पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४४६

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चिखुरन चिटक

. यसस चिखुरन--संघा नी. [ देश अथवा हिं०] 'गुरचन' का वर्ण विप गणम्नान गो असर इससे मार्जन करने का विधान है। यह यय । वह घास जो खेत को निराकर निकाली जाती है। पौधा अम्गात में अन्य पासी के माग उगता है और यहत चिखुरना---कि० स० [देश जोते हुए खेत में से वाद निकालकर दिनों तक रहता है। चाहर करना। पर्या---प्रपामार्ग घोंगा । भाकार । सजीरा। चिखुराई-संज्ञा पुं० [सं०चिक्किर या चिमुर ] [ी० चिरी] २. कितनी या फिरनी नाम का मोमाजी पमुसों में शरीर में गिलहरी। चिमकर उगका रक्त पीता है। चिखुराई--संध' स्त्री० [हिं० चिनुरना] १. निरने का काम या चिचड़ी-संहा मी तीला जो चौरायों या कुनों बिल्लियों . भाव । २. चिखुरने की मजदूरी। के शरीर से मिटा रहता है और उनका यूपिया करता चिखुरी--संज्ञा स्त्री० [हि चिखुरा[ गिलहरी ।। है। फिलगी। मिली। चिखोनी--संसा पौ[हिं० चीखना] १. चीनने या नम्रने की मुहा०---मिघरी सा घमटनापोछा न छोड़ना। गाय में बना किया । स्वाद लेने या देने की क्रिया । २. सपने फी वस्तु । रहना । पिंढन छोटगा। स्वाद लेने की वस्तु । चटपटे स्वाद की घोड़ी सी वस्तु विचान('-- t ० सिन्या याज पक्षी। 30--पाच मानि चिगछ@-संशः सौ [सं० चिकित्सा, प्रा० चिमिच्छा] निकित्सा। पल हिमा में मारग मेलाहिए। काल निशाना नर चिढ़ा दवा । रोगप्रतीकार । इलाज । उ-गज चिगछ इक्छ जानंत प्रोजद प्रोप्रोचिस। वीर (.)। सव्व । नाटिक निधारा राम सेरा मध्य ।--पृ० स०६६। विचावना--वि०५० [हिं०] ३० चिनियाना' । उहाल निवायत यो-चिगछग्गुन [हिं० चिगछ + गुन] चिकित्सा की विधा। हैनढ़ा तू जाग पिगार मित। कबीर साल १०७। - 30-मुनिवर तय तह प्राय के गज चि गछग्गुन गौन । उ०- चिचिंगा--संधा दिश०] . 'पड़ा। रा०२७ 11 चिचिंड-संसा मचिधिगट पड़ा। चिाि । चिगता -- संज्ञा पुं० (तु० चगत्ता चगता वंश का मुसलमान । उo चिनिडा-सं० [सं० चिचिर] ३० जनादा'। निगतां उसेल परे चरित, गो मेल धमेल रान।-रा. चिचियाना-सिप० [अनु० ची भी ] निरनामा । भीगना । ६०- ६६ हरू । करना । उ०. नंदाय थे भौग में यः फरस गब गाज। चिगवा---संशा खी० [देश॰] ३० "चिनगी' 1 3०-पंच सूर गोई गाठी जय गाय गरि निचियाइए त मिलरा पगराज। गुरूवि कीन्हीं, सुपमनि चिगवा लागी रे ।-याचीर ग्रं०.०११०। (शब्द०)। (ग) गंगुन तर निनिय हो हो, न मिनिई चिगना, चिगाना--किस० [ देश० ] ३० चिनमा'। 30-दोद मिजाज-पलटू, भाग, पृ०१६। । पुड जोडिचिगाईमाठी, चया महाररा मारी। कामकोध दोई. चिचिपाहट मंशा संशE चिचियाना] चिल्लाहट। किया बलीता खूटि गई संसारी। -मवीर ग्रं०, पृ० ११० । चिनुकना--वि०म० [अनु० या देश० दे० 'नुकना। चिग-संशा श्री. [हिं० चिक] दे० 'चिक' । चिचेडा-संश० [हिं० पीडा] २० 'पींडा'। चिधरना-कि० अ० [हिं०] १. चिंघाड़ना' । उ०. मंदिर में बदी चिनोडना-कि० स०प० या देश०] २० पनोरमा'। . हैं चारण, चिधर रहे हैं वन में वारण --अर्चना, पृ०५१। चिचोडयाना-कि० स० [हिं० निचोडमा म ० रूप चिम्घाड़-~-संशा थी [हिं० दे० "चिंघाड़। 'गोड़वाना। चिघाड़-संघा 'पी० [हिं॰] दे० 'चिंघाड़। चिचिचटिग--मंशा चिचिटिनए विपना कोड़ा मो)। चिग्घाड़ना-कि० अ० [हिं० चिग्यार+ना (प्रत्य० )] दे० चिच्छक्ति-मग ती [म] यह शक्ति जिसका नाम चित है। ., चिंघाड़ना। चित् शक्ति । परमात्मा। चिधार-संशा थी [हिं० चिरधाहविधान चिन्छल- पुं० [सं० 1१. महाभारत के अनुसार एक देश का चिध्यार दयाश बढ़ो पंडित ।-प्रेमधन, भा० १, गृ०२१। निचाना...ग्रिगु०] ३० "चिचिमाना। नाम । २. इस देश का निवासी। चिचटका-वि० [हिं० चीर ट] मैला । गंदा। . .. चिचडा-संशा [देश॰]१. डेढ़, दो हाथ ऊचा एक पौधा अपामार्ग। । म चुप साध की चातमा स्थाति स मैं ही सवंगु विसेमी।-- केशव गं० मा०१.१०७१। . विशेष- इसमें थोड़ी थोड़ी दूर पर गां होती हैं। गाठों के चिजारा-संसा गहिचिनना ? कारीगर । मेमार । ३०-() दोनों और पतली टहनियां या पत्तियां लगी होती है। पत्तियां कविरा देवल सहि पग भईट संहार। मोई चिनारा " दो तीन अंगुल लंबी, नसदार और गोल होती हैं। फूल और मिला न दूजी बार -बाचीर (शब्द०)। (ख) करी चिजारा चीज लंबी लंबी सींकों में गुछ होते हैं। बीज जीरे के प्राकार प्रीतड़ी ज्यों कहै न दूजी वार ।---(शब्द०)। के होते हैं और कुछ नुकीले तथा रोएवार होने के नारण निज्जड नि० [सं० निजाह जो जड़ एवं चेतन दोनों हो की०] | . कपड़ों से कभी कभी लिपट जाते हैं। इस पौधे की जहमसला चिट--संशा ही० हिं० चोड़ना] १ मागज का टुकड़ा। २. पुरना। होती है । इराकी जड़, पत्ती, आदि सब दवा यो काम में प्राती एक्का छोटा पत्र । ३. फपड़े आदि का छोटा पड़ा। है। पिपंचमी का पत रहनेवाले इसपी बतुवन करते हैं। प्रि -निकलना। फटना। फर्मकांडी इसे बहुत पवित्र मानते हैं। थावणी उपाकर्म के चिटक-वि० [धनु०] चिक्कर । मला। गंदा ।