पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४०५

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परित्रवधककृत १४८४ चर्खकश चरित्र-बंधक-कृत-संज्ञा पुं० [सं० चरित्रवन्धककृत ] १. वह धन जो चरुस्थाली-ज्ञा स्त्री० [सं०] वह पात्र जिसमें हविष्यान्न रखा या किसी के पास किसी शर्त पर गिरवी रखा जाय । २. उक्त पकाया जाय। वरुपात्र । .. प्रणाली किो० । चरू ' संज्ञा पुं० [सं० चह] दे॰ 'चरु' । चरित्रवान् –वि. [सं०] [वि० ली० चरित्रवती। अच्छे चरित्रवाला। चरू - संज्ञा स्त्री० [हिं० चरी ] दे० 'चरी' । उत्तम पाचरणोंवाला । अच्छे चाल चलनवाला । सदाचारी। चरेर-वि० [हिं० चरेरा] दे० वरेरा' । चरित्रांकन-संवा पुं० [सं० चरित्र + प्रङ्कन] चरित्र का पूरा विव- चरेरा'-वि० चरचर से अनु०] [वि० सी० चरेरी] १. कड़ा और रण देना । चरित्र का निहाण या दिवेवन । व्याख्या सहित खुरदुरा २. कर्कश ! रुखा । उ०-मधुप तुम कान्ह ही की - चरित्र प्रस्तुत करना। कही क्यों न कही है। यह उतकही चपल चेरी को निपट चरित्रा- संवा ० [सं०] इमली का पेड़ । बरेरिए रही है । --तुलसी (शब्द०)। चरिम-संह पुं० [सं० चर ] चर्या । आचरण । उ०-युग्रान पांग चरेरा--संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का पेड़ जो हिमालय की तराई यहाँ धर्म पाल को उधत करते हैं जो कहते है कि बीजाश्रम में पूर्व चरिम नहीं है ।-संपूर्णा० अभि० ग्रं॰, पृ० ३६४ । और पूर्वी बंगाल में अधिकता से होता है। चरिष्ण---वि० [सं०] चलनेवाला । जंगम । विशेष-इसके हीर की लकड़ी कुछ ललाई लिए हुए सफेद रंग चरी-संकबी० [सं० चर या हिजारा] १. वह जमीन जो की और वहुत मजबूत होती है। यह प्रायः इमारत के काम किसानों को अपने पशुओं के चारे के लिये जमींदार में पाती है और इसके फलों से एक प्रकार का तेल भी निकलता है। से बिना लगान मिलती है। ३. वह प्रथा या नियम जिसके अनु- सार किसान ऐसी जमीन जमींदार से लेता है। ३. वह खेत या चरेह-मंझा पुं० [हिं० चरना] चिड़िया । पक्षी। .. मैदान जो इस प्रथा के अनुसार चारे के लिये छोड़ दिया गया चरेलो-संज्ञा स्त्री० [हिं० चरना ?] ब्राह्मी बूटी। हो । ४. छोटी ज्वार के हरे पेड़ जो चारे के काम पाते हैं। चरैया'-संवा पुं० [हिं० चरना) १. घरानेवाला । २. परनेवाला। पाया कड़वी। चरैया:--संज्ञा स्त्री० [हिं० चिरैया ] दे० 'चिड़िया'। चरी-संवा स्त्री० [सं० चर (= दूत)] १. संदेशा ले जानेवाली दूती। चरैला--पंज्ञा पुं० [हिं०चार+ऐला-चूल्हे का मुह)] एक प्रकार २. मजदूरनी। दासी । नौकरानी। का चूल्हा जिसपर एक साथ चार चीजें पकाई जा सकती हैं। चरीद-संघा पुं० [फा० चरिंद या हिं० चरना] वह जानवर जो चरैला-संवा पुं० [देश॰] एक प्रकार का जाल जिसमें झील या चरने के लिये निकला हो।-(शिकारी)। तालाब के किनारे रहनेवाले पक्षी पकड़े जाते हैं। चर-संघा पुं० [सं० वि० घरच्य] १. हवन या यज्ञ की आहुति के चरोखर -- संज्ञा स्त्री० [हिं० चारा+खर ] पशुओं के चरने की साथ पी० [हिं० चारा-!-खर 1 पशनों के लिये पकाया हुआ अन्न ! हव्यान्न । हविप्यान्न । २० हांड़ी जगह । चरी। हाटक घटित चरु राधे स्वाद सुनाज 1-तुलसी (शब्द०)। चरोतर-संज्ञा पुं० [सं० चिरोत्तर] वह भूमि जो किसी मनुष्य को - २. वह पात्र जिसमें उक्त अन्न पकाया जाय । ३. मिट्टी के सके जीवन भर के लिये दी गई हो। कसोरे में पकाया हया चार मुठी चाबल । ४. बिना मांड चरौवा -संधा पुं० [हिं० चराना] १. पशुओं के चरने का स्थान । पसाया हुग्रा भात । वह भात जिसमें मांड़ मौजूद हो। ५. २. घरी। पशुओं के चरने की जमीन । ६. वह महसूल जो ऐसी जमीन चर्क-संज्ञा पुं० [देश॰] जहाज का मार्ग ! रूस 1-(लश०)। पर लगाया जाय । ७. यज्ञ । ८. बादल । मेघ । चकृति--संशा श्री० [सं०] १. चर्चा । २. स्तुति । ३. महिमा [को०] । चरुमा-संका पुं० [सं० चर] [श्री. अल्पा० चाई] मिट्टी के चर्ख-संक्षा पुं० [सं० चक्र चक्र। उ०-यक यक अर्जुन सिफत चौड़े मुह का वरतन, खासकर वह बरतन जिसमें प्रसूता स्त्री तीर कमान धर चलावें चर्स के अंदर जते पर।-दक्खिनी०, के लिये कुछ ग्रौपध मिला हृमा जल पकाया जाता है। क्रि० प्र० चढाना। पृ० १५७ । चण्ई-संवा डी० [हिं० चरा छोटा चरुमा । उ०--कई के भात च र चर्ख-संक्षा पुं० [फा० चर्ख ] १. चक्र । चक्कर । २. कुम्हार का चूल्हि ने खाया दालि जोहँसी ठठाई।-० दरिया, पृ०११ । चाक । ३. आकाश । ४. खराद । चरुका-संग्रा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का धान । चरक। यौ० चर्स कश=खराद की डोरी खींच नेवाला प्रादमी। चरखला-संक्षा पुं० [हिं० चरखा ] सूत कातने का घरखा। ५. खिची हुई कमान । ६. डेलवांस । गोफन । ७. चरखी। चरखा। उ-जो चरखा जरि जाय वढया ना मर । मैं कातों सूत हजार चरुखला ना जर।-कबीर (शब्द०)। यो०-चखंजनचरखा फातनेवाला । घरुचेली-मंचा पुं० [सं० चरचेलिन ] शिव । । ९. एक प्रकार का बाज । १०. पहिया । चक्र । ११. रहट । कुएँ चरुपात्र--संज्ञा पुं० [सं०] वह पात्र जिसमें हविष्यान्न रखा था से पानी निकालने का गरी। १२.दामन का घेरा । १३. चारों पकाया जाय। और घूमना । फिरना । १४. कुर्ते का गला (को०)। चरुवरण-संका पुं० सं०] एक प्रकार का पकवान । एक प्रकार का चर्स कश-संक्षा पुं० [फा० चर्सकश ] १. खराद की डोरी या पट्टा ...' पूना जिसमें चित्र से बने रहते हैं। खींचनेवाला। २. खराद चलानेवाला। ..