पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४१६

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चषक १४६५ चहकारा चषक-संक्षा पुं० [सं०] १. मद्य पीने का पात्र । वह वरतन जिसमें लगना। चिपकना । 10-ज्यों नाभी सर एक नाल नव शराब पीते हैं। प्याला। उ०-(क) प्राण ये मन रसिक कनक कमल विवि रहे चसी री ।- सूर (शब्द०)। . . ललिता घी लोचन चपक पिवत्ति मकरंद सुख रासि अंतर चसम -संधा पुं० [फा. चश्म] सं० 'चरम' । सची ।---सूर (शब्द०)। (ख) इंद्रनील मणि महा चपक चसम- मंना पु० देश०] रेशम में तागों में से निकला हुमा निकम्मा था सोम रहित उलटा लटका :- कामायनी, पृ० २४ । २. अंश । रेशम का खुज्झा। मधु । शहद । ३. एक विशेष प्रकार की मदिरा। चसमा --संज्ञा पुं० [फा० चश्मह.] दे॰ 'चश्मा'। . चषचोल -संधा पुं० [हिं० चप+ चोल (= वस्त्र)] अाँख की चस्का-संज्ञा पुं० [हिं० चसका] दे० 'चसका। पलक । प्रांख का परदा । उ०-~-चलिगो कुंकुम गात तें दलिगो चस्पा-वि० [फा०) चिपकाया हप्रा । सटाया हपा । लेई प्रादि से। नयो निकोल । दुरै दुरायो क्यों सुरत मुरत जुरत चपचोल । लगाया हया। ---शृ सत० (शब्द०)। शि०प्र०करना ।-होना। चषण-संक्षा पुं० [सं०] १. भोजन । भक्षण । २. वध करना । क्षय चस्म@+-संज्ञा पु०फा० चश्म] २० 'चश्म' । उ०-हूर बिना सरोद करना। हनन करना। सब बाजे चस्म बिना राब दरस ।-मलूक० वानी, पृ०४ । चपति-संहासं०] १. भोजन। भक्षण । २ वध । हनन । ३. चस्मा [फा० चश्मह1 दे० 'चश्मा' उ०-दिए ललाट । पतन । क्षय । हास [को । लगाए चस्मा घुरकत हरदम । -प्रेमघन०, भा० १, पृ० १४ । चपाल-मंछा पुं० [सं०] यज्ञ के यूप में लगी हुई पशु बांधने की चस्सी--संशापु० देश०] हथेली और तलवों की खुजली। गराड़ी। चह-संज्ञा पुं० [सं० चय] १. नदी के किनारे कच्चे घाटों पर चषिC-- संज्ञा पुं० [सं० चक्षु ] चक्षु । नेत्र। उ०-अति उच। लकड़ियां गाड़कर और घासफूस तया बालू आदि से पाटकर उतंग कुरंग कुरं। धरि चष्पि गिलंद उडंद पुरं ।-पृ० रा०, १२ । ३५। बनाया हुयश चबूतरा, जिसपर से होकर मनुष्य और पशु चस- संवा स्त्री | देश० ] किसी किनारदार कपड़े के ऊपर या नीचे प्रादि नावों पर चढ़ते हैं । पाट । २. बांस या तस्ते बिछाकर की ओर बनी हुई कलाबत्तू या किसी दूसरे रंग के रेशम या पारपार पाने जाने के लिये बनाया हुअा अस्थायी पुल । सूत की पतली लकीर या धारी। क्रि०प्र०--बाँधना । चसक'-संवा स्त्री० [देश॰] १. हलका दर्द । कसक । २. गोटे या चह --संज्ञा सी० [फा० चाह] गड्ढा । गत । अतलस श्रादि की पतली गोट जो संजाफ या मगजी के प्राने यौ०-~चबच्चा। लगाई जाती है। चहक ---मधा स्त्री० [हिं० चहकना] 'चहकता' का भाव । लगातार चसक*- संज्ञा पुं० [सं० चषक दे० 'चपक' । होनेवाला पक्षियों का मधुर शब्द । चिड़ियों का चहचह शब्द । चसकना--कि० अ० [हिं० चसक] हलकी पीड़ा होना । मीठा दर्द चहकर-संघा पुं॰ [देश॰] दे० 'चहला'। . से होना । टीसना। चसका-संज्ञा पुं० [सं० चषण ] १. किसी वस्तु (विशेषतः खाने चहकना'--कि० अ० [अनु०] १. पक्षियों का ग्रानंदित होकर मधुर पीने की वस्तु ) या किसी काम में एक या अनेक वार मिला सन्द करना । चहचहाना । २. उमंग या प्रसन्नता से अधिक . बोलना !--(वाजारू)। हुप्रा आनंद, जो प्रायः उस चीज के पुनः पाने या उस काम के पुनः करने की इच्छा उत्पन्न करता है । शौक । चाट । २. " चहकनारे---क्रि० स० [हिं० चहका ] 'जलाना। आग लगाना । इस प्रकार की पड़ी हुई आदत । लत । जैसे,--उसे शराव उ.---सीरी समीर सरीर दहै, चहके चपला चख ले करि पीने का चसका लग गया है। ऊकै।-घनानंद, पृ०२७ । २. दे० 'चमकना'। कि०प्र०....डालना |---पड़ना । लगना। चहका'--संशा पं० [सं० चय] ईट या पत्थर का फर्श । चसकीg- वि० [हिं० चसका चाववाला। चाह या चसकावाला। चहका--संक्षा पुं० [देश॰] १. जलती हुई लकड़ी लुपाठी । लूका। उ०-भाव वेड नेह के जल में, प्रेम रंग दइ बोर । चसकी मुहा०--चहका देना या लगानालका लगाना । प्राग लगाना । चास लगाइ के रे, खूब रंगी झकझोर ।---संतवाणी. भा० जलाना ।--(स्त्रियों की गाली)। २, पृ०२। चसना'-भि० अ० [सं० चपरण] १. प्राण त्यागना । भरना। २. बनेठी। ३. होली के अवसर पर गाया जानेवाला एक प्रकार २.फंदे से फंसकर किसी मनुष्य का कुछ देना, विशेषतः किसी का गाना। गाहक का माल खरीदना ।-(दलाल)। ३. चखना। चहका ---संज्ञा पुं० [हिं० चहला कीचड़। चला। स्वाद लेना । चाटना । उ०-गिरि मद्धि गहिर गुझाइ वसहि, चहकार---पंडा सी० [हिं० चहक] दे० 'चहक' । नीर समीप न संचरहिं । सोमेरा सुतन प्रापेट डर, इम डढाल चहकारना कि० अ० हि० चहकार] २. 'चहकना। उस सह चहि ।-पृ० रा०,६।१०१। चहकारा'@-वि० हिं०सहफना] कलरव करनेवाला । चहकनेवाला। चसना-मि० भ० [हिं० चाशनी ] दो चीजों का एक में सदना । चहकारा--संज्ञा पुं० [हिं० चहकार चहक । गड्डा । गत