पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चहा १४६७ चांडाल चहीलाता आर गाली ०, मा चहा-संज्ञा स्त्री० [हिं० चाह[ चाह । इच्छा। मनोरथ । कामना। चहेता--वि० [हिं० चाहना+एता (जय०)] [वि० श्री चहेती] उ०-पोरन के अनबाड़े कहा अरु बाढ़ कहा नदि होत चहा जिसके साथ प्रेम किया जाय । जिसे चाहा जाय । प्यारा। है।--भूषरण ग्रं॰, पृ०६३। चहेती-वि० सी' [हिं० चहेता] जिते चाहा जाय । प्यारी । जैसे,- चहार--वि० संश पुं० [फा०] चार । चार की संख्या । चहेती स्त्री। यो०-चहारगोशा = चौकोना। चहारचंद चौगुना। चहारदह चहेल!-संभा सी० [हिं० चहन} १. चहला। कीचड़। २. वह -चौदह । चौदह की संख्या। चहारयारी-मुसनमानों भूमि जहाँ कीचड़ वहृत हो । दलदली भूमि । का सुन्नी नामक संप्रदाय जो मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारी चहोड़ना--क्रि० स० [हिं०] ६० 'चहोरना। चार खलीफों में विश्वास रहता है जिनके नाम अबूधकर चहोड़ा-संझा पुं० [हिं०] ६० 'चहोना । (६३२-३४ ई०), उमर (६३५.४४), उसमान चहोरना,-कि० अ० [देश०] १. धान या अन्य किसी वृक्ष के पौधे (६४४-५५ ई०) और अली ( ६५५-६६ ई०) हैं। को एक जगह से उखाड़कर दूसरी जगह लगाना । रोपना। चहारदीवारो-संक्षा श्री० [फा०] किसी स्थान के चारो ओर की 'ठाना । २. सहेजना । संभालना । देश भालकर सुरक्षित दीवार । प्राचीर । कोट । परिखा । परकोटा । करना । उ०-- फाटी फूटी मारी छीके घरी चहोरि । चहारमा-वि० [फा० चहारुम] दे॰ 'चहारुम'। उ०-वहारम कोई एक नौगुन मन बसा दह में परी बहोरि ।-कवीर उस कते सकरात जब होय । जवान बंद होयगा सब यो प्रकल (शब्द०)। ___ खोय।-दक्खिनी०, पृ० ११४॥ चहोरनारे-कि०स० दे० 'चगोरना'। चहारुम'--वि० [फा०] चौथा। चतुर्थ । चहोरा--संज्ञा पुं० [हिक चहीरना] जड़हन धान जिसे रोपुवा धान चहारुम-संज्ञा पुं० किसी वस्तु के चार भागों में से एक भाग। भी पहने हैं। चतुर्थांश । चौथाई भाग । चांग-संवा पुं० [म० चाङ्ग] १. दांतों की सफेदी या सुदरता । २. चहीला -संज्ञा पुं॰ [देश॰] मार्ग । रास्ता । उ-दियं चहीले चांगेरी या अमलोनी नामक साग (फो०] । चालता पार गाल इक दोय । खाड़ेती खोटो हुवे, धवल न चांगरिका-संशा सी० [सं० चाङ्गी रिका] एक वनोपधि जो बात- खोटौ होय ।-बाँकी० ग्रं०, भा० १, पृ० ४२ । पित्त-नाशक होती है कि चहुँ @-वि० [हिं० चार] चार। चारो। उ--चहका संगी चांगेरी-संशा सी० [सं० चाकरी] अमलोनी जिसका साग होता चहूँ संगि हेतु ।-प्राण, पृ०६०। है। राट्टो लोनी ।। विशेष--यह शब्द यौगिक के पहले पाता है। जैसे, चहू'घा, चांचल्य--संज्ञा पुं० [सं० चाञ्चल्य] चंचलता। चपलता। चहुचक्र (चारो ओर ) पादि। चांड--संज्ञा पुं० [सं० चाण्य] १. तेजी । वेग । प्रचंडता को। चहुक-संचा स्त्री॰ [हिं० चौक] दे० 'चिहु क'। चांडाल-संशा पुं० [सं० चारडाल] [लो चांटा, चांटालिन] चहु कना--नि० अ० [हिं० चौकना] दे० 'चिहुँचाना' । १. अत्यंत नीच जाति । डोम । श्यपच । चहुँ खाँ@--वि० [हिं० चहु+सौं (घर) ] चारों पोर । चतुर्दिक । विशेप---मनु के अनुसार चांडाल शूद्र पिता और ब्राह्मणी माता उ० -- अब सुनहु वंस तिनकै अपार यह । भइय सृष्टि चहुँ खाँ से उत्पन्न हैं और अत्यंत नीचमाने गए हैं। उनकी बस्ती ग्राम (चहुघा )निवार ।--ह. रासो, पृ.५। के बाहर होनी चाहिए, भीतर नहीं । इनके लिये सोने चांदी चहुटना -क्रि० स० [हिं०] चोट पहुंचाना । चपेटना । पादि के बरतनों का व्यवहार निषिद्ध है । ये जूठे बरतनों में चहुमान - संज्ञा पुं० [हिं० चौहान] दे० 'चौहान' । उ०-दक्खिन भोजन कर सकते हैं। चांदी सोने के बरतनों को छोड़ और दिसि रमथंभगढ़, तहँ हमीर चहुप्रान 1- हम्मीर०,०१॥ किसी बरतन में यदि चांडाल भोजन कर ले, तो वह किसी चहुरा--वि० पुं० [हिं०] १. 'चौधरा'। २. 'चोहरा'। प्रकार शुद्ध नहीं हो सकता । कुत्ते, गदहे शादि पालना, मुरदे चहुरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० चह] एक पात्र या मान । का कफन आदि लेना, तथा रघर उधरफिरना इनका व्यवसाय चहुबान-संज्ञा पुं० [हिं० चौहान दे० 'चौहान' । ठहराया गया है । यज्ञ और किसी धर्मानुष्ठान के समय इनके चहूँ@t- वि० [मं० चतुर, हिं० चौ. दे० 'नहुँ। दर्शन का निषेध हैं। इन्हें अपने हाथ से भिक्षा तक न देवी. चहूँटना:---क्रि० अ० [हिं० चिमटना] सटना । लगना । मिलना । चाहिए, सेवकों के हाथ से दिलवानी चाहिए । रात्रि के समय उ०-डोरी लागी भय मिटा, मन पाया विवाम । चित्त इन्हें बस्ती में नहीं निकलना चाहिए। प्राचीन काल में चहू'टा राम सों, याही केवल धाम ।- पायीर (शब्द०)। अपराधियों का यध इन्हीं के द्वारा कराया जाता था । लाया चहेटना-- क्रि० स० [देश॰] १.किसी चीज को दबाफर उसका रस रिसों की दाह घादि क्रिया भी वही करते थे। या सार भाग निकालना । गारना । निचोड़ना । १०-चंद पर्या-श्यपच । नव। मातंग विवायोति। जनयम च हेट समेटि सुधारस कीन्हों तवं सिय के अधरान को। २. नियाद । श्वपाक | अंतेवासी । पुष्फस । निष्का- दे० पेटना'। २. पुपारी, टाट दुरा, कर या निष्ठुर मनुष्य। पतित मनुष्य ।