पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४०२

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परफरी १४८१ चरमोत्कई । चरफरा-वि० [हिं०] दे० 'चरपरा। . :: मुहा०-वरवी चढ़ना-मोटा होना। चरबी छाना- (१) चरफराना@-कि० अ० [अनु०] तड़फड़ाना। तड़पना 30- 1 (किसी मनुष्य या पशु आदि का ) बहुत मोटा.हो जाना। चरफराहि मग चलहिं न धोरे। वन-मृग मनहु प्रानि रय शरीर में मेद बढ़ जाना। .. . जोरे।-तुलसी (शब्द)। .. . .. 5. विशेष-ऐसी अवस्था में केवल शरीर की मोटाई बढ़ती है। चरब--वि० [फा० चर्च] १. तेज । तीखा। 30-समर सरव से उसमें बल नहीं बढ़ता। .. ....... चरव शस्त्र सत परब सरिस धरि |-गोपाल (शब्द०)। (२) भदधि होना। गर्व के कारण किसी को कुछ न समझना। २. चरवीदार । चिकना। स्निग्ध। . 12 पाखों में चरवी छाना 'ख' के मुहावरे। ............ यो०--घरघजवानी=(१) बहुत अधिक और जल्दी जल्दी चरभ-मंशा पुं० [सं०] पर राशि । परगह। '. .. - बोलना । (२) चिकनी चुपड़ी बातें करना यशामद करना। चरभवन--संशा पुं० [सं०] ज्योतिप में नर राशि। ..... चरबदस्त-वि०हिं०चरब+फा दस्त] १. कुशल चालाक i... चरभूमि--ौसिं०] यह स्थान जहाँ पशु चरते हैं। परागाह। कारीगर [को०] । ... चरम-वि० [म०] अंतिम । हद दर्जे का । सबसे बड़ा हुमा) चोटी- . चरबजबान-वि० [हिं० चरय+फा० जवान]. १. यहुभापी। २. का। पराकाष्ठा। . ::

वाचाल । ३. चापलूस । ४. बिना सोचे समझे बोलनेवाला। चरम संपा.(०.१. पश्चिम।

....... चरवना--संज्ञा पुं० [सं० चर्वण] भुना हुमा अन्न । चबैना । दाना। यौ० चरमगिरि अस्ताचल । उ०-रुचिरतर निजः कनक चरबजुबानी--संद्धा सी० [फा०. चरवजुवांनी] २. चापलूसी । वाचा किरणों यो तपन, चरमगिरि को खींचता था कृपण सा . लता । उ०-चरबजुवानी हाय हाय । शोखेबपानी हाय :: : यि, पृ०६६ । . .. ..... . - हाय। -भारतेंदु , भाग २, पृ०६७८ २ मत I :: : : ... .. चरवांक--वि० [फा० चर्य ( तेज)] १. चत्तुर । चालक। यो०-चरकालघंतकाल । मृत्यु का समय ।। ... - होशियार । २. शोख । निर्भय । निडर । चंचल । -रासें चरम - पुं० [सं० चर्मन] ६० 'धर्म'। ' हैं सुर मदन ये ऐसे ही चरांक । पैनी भाहन की दरी अब यो०-घरमदृष्टि @= चमंदृष्टि'। .. नैननि कौं वाँक ।-रसनिधि (पद)। ( चरमर-संशा पुं० [अनु॰].किसी से तनी हुई ,या चीमड़ वस्तु ( जैसे, - मुहा०—चरवाफ दीदा- (१) जिसकी दृष्टि चंचल हो। चंचल जूता, चारपाई) के दयने या मुड़ने का शब्द । जैसे,--उनका . नेत्रवाला। (२) ढीठ । निडर शोख .. जूता,खूब चरमर बोलता है । ... चरबा--संज्ञा पुं० [फा० चरबह ] प्रतिमूर्ति । नकल । खोकी चरमरा--संक्षा पुं० [देश॰] एक प्रकार की घास जिसे तफडी भी

मुहा०- घरबा उतारना=(१) खाका खींचना । नक्शा उता-

कहते हैं । वि० दे० 'तकड़ी'। ... रना । चित्र खींचना । (२). किसी की नकल करना। चरमरा--वि० [हिं० चरमराना अनु०] चरमरा शब्द करनेदाला: चरबाईल-वि० [हिं०] दे० 'चरांक' । उ०-सूधी राधे कुवरि। ..जिससे नरमर शब्द निकले । जैसे, चरमरा जूता। श्याम है अति चरबाई। - नंद ग्रं०, पृ० १६५। चरण राना --कि० अ० [पनु०] चरमर शब्द होना । जैसे, जूते का. चरबाक--वि० [हिं० चरवाँक] रे 'चरांक' । चरमराना । चरवाना क्रि० स० [सं० चर्म] ढोल पर चमड़ा मढ़ाना। चरमराना-वि० स० यिसी चीज में से चरमर शब्द उत्पन्न करना । चरबी-संज्ञा स्त्री० [फा०] सफेद या कुछ पीले रंग का एक चिकना परमवती --संबा जी [सं० चर्मण्यती] चंबल नदी... - गाढ़ा पदार्थ जो प्राणियों के शरीर में और बहुत से पौधों चरपईया-वि० [सं० चरमवयस् ] वृद्ध (को०)। ..... और वृक्षों में भी पाया जाता है। मेद । वपा। पीह । चरमराशि--संथा श्री [सं०] मेष, कर्क, तुला और मकर राशि विशेष-वैद्यक के अनुसार यह शरीर को सात धातुओं में से एक चरमाचल--संधा पुं० [सं०] दे० 'चरमगिरि' को। है और मांस से बनता है। अंस्थिं इसी का परिवर्तित और चरमाद्रि - संथा पुं० [सं०] दे० 'चरमगिरि' [को०] परिवधित रूप है । पाश्चात्य रासायनिगों को अनुसार सत्र चरम संशा पुं० [हिं० चर्म] चर्ग । त्वचा। उ०-चरम् सपरस प्रकार की चरयियाँ गंध और स्वादरहित होती है और पानी मिलि गयी सुधि चुधि रह्यौ न कोइ ! -सुदर में भा० १ में घुलं नहीं सकतीं। बहुत से पशुओं और वनस्पतियों की ...पृ० १८०। . :.:.... ! चरबियाँ प्रायः दो या अधिक प्रकार की चरवियों के मेल से चरमूर्ति---संधा औ० [सं०] वह मूर्ति जो एक ही जगह स्थापित न वनी होती हैं । इसका व्यवहार ग्रौपध के रूप में खाने, मरहम रहे, बल्कि यावश्यकतानुसार अन्य स्थान पर भी लाई जा आदि बनाने, साबुन और मोमबत्तियां तैयार करने, इंजिनों .., सके [को०)। या कलों में तेल की जगह देने और इसी प्रकार के दूसरे कामों चरमोत्कर्ष-संक्षा पु० [सं०] अत्यंत उन्नति । सर्वोपरि विकास । में होता है। शरीर के बाहर निकाली हुई चरवी गरगी में . उ०-शाहजहाँ के शासन काल में मुगल साम्राज्य. अपन पिघलती और सरदी में जम जाती है। :: .... " .: चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुका था।-हिं० प्रा०प्र०, पृ०.७