पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४३३

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गरेपायों १५१२ चारित्रमार्गमा . पारपाई में कज पड़ना । चारपाई ले (किसी की)पीठ नगना- चारवायु-संशा नी० [सं०] नीम की गरम हवा । ल । . बीमारी के कारण चारपाई से उठन सकना । (किमी का) चारसयु-वि० [ हिबार । चारों 130--लिन हम नारम। ... चारपाई से लगना=दे० चारपाई से पीठ लगना। बदंत वेद चारसं । अन्त तेज उग 1 मरविक देव भग्गयं ।

चारपाया-संक्षा पुं० [फा०] चौपाया । चार पांववाला पशु ।जानवर। --पृ००, ११३।।

वाप्रचार-संज्ञा पुं० [सं०] गुप्त वर छोड़ना । बुपिया पुलिस पीछे चारा' -संश पुं० [हिं० चारना] १ पनों के खाने की पास, लगना (को०)। पत्ती, कल आदि । २. विड़ियों, मछलियों या और जीवों के चारवाक मंज पुं० [सं० चार्वाक दे० 'चार्वाक' । उ० जैन बोध खाने की बस्तु । ३. पाटा या और कोई वस्तु जिसे कटिया अरु साकत सैना । चारचाक चतुरंग विना । -कत्रीर में लगाकर मनी फैलाते है। ग्रं०, पृ०२४०। चारा'--मंशा पुं० [फा०] उपाय । इलाज। तदबीर । वारसाला पु० [सं०] गुप्तचर । जासूस कि०] । चाराजोई-संडा मौका) दूसरे से पड़ी हुई या पहुंचनेवाली हानि के प्रतिकार का बचाव का उपाय । नालिग। फरियाद । पारपुरुष-मंक पुं० [सं०] ६० चारपाल' [को०] । जैसे,- मदालत से वारजोई करना। चारवंदं संज्ञा पुं० [फा०] अंग । अवयव । अंगों में गांठ या जोड़। चाराग-संज्ञा पुं० [फा०] १. चौटा बगीचा। २. वह चौटा चारायण --शा पुं० [सं०] काम स्त्र के एक प्राचार्य जिनके , शाल या रूमाल जो भिन्न भिन्न रंगों के द्वारा चार बराबर मत का उल्लेख वात्स्यायन ने किया है। खानों में बंटा होता है। चारासाज-दि० [फा चार+जाज] विपत्ति के समय का परोपकारी। आपत्ति काल में सहायक बननेवाला । उ०-य कहां की दोस्ती चारबालिश-संहा पं० [फा०] एक प्रकार का गोल तकिया। है कि बने है दोस्त नालेह । कोई चारासाज होता कोई चारभट-मंडा पुं० [सं०] वीर सैनिक [को०] । गमगुसार होता ।-कविता को०, भा० ४, पृ० ४६५। त्रारभटी--संशा पुं० [सं०] साहस को०] । चारित्रिक [हिं०] दे० 'चार। चारभानु-वि० [चार+भानु सुंदर गौर वरणं बाली। . अनेक । - सूर्यो के समान प्रोपवाली। ३०-चारमानु कामिन । चारिक-वि० [हिं० चार+एक] १. चार । दो बार। कुछ। किवित् । थोड़ी 1 ८० - काहू के कहे नुनते जाही और चाहें ताही और उजियारी। मानसरोवर है वह नारी। कबीर सा०, पृ०३१ । इक टक घरी चारिक चहत हैं। -- शिन्वर०, पृ. ३२६ । चारमरज--संज्ञा पुं० [फा० चार-मग्ज ] १. अखरोट । २. २. कुछ समय या दिनों का। मिट्टी की गोली जिसे बच्चे खेलते हैं। ३. सरबूजा, खीरा, चारिका-नया की[सं०] १. क्षती । २. यात्रा । श्रमण कोण। ___ककड़ी तया कद्द का बीज । चारिती-हाथी [40] दे० 'बारटी' (को०) । चारमेख-संहासी० [हिं० चार+फा० मेख] एक प्रकार का दंड चारिणी-वि० सी० [] आवरण करनेवाली । चलनेवाली। जिसका मध्यकाल में प्रचलन था। इसमें अपराधी को मिटाकार चारिणी-संज्ञा स्त्री करणी वृक्ष । . उसके हाय तथा पर चार खूटी में बांध दिए जाते थे। चारित'-वि० [सं०] १. जो चलाया गया हो। चलाया हुया । पारवारी-संवा स्त्री० [हिं० धार+फा० यारी] १. चार मियों२ .मभके द्वारा खींचा हुमा । उतारा हुमा (प)। _' की मंडली । २. मुसलमानों में सुन्नी संप्रदाय की एक मंडली चारित -संज्ञा पुं० [हिं० चार] पशुयों के चरने का चारा। जो अबूवऋ, उमर, उसमान और अली इन्हीं चारों को धरनि धेनु चारितु वन्त प्रजा सुवच्छ पन्हाइ । हाय काय . खलीफा मानती है। ३. चांदी का एक चौकोर सिक्का जिन नहि लागिहै किये गोड की गाइ।-तुलसी (गब्द०)। पर मुहम्मद साहब के चार मित्रों या खलीफों के नाम चारित-संशपुं० [सं०] वह जो चलाया जाय। चलाया जानेवाला। ... प्रयदा कलमा लिखा रहता है । चारयारी का रुपया। मास । उ०-नारिनु चारित करम कुकरम कर मरत जीवगन विशेप-यह सिक्का अकवर तथा जहाँगीर के समय में बना था। घासी।-तुलसी (शब्द०)। इस सिक्के या रूपए के बराबर चावल तौलकर उन लोगों चारितार्थ्य-संज्ञा पुं० [सं०] चरितार्थ होने की अवस्या या भाव को खिलाते हैं जिनपर कोई वस्तु चराने का संदेह होता है, (को०] भार कह देते हैं कि जो चोर होगा उसके मुह से खून चारित्र -- मंशा पुं० [भ] १. फुलकमागत साचार । २. चालवल। निकलने लगेगा । इस धमकी में आकर कभी कभी चरानेवाले व्यवहार । स्वभाव । ३. नंन्यास (जैन)। चीजों को फेंक या रख जाते हैं। यौ०-चारित्र धर्म संन्यास धर्म। चारवा-संथा पुं० [हिं० चार-पांव चौपाया। पशु । जानवर। ४. मस्तगणों में से एक। पारखात-संगाखी निचार AIA चौवाई। चयात। चारित्रविनय-संक्षा पुं० [40] चरित्र द्वारा नम्र या विनीत माव पाती जन की छवि स्वर्ण प्रात, स्वप्नों की नभ सी प्रदर्शन । शिष्टाचार नम्रता । स्पद रात । भरती दश दिशि को चारवात, तुझमें बन वन की चारित्रमार्गा-संशा पर [ioj चरित्र की खोज । चारित्रका सुरभि साँस ।--प्राम्या, पृ० १०४ । अनुसरण । (जैन)। मात । २०