पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४१७

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पहलुम : चहचहा-संश पुं० [हिं० चहचहाना] १. 'चहचहाना' का भाव। ___ चहक । २:हंसी दिल्लगी 1 ठट्ठा । चुहलबाजी। मि०प्र०-मचना ।-मचाना। चहचहा-वि० [वि. ली. चहचही] १. जिसमें वह चह शब्द हो। चल्लास शब्दयुक्त । ३० . चवही चुहिल चहकित अलीन की।- रसखान (शब्द०)। २. आनंद और उमंग उत्पन्न करनेवाला । बहुत मनोहर । उ० चहचही चहल पहुधा चार चंदन की चंद्रक चुनीन चौक चौकनि चढ़ी है श्राव ।-पद्याकर पं०, पृ०१५। ३. ताजा । हाल का । पहचहाना-क्रि० ० [अनु०] पक्षियों का चह चह शब्द करना।

. यहकना । चहकारना ।

• चहचहाट-संघा श्री [हिं० चहचहाना+पाट (प्रत्य॰)] दे यहचहाहट' । चहचहाहट- संज्ञा स्त्री० [हिं० चहचहाना+पाहट (प्रत्य०) चहचहाने का भाव या स्थिति। चहटा --- संज्ञा पुं० [अनु॰] कीचड़। पंक । बहहुना@...--वि० [प्रा. चड (मध्यागम ह) चहड+ना (प्रत्य०)] 'चे चढ़ना । १०-बीज न देख चहड्डियां प्री परदेस गर्वाह । आपण लीय मदुक्कड़ा, गलि लागी सहरांह। - ढोला०, चहता -- संज्ञा पुं० [हिं० चाहता या चहेता दे० 'चहेता'। चहनना--क्रि० स० [हिं० चहलना चहलना । दवाना । रौंदना । मुहा०-चहनकर खाना बहुत अच्छी तरह खाना। कसफर चाना । ३०-लुचई पोइ पोइ घी भेई । पाछे नहन डाँड सो जेई। जायसी (शब्द०)। चहना-क्रि० स० [हिं० चाहना] १. चाहना । पसंद करना । २. देवना। उ०-जय हसि हलधर हरि तन चयी । - हरि तय सव हलधर सी कह्यो।-नंद ग्रं०,पृ. २६६ । -- पहनिए- संज्ञा स्त्री० [हिं० चाहना] दे० 'चाह। चबचा--[हि चहवच्चा] दे॰ 'चहवच्चा' । ७०-यांपी वापी कूप दंडाग ते भर चबचा लाय । प० रा०, पृ० ५५ । । चबच्चा-संज्ञा पुं० [फा० चाह= (कुत्रा)+बच्चा] १. पानी (विशेषतः गंदा या नल आदि का) भर रखने का छोटा गड्ढा या होज । २. धन गाड़ने या छिपा रखने का छोटा तहखाना। विशेप-कुछ लोग इसे 'चौवच्चा' कहते हैं। पहब्बा --संचा, पुं० [हिं० चहवच्चा दे० 'चह वच्चा ' । उ०-- जनु रंक पाए दब, नल नलन नीर बहब्व ।-पृ० रा०,२०११३८ । पहर:-संहा सी० [हिं० घहल] १. अानंद की धूम । अानंदो- त्सव । रौनक 15०-हरख भए नंद करत बधाई दान देत कहा कहो महर की। पंच शब्द ध्वनि वाजत नाचत गावत मंगलचार चहर की।--सूर (शब्द०)। २. जोर का शब्द । गोर गुल । हल्ला। 50-मथति दधि जसुमति मथानी धुनि रही घर गहरि । श्रवन सुनति न महरि बातें जहाँ तह गई चहरि ।-सूर (शब्द०)1. ३.उपद्रव । उत्पात। उ०- सुत' को , बरजि राखौ महरि । जमुन तट हरि देख ठाढ़े डरनि यादें बहुरि । सूर ग्रामहि नेक वरजौ करत है । अति चहरि । -सूर (शब्द०)। चहर-वि० १.वडिया। उत्तम । २. चुलवुला । तेज । उ० - गूढ़ गिरिगिरि गुलगुल से गुनाव रंग चहर चगर चटकीले हैं वालक के ।-सूदन (शब्द०)। चहर-संक्षा पुं० [हि चौहट] चीक! बाजार । चत्वर । ३०- इह देही का गरब न करना माटी में मिल जासी । यो संसार चहर की बाजी साँझ पड्या उठि जासी ।--सुदर ग्रं०, भा० १, पृ०६९। चहरना - क्रि० अ० [हिं० चहर] आनंदित होना । प्रसन्न होना । 10-आनंद भरी जसोदा उमगि अंग न समाति अानंदित भई गोपी गावती चहरि के ।--सूर (शब्द०)। चहरना-क्रि० स० [?] निदा करना । ८० - गह चढ़िया संतोव गज, धर पड़ ज्यानू घोक । चढ़िया ज्यानू चहरजे, लालच गरधम लोक ।-बाँकी० ग्रं०, भा० ३, पृ०५६ ।। चहराना:@-क्रि० अ० [हिं०] १. दे० 'चहरना' । २. दे० 'चरीना। चहराना-कि० अ० [देश॰] दरकना । फटना। तड़कना । चटकना । चहरुम-वि० [फा० चहारम] ३० 'चहात्म। चहल-संशा खी० [अनु०] १. कीचड़ । कीच । कर्दम । उ०-- चहवही चहल चहूघा चार चंदन की चंदक चुनीन चौक चौकनि चढ़ी है प्राव ।-पद्याकर ग्रं॰, पृ० १२५ । २. कीचड़ मिली हई कड़ी चिकनी मिट्टी की जमीन जिसने चिना हल चलाए जोताई होती है। चहल--संशा की० [हिं० चहचहाना] प्रानंद की धूम । आनंदोत्सव । रौनक। चौ०--चहल पहल । चहल'C1-वि० [फा० चिहिल] चालीस । जैसे,-चहल्लुम में चहल । उ०—कहे हैं बाजरत ता चहल माल परियां फूही समज बेलाड़ का हाल। दक्खिनी०, पृ० १७६ । चहलकदमी-संदा मी० [हिं० चहल + अ० कदम x हिं० ई (प्रत्य॰)] धीरे धीरे टहलना, धूमना या चलना। चहलना- क्रि० स० [हिं० चहनना] १. दे० 'चलना'। महा०-चहलकर खाना=दे० 'चहनकर खाना' । १२. किसी वस्तु को पैरों से दबाना । रौंदना'। चहलपहल-संरा सौ. [अनु०] १. किसी स्थान पर बहुत से लोगों के आने जाने की वूम । अवादानी । २. बहुत से लोगों के आने जाने के कारण किसी स्थान पर होनेवाली रौनक । मानंदोत्सव । पानंद की धूम । क्रि० प्र०–मचाना । होना । चहला संज्ञा पुं० [सं० चिफिल] कीचड़। पंक। उ०—(क) चंदन के चहला में परी परी पंकज की पसरी नरसी मैं।- (शब्द०)। (ख) इक भीज, चहल पर, वूई, वह हजार।- विहारी २०, दो०४६१ । चहलो संझा की० [देश॰] कुएं से पानी खींचने की चरखी। गराड़ी। घिरनी। चहलुम--संधा पुं० [फा० चेहलूम'] दे० 'चेहलुम' ।