पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४१५

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१४६४ पय वाई-वि० [हिं० चवाय] [वि०मी० चवाइन] १. बदनामी की वी चशक संसाही हि बसका चन्द्र भोजनको साहबों के यहाँ फैलाने वाला । कलंकसूचक प्रवाद फैलानेदाला। दूसरों की से चिली विशेष अवसर पर बागियों को मिलता है। बुराई करनेवाला । निटक । उ०—(क) मैं तस्नी तुम तल्न चशम संधी० [फा० चश्मा १० वरम। तन चुगल चवाई गांद । मुरली ले न बजाइयो कबई हमारे विशेप-शन के यो प्रादि के नियमो बम'। .. गांव1- पद्माकर (शब्द०)। (ब) चौचंद चार चवाइन के चशमा- मंश पुं० [फा० चश्मह, चश्मा'। चहुँ ओर म बिरच करि हाँसी (शब्द०)। (ग) चार चवा- चश्म-संमा मी [फा०] नेत्र । प्रांरा लोचन । नयन । इन लै दुरवीनन धानो न आज तमाशे लबात है।-हरिश्चंद्र यो..-चश्मदीद । चामनुमाई । चामयोगी । प्रादि। (गन्द०)। २. जी बात करनेवाला । व्यर्थ इधर को उधर मुहा०-चम्म बद दूर-धुरी नहर टूर हो । युरी नजर न लगे। लगानेवाला । चुगलखोर । ३०-सुनहु कान्ह बलभद्र चवाई विदोप--इस बाक्य का व्यवहार किसी चीज की प्रजमा करते बनमत ही को धूत । सूरश्याम मोहि गीधन की सौ हौं माता समय उसे गजर लगने से बचाने के अभिप्राय से किया . पूत। सूर शब्द०)। जाता है। . . वाद-मंचा पुं० [हिं०] दे॰ 'चवाव । चमक-दमी० [फा० चदम] १. मनमोटाब । बैमनस्य । ईर्या । दाय संघा पुं० हिं०] दे० 'चवाव' । उ०-(क) डारि दियो हप। २. चश्मा । ऐनक। ३. मात्र या मारा। गुरु लोगनि को डर गाँव चवाय मैं नांव धराए ।-मति००, चश्मजन--संज्ञा पुं० [फा० चश्मजन] वह जो प्राय इशारा पृ० ४२१ । (ख) गोकुल की गैल में गोपाल ग्वाल गोधन करता है [को०)। मैं गोन्ज लपेटे लेखे ऐसी गति कीनी है। चौंकि चौंकि तर चण्जदन--संक्षा ० [फा० चमज़दन] १.अरण। निमेय समहा। पवायन चलावत रहो चुपचाप चोय चित्त मति चीनी २. पलक झपकना बि। है।--नट०, पृ०१५। चश्मदीद-वि० [फा०] जो आँनों ने देखा हपा हो। वाली'-वि० [देश॰] हीन । खराब । निकम्मा ! 30-कवल यो०-चश्मदीद गवाह-वह साक्षी जो अपनी प्रांतों से देवी घटना कहै । वह गवाह जो चश्मदीद माजरा बयान करे । ददन काया करि कंचन चेचनि करी जपमाली । अनेक जनम लो पातिग छूट जपंत गोरप बाली।- गोरख०, पृ० १०१ ॥ चश्मनुमाई--संघा मी० [फा०] घरकार किसी के मन में भय उत्सम्न करना । बमकी या घुड़की । प्रख दिवाना। . वाली-वि०, मंचा पुं० [हिं० चौवालीस] दे० 'चौवालीस' । उ०- चश्मपोशी--संशा सौर [फा०] अखि चुराना । सामने न होना। इकतीस चवाली रात्रि मानि। सब घुटिय साठि दिन राति । कतराना। जानि!-दृ० रातो, पृ. ३१ । चश्मा--संज्ञा पुं० [फा० चश्मह, ] १. कमानी में जदा हमामीने - चवालीस-संज्ञा पुं० [हिं० चौवालीस] दे० 'चौवाली। या पारदर्शी पत्थर के तालों का जोड़ा, जो प्रांगों पर उनका वाव रंगपु[हिं० चौबाई] १.चारों ओर फैलनेवाली चर्चा । दोष दूर करने, दृष्टि बढ़ाने प्रच्या धूप, चमक या गर्दै प्रादि .. प्रवाद । अफवाह । २. चारों ओर फैली हुई बदनामी । निंदा से उनकी रक्षा करने और उन्हें दा रखने के अभिशाप से , की चर्चा। किसी की युनाई की चर्चा। उ०- (क) नैनन तें लगाया जाना है । ऐनक। यह भई बड़ाई। घर घर यह क्याव चलावत हमलों भेंट न विशेष- चमें के ताल हरे, लाल, नीले, मकर, पौर. कई रंग के माई।--सूर (शब्द०)। (न) ये परहाई लोगाई सर्व, निति होते हैं। यूर की चीजें देखने के लिये नतोदर प्रोर पास की • छोम निवाज हमें बहती हैं। बातेचाव भरी सुनि के रिस चीजे देखने के लिये उन्नतोदर तालों का चश्मा लगाया सागति मैं चुप हहती है। -निवाज (जन्द०)। (ग) ज्यों जाता है। . ज्यों चयाव चल नह पोर धरै चित चाव ये त्योहि त्यों चोसे क्रि० प्र०--चढ़ाना --लगाना।नगना।। . . (नद०.। महा०--चममा लगनाखों में घरमा लगाने ती पावस्थरता 12०प्र०-फरना।-चलना।-चलाना। होना । जैसे, अब तो उनकी प्रान कमजोर हो गई है। रश्मा ३.पीड पोछे की निंदा । चुगलखोरी। लगता है। चदि- मि० देविका। २. पानी का सोता। सोता विक-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का पेड़ कि । यौ० -वाम ए-खिच, समन-ए-हया=प्रमत फाटया मौना। बायका- कांचनामकी प्रौषधि दि००'च'। कम ए-सार= जहां पर बहती हों। चदंग:-सं० [ हिचाई है 'नवाई। ३. छोटी नदी। छोटा दरिदा। ४. यो दलामय। 2. गई न्य-चन्या - संज्ञा , एक प्रोधि । वि० दे० 'चाय'। या ट। चन्यता मि] गजपोपन । चपक पक्ष नेत्र । पर। पन्या-मामे मं०] दे० चन्म। चौपचीत