पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४२९

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१५०८ चामना 'भापल-संज्ञा पुं० [सं०] १. चंचलता । शोखी। २. अस्थिरता। ३. ३. बच्चे के जन्मोत्सद की एक रीति जिसमें संबंध की स्त्रियां ..सोम (को०) 1 . गाती बजाती और खिलौने कपड़े आदि लेकर आती है। चापलह-वि० [हिं० चपल] चंचल । चावक- संज्ञा पुं० [फा०] कोड़ा। * 'चाबुक' 30-बढ़ि घोड़ों चापलता-मका स्त्री० [हिं० चापल+ता (प्रत्य॰)] चंचलता।। लीयउ चावकः।-बी० रासो, पृ०५८। . हिलाई। उ०-लघुमति चापलता कवि छमहू । -तुलसी चावन-संशा पुं० [सं० चर्वरण] चबेना। दाना । 30-मूड पलोसि र कमर बघि पोथी। हमको चावन उनको रोटी।-कबीर ग्रं. चापलूस-वि० [फा० [ लल्लो चप्पो करनेवाला। खुशामदी। पृ० २६६ । - चाटुकार। चावना'-क्रि० स० [सं० चर्वण, प्रा. चवरण] १. दांतों से कुचल चापलूसी-संह [फा०] वह झूठी प्रशंसा जो केवल दूसरे को । कुचलकर खाना । चबाना । जैसे,-पने चबाना । उ०-चावत'

, प्रसन्न और अनुकूल रखने के लिये की जाय।

पान चली झम कि पूतनिका मदमान ।- सुकवि (शब्द०)। . चापल्य. संदा पु० [सं०] दे 'चापल' को०] । संयो-क्रि०-जाना 1- सालना 1-- लेन। चापी-संज्ञा पुं० [म० चापिन् ] १. वह जो धनुष धारण करे । २. खूब भोजन करना । खाना। धनुधर । शिव । ३. धनुराशि। चावना -- क्रि० स० [सं० बंगा] रसास्वादन करना (ला०) (जैसे, चाप-संशा पु० दिशा-हिमालय के आसपास के प्रदेनों की एक ग्सचर्वणा)15०-चार यो वेद चावति, पढ़ति छयो दरसन, प्रकार की छोटी बकरी जिसके बाल बहुत लंबे और मुलायम नव रस निरूपति, पट रस खाति है।-गंग०, पृ०३। चावस अध्य० [हिं० शादस) शाबास । वाह वाह । विशेष--इसके वालों के कंवल आदि बनते हैं। चावी-मशा स्त्री० [हिं० चाप (=दवाव) या पुर्त चेय] १. जी। चाफंद-संहा पुं० [हिं० ची (=चर)+फंदा ] मछली पकड़ने का ताली। एक प्रकार का जाल ! क्रि० प्र०-- लगाना । नाब!-मंचा श्री [सं० चध्य] १.. गजपिप्पली की जाति का एक महा०-चाबी देना=(1) कुजी ऐठकर ताला बंद करना । (२) .. पौधा जिसकी लकड़ी और जड़ प्रौपध के काम में आती है। कुजी के द्वारा किसी कल की कमानी को ऐंठकर कसना जिसमें विशेप--एशिया के दक्षिण और विशेषतः भारत में यह पौधा झटके के कारण उसके सब पुरजे फिर ज्यों के त्यों चलने लगें। i. 'या तो नदियों के किनारे पापसे पाप उगता है या लकड़ी जैसे,-घड़ी में चाबी देना । चाबी भरना=दे० 'चाबी देना। और जड़ के लिये बोया जाता है। इसकी जड़ में बहुत दिनों २. कोई ऐसा पच्चड़ जिसे दो जुड़ी हुई वस्तुओं की संधि में ठोंक - तक पनपने की शक्ति रहती है और पौधे को काट लेने पर देने से जोड़ दृढ़ हो जाय। उसमें फिर नया पौधा निकलता है। इसमें काली मिर्च के क्रि० प्र०-नरना। समान छोटे फल लगते हैं जो पहले हरे रहते हैं और पकने पर महा०-चाबी भरना=वह युक्ति करना जिसके द्वारा किसी लाल हो जाते हैं। यदि कच्चे फल तोड़ कर सुखा लिए जायें, व्यक्ति से अपने इच्छानुसार काम कराया जा सके। तो उनका रंग काला हो जाता है। ये फल भी औषध के काम चावुक'-संशा पुं० [फा०] १. कोड़ा । हंटर । सोंटा। में आते हैं और 'चव' कहलाते हैं। कुछ लोग भूल से इसी के क्रि० प्र०. जड़ना ।--देना 1- फटकारना -मारना । लगाना । फल को 'गजपिप्पली' कहते हैं पर 'गणपिप्पली' इससे भिन्न यौ०-चावुकसवार । है । वंगाल में इसकी लकड़ी और जड़ से कपड़े आदि रंगने के २. कोई ऐसी बात जिस किसी कार्य के करने की उत्तेजना लिये एक प्रकार का पीला रंग निकाला जाता है । डाक्टरों उत्पन्न हो। जैसे,—तुम्हारी व्यं ग्वभरी बात ही उसके लिये के मत से 'च' के फल के गूण बहत से अंशों में काली मिर्च चावुक हो गई। के समान ही हैं। वैद्यक में चाय को गरम, चरपरी, हलकी, ती चावकर--वि० तेज। तीन्द्र । फुर्तीला । रोचक, जठराग्नि प्रदीपक और कृमि, श्वास, शूल और क्षय चावकर-संज्ञा पुं० [तु० चाबुक प्याला । प्रादि को दूर करनेवाली तथा विशेषतः गुदा के रोगों को दूर चाबुकजन--2 [फा० चाबुकजन] को मारनेवाला। चाबकजनी-पंथा ही [फा० चावुकजनी] कोड़ा मारना। पो०-चनिका । चक्ष्य । चबी । रत्नावली। तेजोवती। कोला । चाबुकदस्त--वि० [फा०] कुशल । दक्ष । - नाकुली। कोलवल्ली । कुटिल । सप्तक । कृकर । चावूकदस्ती--संश सी० [फा०] कुशलता । दक्षता [को०] ! . 1. इस पौधे का फल 1३:चार की संख्या-४ि . चावुकसबार--संहा पुं० [फा०] [ संद्धा चाबुक सवारी.घोडेको ... कपड़ा।-(डि.)। विविध प्रकार की चालें सिखानेवाला । घोड़े की चाल दुरुस्त चाव-संवा पुं० [सं० चप ( =एक प्रकार का बांस )] एक प्रकार .. करनेवाला । घोड़े को निकालनेवाला। . . ' का बौस। . .. पाव फसवारी--संग की फा०] चाबुक सवार का काम या पेशा। सधा श्री० [हिं० चावना ] १. वे चौखटे दाँत जिनसे चाभ-पंश की० [हिं० चाब] दे० 'चाब।

- माजन कृपलकर खाया जाता है। २. डाढ़ । दाढ़। चौभड़। चाभना-क्र० स० [हिं० चाबना खाना । भक्षण करना । उ.--

.: करनेवाली माना है। - चाव-संवा सी० [हिं० चावना .. -