पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४२२

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चांदमारो २. बिछाने की बड़ी सफेंद चद्दर । सफेद फर्य । ३. ऊपर तानने खूब माल मारना । (२) स्त्री से प्रथम समागम करना 1 सुदर का सफेद कपड़ा। मतगीर । ४. गुलचौदनी । तगर । स्त्री से प्रथम समागम पारना। चांदमारी-मंद्या स्त्री० [हिं० चाँद+मारना] बंदूक का निशाना लगाने २. धन की प्राय । आर्थिक लाभ । उ०-अाजकल तो उनकी का अभ्यास । दीवार या कपड़े पर बने हुए चिह्नों को लक्ष्य चाँदी है। ३. खोपड़ी का मध्य भाग। जांद। चंदिया। करके गोली चलाने का अभ्यास । महा०-चाँदी सुलवाना=चांद के ऊपर बाल मुहाना। चाँदला-सं० [हिं० चाँद] १. (दूज के चंद्रमा के समान) टेढ़ा। ४. एक प्रकार की मछली जो दो या तीन इंच लंबी होती है। वक्र । कुटिल । २. दे० 'चंदला'। चाप --संज्ञा पुं० [सं० चाप] दे० 'चाप' चाँदनी वस्त्र --संक्षा पुं० [हिं० चांदनी+सं० वस्त्र] सफेद बारीक चाप-संवा मी हिं० चपना] १ प या दब जाने का भाय । मलमल । उ०-राधे निरख ति चांदनी पहिरी चाँदनीवस्त्र । दवाव । २. रेल पेल । धक्का : उ०-कोई काहू न सम्हार बदन-चंद्रिका-चाँदनी चतुरानन को अस्त्र-ग्रज० ०, होत याप तस चौप। धरति प्रापु कहें कपि सम्म पापु कहें पृ०१८। काप।-जायसी (शब्द०)। चांदवाला-संज्ञा पुं० [हिं० चांद+वाला] कान में पहनने का एका प्रकार का बाला जो अर्धचंद्राकार होता है। क्रि० प्र०- पड़ना। चाँद सूरज -संक्षा पुं० [हिं० चाँद-+सूरज] एक प्रकार या गहना २ बंदूक का वह पुरजा जिसके द्वारा कुंदे से नली जुड़ी रहती जिसे स्त्रियाँ चोटी में गूथकर पहनती हैं। है। ३. पैर की ग्राहट । पैर जमीन पर पड़ने का शब्द । वि० ४० 'चाप। चांदा-संश पुं० [हिं० चाँद ] १. वह लक्ष्य स्थान जहाँ दूरवीन लगाई जाती है। २. पैमाइश या भूमि की माप में यह विशेष चाप-संग की.देशप सोने की ये कीलें जिन्हें लोग अगले दांतों स्थान जिसकी दूरी को लेकर हदबंदी की जाती है। ३. पर जड़वाने हैं। छप्पर का पाखा । ४. एक लकड़ी का पटरा जिसपर अभ्यास चाप व संशा पुं० [हिं० चंपा] चंपा का कुन । ०-कोई परा के लिये निशान बने रहते हैं। ५. ज्यामिति में प्रयुक्त होने- भंवर होय वास कीन जनु चाप। कोइ पतंग भा दीपक कोइ वाला एक उपकरण जो चंद्रमा की प्राकृति का होता है और प्रधजर तन काप ।-जायसी (शब्द०)। कोरा बनाने या नापने के काम आता है। चापना-क्रि० स० [सं० चपन (=मांडना)] १. दबाना । मोड़ना। चाँदी--संज्ञा सी० [हिं० चाँद] १. एक सफेद चमकीली धातु जो उ०-बड़े भागी अंगद हनुमाना। चौपत चरणकमल विधि बहुत नरम होती है। इसके सिक्के, भाभूपण पोर वरतन नाना ।--तुलसी (शब्द०)। २. जहाज का पानी निकालने इत्यादि बनते हैं। के लिये पंप का पेंच चलाना।-(लश०)। विशेष--यह खानों में कभी शुद्ध रूप में कभी दूसरे खनिज चांपर-वि० [सं० चपल दे० 'चपल'। उ०-तागो तेसी तोड़ बंधन पदार्थों में गंधक, संखिया. सुरमे आदि के साथ मिली हुई पाई बोई वांध नहीं । चापर चल्यो चहोड़ सरहट हक में मोरिया। जाती है। इसका गुरत्व सोने के गुरव का प्राधा होता है। -- राम धर्म०, पृ०७१ । इसका अम्लक्षार बड़ी कठिनता से बनता है। चांदी के चापाकल-संक्षा सी० [हिं० चांपना+ कल] वह कल या मशीन अम्लक्षार पोसादर के पानी में घोलकर सुखाने से ऐसा जिससे हाथ से दबाकर पानी निकालते हैं। रासायनिक पदार्थ तयार होता है, जो हलकी रगड़ से भी । चायचाय-संशात्री० [वनु०] व्यर्थ की वकवाद । बकवक । बहुत जोर से भड़कता है। वंद्य लोग इसे भस्म करके रसोपध क्रि० प्र०-फरना । मचाना। बनाते हैं। हकीम लोग भी इसका वरक रोगियों को देने चविचव संज्ञा डी० [अनु०] २० 'चार्य चाय। चांदी का तार बहुत अच्छा खिंचता है जिससे फारचोवी चावर'- राधा मा [म० चामर । के अनेक प्रकार के काम बनते हैं। चांदी से कई एक ऐसे हेत हरि हार दीपक ज्ञान हरि जोति विचार ।-दादू, क्षार बनाए जाते हैं. जिनपर प्रकाश का प्रभाव बड़ा पृ०६६८। विलक्षण पड़ता है। इसी से उनका प्रयोग फोटोग्राफी में चांवर --संज्ञा पुं० [हिं० चावल ][सौ० चावरी] दे॰ 'चावल'। होता है। उ०--(क) सो एक दिन वह वाई अपने घर में बैठी चांवर पर्या-रौप्य । रजत । चामीकर । वीनत हती।-दो सौ वावन०, भा०१, पृ० ३१७ । (ख) यौ०-चाँदी का जूता=वह धन जो किसी को अपने अनुकूल या तिल चावरी बतासे मेवा दियौ कुवरि की गोद । --सूर० वश में करने को दिया जाता है । जैसे, -घूस, इनाम आदि । १०1७०४। चाँदी का पहासुख समृद्धि का समय। सौभाग्य की चा-रांचा पी० [चीनी० चा] दे० 'चाय'। दशा । धनधान्य की पूर्णता की अवस्था। चाइल-संज्ञा पुं० [सं० प्रा० चय,] शरीर । देह। उ०-सा मुहा०-चाँदी कर डालना या देना:-जला कर राख कर डालना पंजर दिय राज बर। सस्त्र लग नहिं चाइ।-पृ० रा० जैसे,—तुम तो तमाकू को चाँदी कर डालते हो, तब दूसरे २५ । ५२५ । को देते हो। चाँदी काटना=(१) खुब रुपया पैदा करना। चाइ-संधा पुं० [हिं० चाय] 1 उमंग । उ-फिय हा इलु पित