पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४५

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खटिकायुगे खट्वारूढ़े.... खटिकायुग-संज्ञा पुं०[सं० खटिका + युग] खटिका मागक एक धाग- खट्टा--संशा पुं० [हिं० खट्टा] नीयू की जाति का एक बहुत छोटा विशेप का काल या युग। उ०--द्वितीय फल्प के अंतिम भाग फल जिसे गलगल भी कहते हैं। खटिका युग से एक मारी भूकंपों का सिलसिला शुरू हुधा ।- खट्टा--संहा पुं० [सं०] १.पलंग । चारपाई । २. एक प्रकार का भारत०नि०, पृ०१६ तृण (को०)। खटिनी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] खड़िया [को०] । खट्टाचूक-वि० [हिं० सट्टा+चू.] बहुत अधिक सट्टा । खटिया-संशा स्त्री० [हिं० खाट+इया (प्रत्य०)] छोटी चारपाई खट्टामोठा--वि० [हिं० खट्टा मीठा कुछ खट्टा पोर छ मीठा या खाट । खटोली। . । बाटमिना । महा०-खटिया मचमचाती निकलना= मृत्यु प्राप्त करना। मुहा०-जी खट्टामोठा होना = मुंह में पानी भर माना जी मृत्यु की स्थिति को प्राप्त करना (स्त्रिया)। उ०-अल्ला करे ललचना । अठवारे ही खटिया मचमचाती निकले।---फिसाना०, भा० खट्टाश-संमा पुं० [सं०] गंधविलाय । खास [को०) । ३, पृ० २२८ । खट्वाशी. संशा नौ० [सं०] मादा गंधविलाव (को०] । विशेष--इस शब्द के मुहावरों के लिये 'घाट' शब्द देखें। खटि--संसात्री० [सं०] अरथी, जिसपर शव ले जाते हैं [को०) । खटी-संज्ञा स्त्री० [सं०] खड़िया [को०] । खट्टिक-संघा पुं० [सं०] १. कसाई। पशुधातः । २.शिकारी। खटीक -संज्ञा पुं० [हिं० खाटक] १. दे० 'खटिक" १२. कसाई। बहेलिया ३. भंस के दूध का मयन्वन (को०)। बकरकसाई। उ-कधीर गाफिल क्या कर पाया काल खट्किा --संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटो चारपाई नाटिया। २. भरपी। नजीक । कान पकरि के ले चला, ज्यों अजयाहि खटीक - ३ साइन । कसाई की स्त्री को कबीर सा०, सं०, पृ० ७६ । खट्टी--संज्ञा स्त्री० [हिं० पट्टा] १.माझी नारंगी। २. एक प्रकार खटुली-संक्षा स्त्री॰ [हिं० खटोला का प्रल्पा०] खटोली खटिया का बड़ा नीबू जिसका प्रचार पड़ता है और जो बहु । अधिक (बोल०)। सट्टा होता है। खटेटी-वि० [हिं० खाट + एटी (प्रत्य॰)] जिसपर बिछौना न खट्टीमिट्ठी-संक्षा भी [हिं०] ३० सट्टीमीठो' । हो । जैसे-खटेटो खटिया । खट्टीमीठी-संज्ञा सी० हि० खट्टी + मीठी] एक प्रकार की लता। खटोलना- संज्ञा पुं॰ [देश॰] दे० 'खटोला' । उ०-चंदन खाट को सट्ट'-संज्ञा पुं॰ [देश०] जैसलमेर में होनेवाला एक प्रकार का संग ___बनल खटोलना तापर दुलहिन सूतल हो । कबीर श०, पृ०२ । मरमर, जिसका रंग पीला होता है। खटोला-संज्ञा पुं० [हिं० खाट+ोला (प्रत्य॰)] [को० अल्पा खटटूर--संज्ञा पुं० [५० वटना-रुपया पैदा करना] कमाने शाला । खटोली] छोटी खाट या चारपाई। निसट्ट का उलटा। यौ०-उड़न खटोला । खट्टेरक--[सं०] सर्व । ठिंगना हो । खटोला-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्राचीन देश का नाम जो बुदेलखंड खट वर-वि० [सं०] सटटा । तुर्श फिो०] । के अंतर्गत था । यहाँ भीलों की वस्ती अधिक थी। वर्तमान खट्वांग-संग पुं० [सं० खट्वाङ्ग] १. एक सूर्यवंशीय पौराणिक सागर, दमोहमादि जिले उसी के अंतर्गत हैं। उ०-पूछो . राजा का नाम, जिसका वर्णन भागवत में लाया है। २.. जहां कुंडयौ गोला । तजि वायें अंधियार खटोला ।जायसी चारपाई का पाया ग पाटी ३. शिव के एक प्रस्त्र का (शब्द०)। नाम। खटोली-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'खटोला"। यौ०-खट्वांगघर । खट्वांगभूत = दे० 'क्वांगी। खट्ट-वि० [सं०] खट्टा कोना ४. एक प्रकार का पात्र जिसमें प्रायश्चित्त करते समय मिक्षा खट्टक--संज्ञा पुं० [सं०] खट्वा । चारपाई। मांगी जाती है । ५. तंत्र के अनुसार एक प्रकार की मुदा खट्टन'-वि० [सं०] नाटा । खर्च । ठिगना। जिससे देवता बहुत प्रसन्न होते हैं। खट्टन-संश पुं० दौना व्यक्ति । ठिंगना प्रादमी को०। __खट्वांगी-संवा पुं० ]सं० खवानि ] शिव को०] ।' खट्टना -क्रि० स० [देश॰] उपार्जन करना । जीतना ।-रा. खटवा-संझा स्त्री० [सं०] १.खटिया। चारपाई। सुश्रत के रू०, पृ० १६६। अनुसार फोडा आदि बांधने की १४ प्रकार की पट्टियों में से खट्टा-वि० [सं० कट फच्चे आम, इमली मादि के स्वाद का। एक, जिसका व्यवहार माथे या गले प्रादि को याँधने के लिये तुर्श । अम्ल । , किया जाता है । ३.दोला । ना (को०)। . . मुहा०--खट्टा होना-अप्रसन्न होना। नाराज होता। खट्टा खट्वाका--संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटी खटिया. (को . . साना अप्रन्न रहना । मुह फुलाना ! जी खट्टा होना= खट्वाप्लुत-वि० [सं०] दे॰ 'खट्वारूड' [को॰] । चित्त अप्रसन्न होना । दिल फिर जाना। खट्वारूढ़-वि० [सं०] १.खाछ पर पड़ा हुमा । पथभ्रष्ट । २: नीच ... यो०- खट्टाचूक । खट्टामीठा । खट्टामिठा । कुत्सित । ३. पामर । दुर्जन । ४. मंदबुद्धि । जड़मति [को०। .