पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४२४

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चाक १५०३ चाट चाक-वि० [सं०] [वि० सी० चाफो] १. चक्र संबंधी । २. चक्र की चाक्षुषयज्ञ-संक्षा पुं० [सं०] सुदर दृश्यों को देखकर तृप्त होने की प्रा तिवाला। ३. जिसमें पहिए लगे हों (गाड़ी)। ४. चक्र क्रिया का भाव । नाटक प्रादि देखना (को०] । द्वारा किया जानेवाला (युद्ध) [को०] । चाख संज्ञा पुं० [सं० वाष] दे० 'चाष'। चाक्रायण--संज्ञा पुं० [सं०] चक्र नामक ऋपि के वंशधर जिनका चाखनहार-वि० [हिं० चोखना--हार (प्रत्य०)] १. चखनेवाला!.. उल्लेख छांदोग्य उपनिषद् में है। खानेवाला। २. रस लेनेवाला । उ०-दारिव दख लेहिं रस, चाधिक-संघा पुं॰ [सं०] १ दूसरों की स्तुति गानेवाला । चारण । विरसहि प्राव सहार । हरिअर तन सुबटा कर जो अस चाखन : भाट। हार ।---जायसी ग्रं० (गुप्त), पृ०.३४६... विशेप-याज्ञवल्क्य स्मृति में चाक्रिक के अन्नभोजन का । . निषेध है। चाखना -कि० स० [हिं० चखना] दे॰ 'चखना'। . २. तेली । ३. गाड़ीवान । ४. कुम्हार । ५. अनुचर । संहचर। चाखुरा संसानी [देश॰] घास जो खेतों की निराई करके निकाली गई हो। चाफिकर-वि० [ वि० स्त्री० चाक्रिको ] १. चक्राकार । २. चक्र चाख २-- संज्ञा स्त्री० [हि चेखुर] गिलहरी। ___संबंधी । ३. किसी चक्क या मंडली से संबंध रखनेवाला । चाचपुट-संशा पुं० [सं०] ताल के ६० मुख्य भेदों में से एक । इसमें चाफ्रिका- संज्ञा श्रीः [सं.] एक फूल का नाम । एक गुरु, एक लघु और एक लुप्त स्वर होता है। चाकिरण- संसा पुं० [सं.] तेली या कुम्हार का लड़का को० । चाचर g+-संथा पुं० [ देशी चड (शिखा); तुलनीय हिं० टाटर ] चाक्रय-वि० [सं०] चक्र संबंधी [को०)। मस्तक । उ०-अवतार छान नमो अवधेसर सझतीवाला चाक्षुष'-३० सं०] १. चक्षु संबंधी। २. अखि से देखने का। प्रातसमैं घरणा नहीं नमायो चाचर नर वे प्रवरा चरण नभैं।

