पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४२०

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चोड़ १४६६ चांसलर चांसलर संज्ञा पुं० [अं०] विश्वविद्यालय का वह प्रधान अधिकारी या कई वर्षों तक बिना जोती बोई छोड़ दी जाय। परती जिसके बाद वाइस चांसलर होता है। छोड़ी हुई जमीन । २. एक प्रकार की मटिपारी भूमि । चाँइयाँ-वि० [हिं० चाँई] दे० 'चाई। चाँचर, चाँचरि संग पुं० [देश॰] १. टट्टी या परदा जो किवाड़ चाँई-वि० सं० चचर (= दक्ष) या देश० घई (नेपाल की एक के बदले काम में लाया जाय । जंगली जाति जो डाका डालती है।)] १. ठग । उचक्का। चचिया-संक्षा पुं० [हिं० चौई ?] १. एका प्रकार की छोटी जाति २. होशियार । छली । चालाक। जो चाईगिरी, चोरी, लूट मार का काम करती है। २. दे० चांई--संज्ञा पुं० वह जो चाँईपन करता है। चाई का कार्य करने- चाई'1३. चोर । ४. डाकू। वाला व्यक्ति । चाँचियागलवत, चांचि याजहाज-संसा पुं० [हिं० घाई ?] डाकुयों चाई-संशा श्री० [देश॰] सिर में होनेवाली एक प्रकार की फुसियां का जहाज जो समुद्र में सौदागरों के जहाजों को लूटता है। जिनसे बाल झड़ जाते हैं। चांचियागिरी-संशो० [हिं० चांचिया+फा० गीरी] चाईपन, . चांई-वि० जिसके बाल झड़ गए हों । गंजा। चोरी, डाका आदि का धंधा। चाईचई-संथा स्त्री॰ [देश॰] सिर में होनेवाली एक प्रकार की चर्चा-संहा पुं० [हिं० चाँचिया] दे० 'चांचिया'1 . फुसियाँ जिनके कारण बाल गिर जाते हैं। चाँचुरा--संज्ञा पुं० [देश॰] चोंच । ३० बकासुर रचि रूप माया चांक--संज्ञा पुं० [हिं० ची (चार)+अंक =चिह्न)] १. काठ की रह्यो छल करि पाइ। चाँचु पकरि पुहुमी लगाई इक अकास वह थापी जिसपर अक्षर या चिह्न खुदे होते हैं और जिससे समाई।—सूर (शब्द०)।। खलियान में अन्न की राशि पर ठप्पा लगाते हैं । २. खलियान चाट--संज्ञा पुं० [हिं० छींटा] हवा में उड़ता हुमा जलकरण का प्रवाह में अन्न की राशि पर डाला हया चिह्न । ३. टोटके के लिये जो तूफान पाने पर समुद्र में उठता है।- (लश०)। शरीर के किसी पौड़ित स्थान के चारों ओर खींचा हुपा मुहा०---चौट मारना जहाज के बाहरी किनारों के तने पर घेरा। गोंठ ! या पाल पर पानी छिड़काना। चांकना-वि० सं० [हिं० चांक] १. खलियान में अनाज की राशि विशेष-यह पानी इसलिये छिड़का जाता है जिसमें तख्ने धूप पर मिट्टी, राख या ठप्पे से छापा लगाना जिसमें यदि अनाज की गरमी से न चिट या पाल कुछ भारी हो जाय । निकाला जाय, तो मालूम हो जाय। उ० तुलसी तिलोक चांटा'--संघा पुं० [हिं० चिमटना [ौ० चांटी] च्यूटा । चिउटा । की समृद्धि सौज संपदा सकेोलि चांकि राखी राशि जागरु उ०-(क) नेरे दूर फूल जस कांटा। दूर जो मेरे जस गुरु जहान गो।- तुलसी (शब्द०)। २. सीमा बाँधने के लिये चौटा।-जायसी (शब्द०) (ख) अदल कहाँ प्रथम जस किसी वस्तु को रेखा या चिन्ह खींचकर चारों ओर से घेरना। होई। चौटा चलत न दुखवं कोई।-जायसी (शब्द०)। हद खींचना । हद बांधना। 30--सरल भुवन शोभा जनु चांटा-संहा पुं० [अनु० चट या सं० चट (=तोड़ना)] थप्पड़ । चौकी।-तुलसी (शब्द०)। ३. पहचान के लिये किसी वस्तु तमाचा । चपत । पर चिह्न डालना। कि० प्र०-जड़ना-देना ।-मारना ।—लगाना । चांटी-संसा खी० [हिं० चांटा] १. चीटी। उ०-कीन्हेसि लावा, चांका-संज्ञा पुं० [हिं० चॉक] 2. 'चाक' । २. दे० 'चयका'। चांगज-संज्ञा पुं० [देश॰] पुं० 'चांगड़ा'। एंदुर चांटी। -जायसी (शब्द०)। २. वह कर जो पहले चाँगड़ा - संघा पुं० [देश॰] तिब्बत देश का एक प्रकार का वकरा। कारीगरों पर लगाया जाता था। ३. तवले की संजाफदार चांगला' लिहिचंगा] १. स्वस्थ । तंदुरस्त । हृष्टपुष्ट । मगजी जिसपर तवला वजाते समय तर्जनी उंगली पड़ती है। . ४. तबले का वह शब्द जो इस स्थान पर तर्जनी उंगली का २. चतुर । चालाक . प्राघात पड़ने से होता है। चांगला--संज्ञा पुं० घोड़ों का एक रंग। चौड़-वि० [सं० चंड ] १. प्रबल । बलवान् । उ०-- दान कृपान चांच@- संज्ञा स्त्री० [हिं० चोंच, अन्य रूप, चंच, चाँच, चूच ] बुद्धि वल चांड़े।--लाल (शब्द०)। २. उन। उद्धत । दे० 'चंचु' । उ-बावहिया तू चोर थारी चांच करावि । शोध । 30-धीर धरहु फल पाचहगे। अपने ही पिय के राति ज दीन्हीं लोर मइ जाण्यउ प्री आबियउ । ---ढोला, मुख चौडे कबहूँ तो बस प्रावहुगे।-सूर (शब्द॰) । ३. बढ़ा चढ़ा । श्रेष्ठ । ४. अधाया हमा। अफरा हया। तृप्त। चांचर--संज्ञा पुं॰ [देश॰] सालपान नाम का क्षुप । वि०३० सालपान'।। १०-ऊधो तुम्हरी बात इमि जिमि रोगी हित माँड़ । जो चांचर, चाँचरि--संज्ञा स्त्री० [सं० चर्चरी] बसंत ऋतु में गाया जेंथत है सेर भर सो किमि होवे चाँड़ ।-विथाम (शब्द०)। जानेवाला एक राग। चर्चरी राग जिसके अंतर्गत, होली, ५. चतुर । चालाक । . फाग, लेद इत्यादि माने जाते हैं। उ०तुलसीदास चांचरि . चांडर--संजा बी०सं० चण्ड (-प्रवल)] १. भार संभालने का खंभा। मिसु, कहे राम गुणग्राम 1- तुलसी (शब्द०)। टेक । थूनी। ..२, चांचरि-संवा स्त्री॰ [देश॰] १. वह जमीन जो एक वर्ष तक क्रि०प्र०-देना ।-ल गाना । .