पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४३८

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चाली १५१७ चाव' चाली~वि० [हिं० चाल ] १. चालिया । पूर्त। चालबाज । २. . बनाया। पुलिकेशी (प्रथम) शक ४११ में सिंहासन पर बैठा। चंचल । नटखट । शरीर । 30-~-जनम को चाली ए री पुलिकेशी (प्रथम) का पुग्न कीर्तिवर्मा हुमा । पीर्तिवर्मा के पुत्र अद्भुत दै ज्याली प्राजु काली की फनाली पे नचत बनमाली छोटे थे इससे कीर्ति वर्मा की मृत्यु के उपरांत उसके छोटे भाई है 1-पद्माकर अं०, पृ० २३१ । मंगलीगा गद्दी पर बैठे । पर जय नीतिवर्मा का जेठा लड़का चाली संशा स्त्री० [हिं- चाल] १. चाल । रस्म रिवाज । २. सत्याचय बड़ा हुआ तव मंगलीश ने राज्य उसके हवाले कर चलने का तरीका । चाल । दिया। वह पुलिकेशी द्वितीय के नाम से शम ५३९ में सिंहासन चाली संज्ञा पुं॰ [हिं० चलना व्यक्तियों का वह दल जो अपने पर बैठा और उसने मालवा, गुजरात,महाराष्ट्रकोंकण, कांची, . . दल से हटा दिया गया हो आदि को अपने राज्य में मिलाया। यह बड़ा प्रतापी राजा चालीस'- वि० [सं० चत्वारिकात, प्रा. चत्तलीस, चालीस ] जो हा । समस्त उत्तरीय भारत में अपना सान्नाज्य स्थापित गिनती में चीस और वीस हो। तीस से दस अधिक । जैसे,- करनेवाले कन्नौज के महाराज हर्षवर्धन तक ने दक्षिण पर भदाई चालीस दिन । करके इस राजा से हार खाई। चीनी यात्री हुएनसांग ने इस चालीस--संझर घु० बीस और बीस की संख्या । वीस और बीस का राजा का वर्णन किया है। ऐसा भी प्रसिद्ध है कि. फारस के अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-४०।। वादशाह खसरो (दूसरा) से इसका व्यवहार. था, तरह तरह चालीसवाँ'–वि० [हिं० पास] जिसका स्थान जनतालीसवें के की भेंट लेकर दूत पाते जाते थे। पुलिकेशी के उपरांत आगे हो। जिसके पीछे उनतालीस और हों। जो क्रम में नंद्रादित्य, आदित्य वर्मा, विक्रमादित्य क्रम से राजा हुए। शक उनतालीस वस्तुओं के आगे पड़ता हो। जैसे, चालीसा ६० में विनयादित्य गद्दी पर बैठा। यह भी प्रतापी राजा प्रकरण। हुना और शक ६१८ तक सिंहासन पर रहा। शक ६७८ में चालीसवार--संज्ञा पुं० हिं० चालीस] मुसलमानों में मृतक कर्म करने इस वंश का प्रताप मंद पड़ गया, . बहुत से प्रदेश राज्य में चाली सर्वे दिन का कृत्य । चहलुम । से निकल गए। अंत में विक्रमादित्य (चतुर्थ) के पुत्र चालीससरा-वि० [हिं० चालीस-+सरा] १. विशुद्ध । शुद्ध (पी)। तैल (द्वितीय) ने फिर राज्य · का उद्धार किया और २. अज्ञ । मूर्ख (व्यक्ति)। चालुक्य वंश का प्रताप चमकाया । इस राजा ने प्रबल चालीसा-संशा पुं० [हिं० चालीस ] [स्त्री० चालीसी ] १. चालीस राष्ट्रकूटराज का दमन किया । ८६१ में महाप्रतापी वस्तुमों का समूह । जैसे, चालीसा चूरन (जिसमें चालीरा त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य (छठा) के नाम से राजसिंहारान पर चीजें पड़ती हैं ) । २. चालीस दिन का समय । चिल्ला1३. वैठा और इसने चालुक्य विमवर्ष नाम का संवत् चलाया। चालीस वर्ष का समय । .: इस राजा के समय के अनेक तामपा मिलते हैं। विल्हरण- क्रि० प्र०-- लगना=(१) चालीस वर्ष का होना। (२) पढ़ने शानिने इसी राजा को लक्ष्य करके विमांकदेवचरित् नामक आदि के लिये चश्मे की प्रावश्यकता पड़ना । काव्य लिखा है । इस राजा के उपरांत थोड़े दिनों तक तो ४. चालीस पद्यों का ग्रंथ वा काव्य । जैसे, हनुमानचालीसा । ५. चातुमय वंश का प्रताप राखंड रहा पर पीछे घटने लगा । एक दे० 'चालीसा। ११११ तक वीर सोमेश्वर ने किसी प्रकार राज्य चाया, पर चालुक्य-संशा [सं०] सं० दक्षिण का एक अत्यंत प्रबल और प्रतापी अंत में मैरार के हयगाल वंश के प्रवल होने पर यह धीरे धीरे . राजवंश जिसने शक संवत् ४११ से लेकर सा की १२ वीं हाथ में निकलने लगा। इस वंश की एक शाखा गुजरात 1. शताब्दी तक राज्य किया। में और एक साणा दक्षिण के पूर्वी प्रांत में भी राज्य ... विशेष-विल्हण के विक्रमांकचरित में लिखा है कि चाल का वंश करती थी। का प्रादिपुरुप ब्रह्मा के चुलुक (चल्ल) से उत्पन्न हुआ था। चाल्य थि० [20] १० 'चालनीय' (को०)। पर चालुक्य नाम का यह कारण केवल कविकल्पित ही है। चाल्ह' मं दिण.] नेहका मछपी। -प्रात फहन .., कई ताम्रपत्रों में लिखा पाया गया है कि माल क्य चद्रवंशी थे। भइदेस गुहारी । केवटहिं चाल्ह समुद गहें मारी।जयसी (शब्द०)। और पहले अयोध्या में राज्य करते थे। विजयादित्य नाम के एक राजा ने दक्षिण पर चढ़ाई की और वह वहीं त्रिलोचन चाल्हा संज्ञा पुं० [देश॰] दे० 'चारह। उ.-तत सन चाल्हा एका देखावा । जनु धौलागिरि परवत आवा।-जायती . पल्लव के हाथ से मारा गया । उसकी गर्भवती रानी ने अपने (गुप्त), पृ० -२७॥ कुल पुरोहित विष्णु भट्ट सोमयाजी के साथ मूड़िवेमु नामक चाल्दी-संशा गरी देणनाव में वह स्थान जो नरिगा के पास स्थान में प्राश्चय ग्रहण किया। वहीं उसे विषय वर्धन नामक ही वास की फट्टियों से पटा रहता है और जहाँ खेनेवाले पुत्र उत्पन्न हुपा जिसने गंग और कादंब राजाओं को परास्त मल्लाह बैठते हैं। ' करके दक्षिण में सपना राज्य जमाया। विषणवर्धन का पुत्र चावचा संहा पच०] दे० 'चाय चाय'। पुलिकेशी (प्रथम) हुआ जिसने पल्लवों से वातापी नगरी चाव-संधा' [हिं० चाह] १. प्रबल इच्छा । अभिलाषा र लालसा । (माणकल की बादामी) को जीतकर उसे अपनी राजधानी अरमान । उ० -- (का) चिन केतु पृथ्वीपतिराय । सुतहित भयो .... यि चाय। .