पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पर्खा १४८५ चर्खा-संघा पुं० [हिं० चरखा] दे० 'बरखा' । . . चर्चि-संशा स्त्री० [सं०] प्रावृत्ति । २. विचारणा [को० ची-मंघा रसी० [हिं० चरखी] २० 'चरखी' । चचिक-वि० [सं०] वेद आदि जाननेवाला । चर्च-संशा पुं० [सं०] १ वह मंदिर जिसमें ईसाई प्रार्थना करते हैं। चचिका-संघात्री० [सं०] चर्चा । जिस । २. दुर्गा। ३. एका प्र गिरजा । २. ईसाई धर्म का कोई संप्रदाय । - का सेम । विशेष--ईसाई धर्म में अनेक संप्रदाय हैं और अनेक संप्रदाय चचिक्य--संज्ञा पुं० [सं०] १. चंदन आदि का लेपन । २. लेपन की के चर्च या प्रार्थनामंदिर भिन्न भिन्न होते हैं। जो ईसाई वस्तु 1 अंगराग (को०)। . जिस संप्रदाय का होता है, वह उसी संप्रदाय के चर्च में जाता चचित -वि० [सं०] १. लगा या लगाया हुआ । पोता हया । लेपित । . और फलतः उसी वर्ष का अनुयायी कहलाता है। जैसे । वंदन चचित नील कलेवर पीतवसन वनमाली। चर्च२.-संज्ञा पुं० [सं०] विचार । ध्यान । चितन को] । (शब्द०)। २. जिसकी चर्चा हो। ३. विचारित् (को०)। चर्चक-संज्ञा पुं० [सं०] चर्चा करनेवाला। ४. ( वेदपाठ) इति जुड़ा हुआ (को०)। ..... चर्चन-संज्ञा पुं० [सं०] १. चर्चा । २. लेपन । चचित-संशा पं० लेपन । चर्चर-वि० [सं०] गमनशील । चलनेवाला । चारविंद -मंज्ञा पुं० [मं घराणरविन्द] दे० 'चरणारविदः। . चर्चरिका--संज्ञा सी० [सं०] १. चर्चरी। २. नाटक में वह गान उ०-उनको चारबिंद घरो तुम जायो। दर्शन करत जलन जो किसी एक विषय की समाप्ति और जवनिकापात होने पर मिट जायी ।-- याधीर सा०. पृ० १५१० 1. और किसी दूसरे विषय के प्रारंभ होने और जवनिका उठने चन --संज्ञा पुं० [म चरण]. 'चरण' । उ०-चप्यो ‘पील तर से पहले होता रहता है। इसी बीच में पात्र तैयार होते रहते चर्न चहुवान रायं 1-५०रासो, पृ०८। । हैं और दर्शकों के मनोरंजन के लिये यह गान होता है। चनार@t- संज्ञा पुं० [हिं० चुनार] दे० 'चरणाद्रि' या 'चुनार'। विशेष--(क) कालिदास के विक्रमोर्वशी नाटक में अनेक चर्चरि- चर्पट-संथा पुं० [सं०] १. अपत । थप्पड़। २..हाथ की खुली हुई काएं हैं। (ख) प्राधुनिक नाटकों में केवल किसी अंक की हथेली । ३. चेतावनी (ला.)। समाप्ति पर ही पात्रों को तैयार होने का समय मिलता है। चर्पट-विविपुल । अधिक। गर्भाक या दृश्य की समाप्ति पर दूसरा अंक प्रारंभ होने से चर्पट:--संज्ञा स्त्री० [सं०] भादों सुदी छठ । । पहले जो गान होता है शह भी चर्चरिका ही है। चर्पटी-मसा की० [सं०] एक प्रकार की रोटी या चपाती.।. चर्चरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक प्रकार का गाना जो बसंत में गाया चर्परा--वि० [हिं० चरपरा] दे० 'चरपरा'। ... :- जाता है। फाग । चाँचर । २. होली की धूमधाम । होली का चर्पण-संज्ञा पुं० सं० चर्वण ६० 'चर्वण' । ... उत्सव । होली का हुल्लड़। वे, एक वर्ण वृत्त जिसमें रगण, चर्वजबानी- वि० [फा०चरबजबानी] चरबजवानी' 1 30- भगण, दो जगण, भगण और तब फिर रगण (र, स. ज, आप ज्यादे वर्व जवानी न करें, मैं आपके कोल फैल से बखूबी ज, भ, र ) होता है । जैसे,---बैन ये सुनिक चली मिथिलेशजा वाकिफ हूँ।--श्रीनिवास ग्रं०, पृ० १२२ । .. हरपाय के। हांकिकै पहुँचे रथ सुरापगा ढिग जायक। जो चर्वन · संज्ञा पुं० [सं० वर्ष] चवेना । अन्न के दाने । उ०—ऐसी ४. करतलध्वनि। ताली बजाने का शब्द। ५. ताल के . विधि फंद पसारा । कछु बाहरि चर्वन डारा-सुदर मुख्य ६० भेदों में से एक । ६. चर्चरिका । ७. प्राचीन काल भा०१, पृ० १३१। ... का एक प्रकार का ढोल' या बाजा जो चमड़े से मढ़ा हुआ होता चर्बना-क्रि० स० [सं० चर्दर ] दे० 'चबाना' 150- - था। ८.. प्रामोद प्रमोद । क्रीडा । ६. गाना बजाना।

  • नाचना कूदना । अानंद की धूम ।

. इस ब्रह्म पोप सम करत घोप । पौरान प्रगट इक वचन मोष। दाढ़ाग्र इक्क चर्वत फुनिद। इक घरत ध्यान जानिक मुनिद । । । चर्चरीक-संज्ञा पुं० सं०] १. महाकाल भैरव । २. साग । भाजी। ३. केशविन्यास । बाल संवारने की दिया। -पृ० रा०, ६४४ । वित्त-वि० [सं० चर्षित] दे० 'चवित'। . चर्चस्-संज्ञा पुं० [सं०] कुबेर की नौ निधियों में से एक। . चर्चा-संक्षा थी [सं०] १. जिक्र । वर्णन । बयान । उ०--(क) चर्बी--संशा श्री० [हिं० चरबी] दे० 'चरबी। . हरिजन. हरि चरचा जो कर'। दासी सुत सौ हिरदै धरै।- चर्भट --संबा पुं० [मं०] ककड़ी। .सूर (शब्द०)। (ख) निज लोक बिसरै लोक पति घर की न चर्भटी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. चर्चरी गीत । २. चर्चा । ३. अानंद । चरचा चालहीं ।-'तुलसी । (शब्द०)। वार्तालाप । क्रीड़ा। ४. आनंदध्वनि। ........" वातचीत । ३. किंवदंती। अफवाह । उ०~-पुरवासियों के चर्म-संप पुं० [सं० चर्मन] १. चमड़ा। - प्यारे राम के अभिषेक की उस चर्चा ने प्रत्येक पुरवासी को .. यौ०--धर्मकार । । ..... हर्षित किया ।--लक्ष्मण (शब्द०)। । २. ढाल । सिपर । क्रि० प्र०-उठना । —करना । - चलना ।--छिड़ना ।—होना। चर्मकरंड--संज्ञा पुं० [सं० चर्मकरगड] कौटिल्य अर्थशास्त्र में कथित ४. लेपन । पोतना । ५. गायत्रीरूपा. महादेवी । ६. दुर्गा । चमड़े का बड़ा कुप्पा जिसके सहारे नदी के पार उतर जाय।