पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४२६

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चाणक १५०५. चातुरई (शब्द०)। २. चाहनेवाला । प्रेमी। पाशिक । पासक्त । आदि कई नीतिग्रंथ संकलित कर लिए । 'चाणक्य, सब विषयों उ.--(क) तुम हम पर रिस करति ही हम हैं तुब चाड़े1. के पंडित थे । 'विपण गुप्त सिद्धांत' नामक इनका एक ज्योतिष ... निठुर भई हौं लाडिली कब के हम ठाढ़े ।--सूर (शब्द०) का ग्रंथ भी मिलता है । कहते हैं, आयुर्वेद पर भी इनका : (ख) दिन खोरी भोरी प्रति कोरी देखत ही जु श्याम भए लिखा वैद्यजीवन नाम का एक ग्रंथ है .1: न्याय भाष्यकार - चाढ़े।--सूर (शब्द०)। चाराक-संझा पं० [सं० चाणक्य] १. ईा। २. धुर्तता । चाल । वात्स्यायन और चाणक्य को कोई कोई एक ही मानते हैं, पर दगाबाजी । होशियारी। 30---यागे चाणन के तडाके लगाए . यह भ्रम है जिसका मूल हेमचंद का यह श्लोक है-वात्स्या- हैं। -सुन्दर ग्रं०, पृ०५६ ।। यनो मल्लनागः, कौटिल्य रचणाकात्मजः । द्वामिल: पक्षिलस्वामी चाणक्य-संक्षा पुं० [सं०] चणक ऋषि के वंश में उत्पन्न एक मुनि विष्ण गुप्तोऽङ्ग लश्च सः। . . . जिनके रचे हुए अनेक नीति ग्रंथ प्रचलित हैं। ये पाटलिपुत्र के चाणाक्ष--वि० [सं० चएड, हिं. चांड़-तेज+प्रक्ष:] तेज सम्राट चंद्रगुप्त के मत्री थे और कौटिल्य नाम से भी प्रसिद्ध निगाहवाला। हैं। मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम विष्णु गुप्त था। चार...संग्रा पुं० [सं०] कंस का एक मल्ल जिसे धनुपयज्ञ के समय . विशेष-विष्णु पुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर श्रीकृष्ण ने मारा था। . . . .. प्रादि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम प्राया ही है, चाणरमर्दन, चारण रसूदन-संमा पं० [सं०] श्रीकृष्ण (को०)। बौद्ध ग्रंथों में भी इनकी कथा बराबर मिलती है। वुद्धघोष चातक- संज्ञा पुं० [सं०] [मौ० चातको] एक पक्षी जो वर्षाकाल में की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तया महानाम स्थविर- रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हमा है। बहुत बोलता है । पपीहा । वि० दे० 'पपीहा'। . चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) विशेष-इस पक्षी के विषय में प्रसिद्ध है कि यह नदी, तडाग . के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध प्रादि का संचित जल नहीं पीता, केवल बरसता हया पानी मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है । ये उस समय के एक प्रसिद्ध पीता है। कुछ लोग यहां तक कहते हैं कि यह केवल स्वाती विद्वान थे, इस में कोई संदेह नहीं। चंद्रगुप्त के साथ इनकी मैत्री नक्षत्र की बूंदों ही से अपनी प्यास बुझाता है। इसी से यह की कथा इस प्रकार है । पाटलिपुत्र के राजा नंद या महानंद के मेघ की ओर देखता रहता है और उससे जल की याचना यहाँ कोई यज्ञ था । उसमें ये भी गए और भोजन के