक ... संप्रदाय चलाया था। इस संप्रदाय के साधु प्रबतक पाए , . - जाते हैं और चरणदासी साधु कहलाते हैं। चरणदासी--वि० [हिं० चरणदास+ई (प्रत्य॰)] महात्मा परण- । 'दास के संप्रदाय का । चरणदास का अनुयायी। चरणदासी-संज्ञा स्त्री॰ [संचरण+दासी] १. स्त्री। पत्नी । २. । जूता । पनही। चरणप-संज्ञा पुं० [सं०] वृक्ष । पादप [को०] । चरणपर्व--संशा पुं० [सं० चरणपर्वन्] दे० 'चरणपर्वण' [को०। चरणपर्वण- संज्ञा पुं० [सं०] गुल्फ । ऍड़ी। चरणपादुका-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. खड़ाऊ । पांवड़ी। २. पत्थर आदि पर बना हुआ चरण के आकार का चिह्न जिसका पूजन होता है । चरण चिह्न।। चरणपीठ-संझा पुं० [सं०] चरणपादुका । पावड़ी । खड़ाऊँ। चरणयुग, चरणयुगल--संक्षा पुं० [सं०] दोनों चरण या पैर [को०]। चरणरज-संज्ञा पुं० [सं०] पांव की धूल । चरणलग्न-वि० [सं०] दे० 'चरणगत' । चरणव्यूह-संघा पुं० [सं०] वेद की शाखाओं का विभाग करनेवाला एक ग्रंथ (को०] । चरणशरण-संक्षा स्त्री० [सं०] चरण का प्राथय । अधीनता। उ-मरा हूँ हजार मरण, पाईं तव. चरण शरण ।- आराधना, पृ०६। चरणशुश्र षा--संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'चरणसेवा' । चरणसेवक--संहा पुं० [सं०] १..वह जो पाँव दबाए या सेवा करे। २. भृत्य । नौकर [को०) । चरणसेवा-संज्ञा स्त्री० [सं०. चरण---सेवा ] पर दबाना। बड़ों की सेवा । चरणसेवी-संज्ञा पुं० [सं० चरणसेविन्] १. सेवक | नौकर । २. . चरणों में रहनेवाला [को०] । चरणा'--संक्षा पुं० [हिं० चरण काछा । वि० दे० 'चरना। क्रि०.प्र०--काछना । चरणार--संशा श्री० [सं०] स्त्रियों की योनि का एक रोग | इस रोग में मैथुन के समय स्त्री का रंज बहुत जल्दी स्खलित हो । जाता है। चरणाक्ष-संवा पुं० [सं०] अक्षपाद । गौतम। ......... चरणाद्रि-संशा पं० [सं०] चुनार नामक स्थान जो काशी मोर मिर्जापुर के बीच है। विशेष यहाँ एक छोटा सा पहाड़ है, जिसकी एक शिला पर . बुद्धदेव का चरणचिह्न है । प्राजकल यह शिला एक मसजिद । में रखी हुई है और मुसलमान उसपर के चिह्न को 'कदम- रसूल' बतलाते हैं। चरणागति-संञ्चा बी• [सं०] पैरों पर गिरना [को०] ! चरणानुग वि० [सं०] १. किसी बड़े के साथ या उसकी शिक्षा पर । चलनेवाला । अनुगामी । २. शरणागत । चरणामृत- संवा पुं० [सं०] १. वह पानी जिसमें किसी महात्मा या बड़े के चरण धोए गए हों। पादोदक । . मुहा०-चरणामृत लेना=किसी महात्मा या बड़े का चरण घोकर पीना। २. एक में मिला हुमा दूध, दही, घी, शक्कर और शहद जिसमें . किसी देवमूर्ति को स्नान कराया गया हो। विशेष-हिंदू लोग बड़े पूज्य भाव से चरणामृत पीते हैं। चरणामृत बहुत थोड़ी मात्रा में पीने का विधान है। क्रि०प्र०-लेना। मुहा०-चरणामृत लेना=बहुत ही थोड़ी मात्रा में कोई तरल . पदार्थ पीना । चरणाम त पीना पंचामृत लेना। घरखामृत माथे या सिर लगाना=किसी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिये उसके पादोदक को माथे पर रखना । चरणामृत को प्रणाम करना। चरणायुध-संशा पुं० [सं०] मुरंगा । अरुणशिखा। चरणारविंद--संशा पुं० [सं०] कमल के समान चरण । चरणकमला चरणाद्ध-वि० [सं०] १. चरण या चतुर्थाश का प्राधा.। किसी - चीज का आठवा भाग। २. किसी लोक या छंद के पद का आधा भाग। चरणास्कंदन--पंचा पुं० [सं० चरणास्कंदन] पैरों से रौंदना । कुचलना [को०]। .. चररिण-संक्ष पुं० [सं०]. मनुष्य । चरणोदक- संवा पुं० [सं०] दे० 'चरणामृत'। . .::... चरणोपधान--संक्षा पु० [सं०]पाँच रखने का स्थानाप चरण्यु--वि० [सं०] चरणशील । चलनेवाला । गतिशील nिon. चरत-संथा पुं० [देश॰] एक प्रकार का बड़ा पक्षी जिसका किया जाता है। वि० दे० 'चीनी मोर'।