  • जिसका बोध नेत्र से हो । चक्षुग्रह्यि ।

- रघु०रू०, पृ०२५१।' चाक्षुष२- संघ. पुं० १. न्याय में प्रत्यक्ष प्रमाण का एक भेद । ऐसा .. चाचर, चाचरि- मो० [सं० चर्चरी] १. होली में गाया आने- प्रत्यक्ष जिसबा बोध नेत्रों द्वारा हो। २. छठे मनु का नाम । वाला एक प्रकार का गीत । पर्चरी राग जिसके अंतर्गत होली, विशेप-भागवत के मत से ये विश्वकर्मा के पुत्र थे। इनकी माता फाग, लेद यादि माने जाते है । उ०-तुल सिदास चावरि का नाम प्रकृति और स्त्री का नाम नला था । पुरु कृरस्त, मिस काहै राम गुन ग्राम 1- तुलसी (शब्द०)। २: होली में अमृत, द्यमान्, सत्यवान्, धृत, अग्निष्टीम, अतिरात्र, प्रद्युम्न, • होनेवाले खेल तमाशे । होली का स्वाग और हुल्लड़ । होली शिवि और उल्लुक इनके पुत्र थे। जिस मन्वंतर के ये स्वामी की धमार । हर्षकीड़ा। उ०—(क) श्रुति, पुराण बुध सम्मत थे, उसमे इंद्र का नाम मंघद्र म था । मत्स्यपुराण में पुत्रों के चाचरि चरित मुरारि । -तुलसी । (ख) सी. ये वसंत पाँ, नामों में कुछ भेद है । मार्कडेय पुराण में चाक्षुष मनु की बड़ी चाय सों चाचरि माचे, रंग राच कीच मार्च केसर के नीर । लंबी चौड़ी कथा भाई है। उसमें लिखा है कि अनमियं नामक राजा को उनको रानी भद्रा से एक पुत्र उत्पन्न हुअा। एक की।- देव (शब्द॰) । ३. उपद्रव । दंगा। हलचल । हल्ला गल्ला क्षेत्रा .. दिन रानी उस पुत्र को लेकर बहुत प्यार कर रही थी। इसने कि० प्र०-मचना 1-मचाना। में पुत्र एक्वारगी हंस पड़ा । जब रानी ने कारण पूछा, तव चाचरी-संघा श्री० [सं० चर्चरी ] योग की एक मुद्रा। उ०-- पुत्र ने कहा- मुझे खाने के लिये एक बिल्ली ताक में , बैठी. महदाकाश चाचरी मुद्रा शक्ती जाना ।—कबीर (शब्द०)। है । मैं तुम्हारी गोद में ५-६-दिन से अधिक नहीं रहने चाचा-संक्षा पु०सं० तात 1 श्री. चाची ] काका । पितृव्य । पाऊँगा, इसी से तुम्हारा मिथ्या प्रेम देखकर मुझे हंसी बाप का भाई। वि० दे० 'चचा। पाई । रानी यह सुनकर बहुत दुखी हुई । उसी दिन विक्रांत चाची-संशा को [हिं० चाचा] चाचा को स्त्री । काकी। नामक राजा की रानी को भी एक पुत्र हुआ था । भद्रा कोशल . चाट-संज्ञा स्त्री० [हिं० चाटना] १. चटपटी चीजों के खाने या से अपने पुत्र को विधान की रानी की चारपाई पर रख पाई चाटने की प्रबल इच्छा । स्वाद लेने की इच्छा । मजे की चाह । और उसका पुत्र लाकर पाप पालने लगी। विक्रांत राजा ने २. एक बार किसी वस्तु का आनंद लेकर. फिर उसी का सस पुत्र का नाम पानंद रखा। जब आनंद का उपनयन होने यानंद लेने की नाह। चसका । शोक । लालरा ! लगा, तब प्राचार्य ने उसे उपदेश दिया पहले अपनी माता कि० प्र०--लगना। की पूजा करो' । आनंद ने कहा- मेरी माता तो यहाँ है ३. प्रबल इच्छा। कड़ी चाह । लोलुपता । जैसे,—तुम्हें तो बस नहीं; अतः जिसने मेरा पालन किया है, उसी की पूजा करता . रुपए की चाट लगी है। .... .. .... . हूँ"। पूछने पर यानंद ने सब व्यवस्था कह सुनाई। पीछे . क्रि० प्र०--लगना ।-होना। . . ! राजा और रानी को हारस बँधाकर वे स्वयं तपस्या करने ./४. लत । पादत । बान'। टेय । घत । ५. मिर्च, खटाई, नमक लगे । पानंद की तपस्या से संतुष्ट होकर ब्रह्मा ने उसे मनु ... प्रादि डालकर बनाई हुई चरपरे स्वाद की वस्तु । चरपरी बना दिया और उसका नाम चाक्षुप रखा। . . और नमकीन खाने की चीजें । गजक । जैसे, सेव, दही वड़ा, ३. स्वायंभुव मनु के पुत्र का नाम । ४. चौदहवें मन्वतर के एक दालमोट इत्यादि । ऐसी चीजें पाराव पीने के पीछे ऊपर से देव गरग का नाम। भी खाई जाती हैं। जैसे,-चाट की दुकान । ।