समय एक करता है । इस प्रवाद को कवि लोग अपनी कविता में बहुत प्रधान प्रासन पर जा बैठे । महाराज नंद ने इनका काला रंग लाए हैं। तुलसीदास जी ने तो अपनी सतसई में इसी चातक देख इन्हें प्रासन पर से उठवा दिया। इसपर ऋद्ध होकर को लेकर न जाने कितनी सुंदर सुंदर 'उक्तियां यही हैं। इन्होंने यह प्रतिज्ञा की कि जबतक मैं मंदों का नाश न कर पर्या-स्तोकक । सारंग । मेघजीवन । तोकक। सूगा तबतक अपनी शिखा न बांधूगा । उन्हीं दिनों राजकुमार यो। चातकानंदवर्धन-(4) मेघ । बादल । (२) वकाल । चंद्रगुप्त राज्य से निकाले गए थे। चंद्रगुप्त ने चाणक्य से मेल चातकनी-संक्षा स्त्री० [सं० जातक+हिनी (प्रत्य०)] रातकी। किया और दोनों प्रायमियों ने मिलकर म्लेच्छ राजा पर्वतक पपीहरी । 10----मैं न चाहती तब वह हार, करे, जननि ! की सेना लेकर पटने पर चढ़ाई की और नंदों को युद्ध में परास्त मेरा शृगार। पर मैं ही चातकनी बनकर तुझे पुकारू करके मार डाला । नंदों के नाश के संबंध में कई प्रकार की वारंवार । पल्लव, पृ० १०१1:.. -.; कथाएं हैं। कहीं लिखा है कि चाणक्य ने शकटार के यहाँ चातकानंदन-- सं० [० चातकानन्दन] १. वर्षाकाल । २. मेघ । निर्माल्य भेजा जिसे छूते ही महानद और उसके पुत्र मर गए। चातको- संधा सी० [सं०] मादा पपीहा । माता चातक । कहीं विपकच्या भेजने की याथा लिखी है। मुद्राराक्षस नाटक चातर-संक्षा पुं० [हिं० चादर] १. मछली पकड़ने का बड़ा जाल । के देखने से जाना जाता है कि नंदों का नाश करने पर भी २. षड़यत्र । साजिश । महानंद के मंत्री राक्षस के कौशल और नीति के कारण चार-वि० सं० चातुर या चतुर दे० 'चातुर' या 'चतुर1 चंद्रगुप्त को मगध का सिंहासन प्राप्त करने में बड़ी बड़ी कठिना- चातरंत-वि० सं० चातुरन्त चारो तरफ से चार समुद्रा से . इयां पड़ी । अंत में चाणक्य ने अपने नीतिबल से राक्षस की निर्धारित होनेवाली (भूमि की सीमा)। उ-मौर्य चातुरंत प्रसन्न किया और चंद्रगुप्त को मंत्री बनाया । बौद्ध ग्रंथों में भी राज्य की नीति और संगठन । भा०ई० रू. पृ० ६३७ । इसी प्रकार की कथा है, केवल महानंद के स्थान पर धननद चातर-वि० [सं०] १. नेत्रगोचर । २. चतुर । ३. खुशामदा। है (३० 'चंद्रगुप्त')। चाणक्य के शिष्य कामंदक ने अपने नीतिसार' नामक ग्रंथ में लिखा है कि विष्णगुप्त चाणक्य ने चातर--संज्ञा पुं०१. गोल तकिया या मसनद । २. चार पहियों की अपने बुद्धिबल से अर्थशास्त्र रूपी महोदधि को मथकरनीतिशास्त्र गाड़ी। रूपी अमृत निकाला । चाणक्य का 'अर्थशास्त्र' समृत में चतुरई! - संशा की [सं०.चातुर+हिं० ई (प्रत्य०), अथवा सं० राजनीति विषय पर एक विलक्षण ग्रंथ है। इनके नीति के चतरी, हि० चतराई1-३०..'चतुराई 110 -ज्यों कुछ स्यों "प्रलोक को घर घर प्रचलित है। पीछे से लोगों ने इनके नीति : ही नितंब चड़े कछ त्यों ही नितंब त्यों चातुरंई सी। प्रथों से घटा बढ़ाकर वृद्धचाणक्य, लघुचाणक्य, बोधिचाणक्य --पद्माकर ग्रंपृ०८३ । - चापलूस। .