पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४०४

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चहली० [हिं० चरना ] १. च री दीपहचरिच, सित मन सिद्धा चरित्रबंधक १४६३ परहां वीरे चरहल करहल, निविया छोलि छोलि खाई।--कबीर चरिद-संवा पुं० [फा०] दे० 'चरिदा' (को०] 1 ग्रं॰, पृ० १४८ 1 यौ०-चरिद परिंद = पशुपक्षी। चरहा-वि० [हिं० चरना+हा (प्रत्य०)] चारा युक्त । चारेवाला चरिंदा-संशा [फा० परिवहJ चरनेवाला जीव । जैसे,गाय, भैस, (खेत या मैदान)। . बैल आदि पशु । हैवान । चरही-संक्षा बी० [हिं० चरना + ही (प्रत्य॰)] दे० 'चरनी'। चरि-संघा सं० [सं०] पशु । चराई संझा सी० [हिं० चरना] १. चरने का काम । चरने की चरिचना---कि० स० [हिं० घरचना] दे० 'चरचना' । उ० - मिलि किया। २. चराने का काम । चराने की मजदूरी। नारि सबनि अचरिज्ज फरि, जल घोए उज्वल करयो। सापंड धूप दीपह चरिच, सित मन सिद्धी प्राचरौं।--पृ. चराऊो-संशा स्त्री० [हिं० घरना ] वह स्थान जहाँ पशु चरते हैं। रा०, ११५८१। चरागाह । चरनी। चरित'-संज्ञा पुं० [सं०] १. रहन सहन । पाचरण । २. काम। चराक' संज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार की चिड़िया । करनी । करतूत । कृत्य । जैसे,—अभी आप उनके चरित चराक'-संज्ञा पुं० [हिं० चिराग] रोशनी। दीपक । उ०-भैसे को चाँदी की हाँसली प्रादि अच्छे अच्छे गहणे पहनाय रात नहीं जानते। ३. किसी के जीवन की विशेष घटनामों या को चराकों से भिड़काते हैं।-राम० धर्म०, पृ० २८६ । कार्यों आदि का वर्णन । जीवनचरित । जीवनी । उ०--- चराकी-संशा पुं० [हिं चराक (=चिराग)] रोशनी करना । प्रकाश लघुमति मोरि चरित अवगाहा |--तुलसी (शब्द०)। विशेप-किसी किसी के मत से चरित दो प्रकार का होता है- करना । उ०----शेप नाग सेवा कर चंद्र पुरै चराकी । लेखण एक अनुभव, दूसरा लीला। पर यह भेद सर्वसंमत नहीं है। वाके हाथ है कछू काढत वाकी ।..-राम० धर्म०, पृ०४६। चरित-वि. १. गया हया । गत । २. किया हुआ। पाचरित। . चराग-संज्ञा पुं० [हिं० चिराग] दे० 'चिराग'। ३. प्राप्त। ४. जोना हया । ज्ञात (को०]। .... चरागान-संज्ञा पुं० [फा० चराग का बहु०] दीपोत्सव [को०] । चरितकार-संश पुं० [सं०] दे० 'चरितलेखक' (को०] 1 .... चरागाह-संशा पुं० [फा०] वह मैदान या भूमि जहाँ पशु चरते हों। चरितनायक- संसा पुं० [सं०] वह प्रधान पुरुप जिसके चरित्र का पशुओं के चरने का स्थान । चरनी । चरी।। प्राधार लेकर कोई पुस्तक लिखी जाय । '. .. " . चराचर -- वि० [सं०] १. चर और अचर । जड़ और चेतन । स्थावर चरितलेखक-संवा पुं० [सं०] किसी की जीवनसंबंधी घटनाएं या और जंगम । उ०—त्रिभुवन हार सिंगार भगवती सलिल जीवनी लिखनेवाला लेखक [को०] । चराचर जाकै ऐन । सूरजदास विधाता के तप प्रकट भई चरितवान-वि० [सं०] दे० 'चरित्रवान्। संतन सुखदैन ।--सूर (शब्द०)। २. जगत् । संसार । ३. चरितव्य-वि० [सं०] प्राचरण करने योग्य । करने योग्य। कौड़ी। चरितार्थ-वि० [सं०] १. जिसके उद्देश्य या अभिप्राय की सिद्धि हो चराचरगुरु--संज्ञा पुं० [सं०] १. ब्रह्मा । २. परमेश्वर । चकी हो। कृतकृत्य । कृतार्थ । २. जो ठीक ठीक घटे । जो चरान'-संघा [हिं० चरना] चौपायों के चरने की भूमि । पूरा उत्तरे। जैसे,-यापवाली कहावत यहीं. चरितार्थ चरान:- संज्ञा स्त्री० चरने की क्रिया या भाव । होती है। चरान-संवा पु० [हिं० चर (बलदल)] समुद्र के किनारे का वह चरितार्थी-वि० [सं० चरिताथिन्] सफलता की इच्छा रख दलदल जिसमें से नमक निकाला जाता है। [को०] । चराना-क्रि० स० [हिं०चरना] १. पशुओं को चारा खिलाने के चरित्तर--संज्ञा पुं० [सं० चरिन धूर्तता की चाल । मिस । बहाना। लिये खेतों या मैदानों में ले जाना । जैसे,—गाय, भैस चराना। क्रि० प्र०-फरना।--सेलचा 1-दिखाना। २. किसी को धोखा देना । वातों में वहलाना। मखं धनाना। नखरेबाजी। नकल । जैसे,—यह सब स्त्रिया के चारत' जैसे,--हम तुम्हारे सरीखे सैकड़ों को रोज चराया करते हैं। चरित्र-संक्षा पुं० [सं०] १. स्वभाब । २. वह जो किया जाय। चराव--संज्ञा पुं० [सं० चर] पशुओं के चरने का स्थान । चरनी। कार्य । ३. करनी। करतूत । ४. चरित । वि० दे० 'चरित'। चरागाह। यो०--चरित्रचित्रण-चरित्रवर्णन । चरावना --क्रि० स० [हिं चराना] दे० 'चरामा' । ५. व्यवहार । आचार (को०)। चरावर'@1--संज्ञा स्त्री० [देश॰] व्यर्थ की बात । बकवाद । उ०.- चरित्रण--.संज्ञा पुं० [सं०] चरित्रवर्णन । चरित्रकथन । उ०- फागुन में एक प्रेम को राज है काहे बेकाज करो हौ चरावर । ज्योतिविज्ञान एक ऐसा विषय है कि प्रायः अपरिचितों का --(शब्द०)। चरित्रण उसकी ग्रहस्थिति की गहराई देखकर किया जा . चरावर--संक्षा पुं० [हिं० चरना] चरागाह । उ०-शादी गमी में सकता है। --शुक्ल अभि० ० (जीवनी), पृ० ६७। रियासत से लकड़ियां मिलती हैं, सरकारी चरावर में लोगों चरित्रनायक-संक्षा पुं० [सं०] दे० 'चरितनायक' । की गउएं चरती हैं; और भी कितनी बातें हैं।-काया० चरित्रबंधक-संज्ञा पुं० [सं०'चरित्रवन्धक 1 मैत्री निभाने का

  • पृ० १६२।

- प्रतिज्ञा। वि० दे० 'चरित्रबंधकृत' [को०] । को स