पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४५५

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चित्रकला .. . १५३४ चित्रकूट मिक्टरच होणता शिल्पशास्त्र में लिखा है कि स्थापक, तक्षक, शिल्ली आदि में से का उभार और गहराई ग्रादि भी इसी पालीक मोर छापा .....शिल्पी को ही चित्र बनाना चाहिए। प्राकृतिक दृश्यों को नियमानुसार दिखाई जाती है । जो पण उवा मानस होगा, - ... अंकित करने में प्राचीन भारतीय चित्रकार कितने निपुण होते ..... थे, इसका कुछ ग्राभास भवभूति के उत्तररामचरित के देखने से मिलता है, जिसमें अपने सामने लाए हुए वनवास के चित्रों को , - देख सीता चकित हो जाती हैं। यद्यपि आजकल कोई ग्रंथ चित्रकला पर नहीं मिलता है, तथापि प्राचीन काल में ऐसे ग्रंथ अवश्य थे। काश्मीर के राजा. जयादित्य की सभा के कवि दामोदर गुप्त ने प्राज से ११०० वर्ष पहले अपने कुट्टनीमत नामक ग्रंथ में चित्रविद्या के चित्रसूत्र' नामक एक ग्रंथ का उल्लेख किया है। अजता गुफा के चित्रों में प्राचीन भारतवासियों की चित्रनिपुणता देख चकित रह जाना पड़ता है। बड़े बड़े विज्ञ युरोपियनों ने इन चित्रों की प्रशंसा की है। इन गुफाओं में चित्रों का बनाना ईसा से दो सौ वर्ष पूर्व से प्रारंभ हुअा था और पाठवीं शताब्दी तक कुछ न कुछ गुफाएं नई खुदती रहीं। .' अतः डेढ़ दो हजार वर्ष के प्रत्यक्ष प्रमाण तो ये चित्र अवश्य हैं। चियविद्या सीखने के लिये पहले प्रत्येक प्रकार की सीधी वह अधिक सुलता होगा, और जो घसा या गहरा होगा वह टेडी, वक्र त्रादि रेखाएं खींचने का अभ्यास करना चाहिए। कुछ स्याही लिए होगा । इन्हीं सिद्धांतों को न जानने के कारण इसके उपरांत रेखाओं के ही द्वारा वस्तुत्रों के स्थूल ढाँचे बनाने बाजारू चित्रकार शीशे प्रादि पर जो चित्र बनाते हैं देगलवाय चाहिए। इस विद्या में दूरी आदि के सिद्धांत का पूरा अनुशीलन से जान पड़ते हैं । चित्रों में रंग एक प्रकार की कूची से भरा किए बिना निपुणता नहीं प्राप्त हो सकती। दृष्टि के समानांतर जाता है जिसे चित्रकार कलम कहते हैं। पहले यहाँ गितहरी ' या ऊपर नीचे के विस्तार का अंकन तो सहज है, पर अखिों की पूछ के वालों की कलम बनती थी। अब विलायतीश के ठीक सामने दूर तक गया हया विस्तार अंकित करना कठिन काम में आते हैं। विषय है। इस प्रकार की दूरी का विस्तार प्रदर्शित करने । चित्रकाय संमा पुं० सं०] १. चीता । २. तेंदुना (को०)। की क्रिया को 'पर्सपेक्टिव' ( Perspective ) कहते हैं। विसी नगर की दूर तक सामने गई हुई सड़क, सामने को वही चित्रकार- संज्ञा पुं॰ [सं०] चित्र बनानेवाला । चितेरा। हुई नदी श्रादि के दश्य बिना इसके लिहानों को जाने नहीं चित्रकारी---मंधा मी० [हिं० चित्रकार - दिखाए जा सकते। किस प्रकार निकट के पदार्थ बडे और साफ चिनविद्या । निन बनाने की कला । २. चित्रकार का काम । दिवाई पड़ते हैं, और दूर के पदार्थ क्रमश: छोटे और धुघले चित्र बनाने का व्यवसाय । होते जाते हैं, ये सब बातें अंकित करनी पड़ती हैं। देखें चित्र चित्र काव्य-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार का दाव्य जिम सक्ष- को विशेष काम से सियने से कोई विशेष चिर बन जाता उदाहरण के लिये दूर पर रखा हुमा एक चौवटा संदूक लीजिए। है । ऐसा फाव्य अधम समझा जाता है। मान लीजिए कि पाप उसे एक ऐसे किनारे से देख रहे हैं जहाँ से सकदा पावें या तीन को दिखाई पड़ते हैं। अब चित्र चित्रकुढल-मंश पुं० [सं० चिनगुराउत] घराष्टके बनाने के निमित्त हम एक पेंसिल घाखों के समानांतर लेकर नाम। एक आँख दबाकर देखेंगे तो संदूक की सबके निकटस्थ खड़ी चित्रप्ट-संटा ई० [सं०] सफेद फोढ़ । श्येत पुष्य । - फोण रेखा (ऊचाई) सबसे बधी दिखाई देगीजो पाश्र्व प्रधिक चित्रकूट-संवा पुं० [१०] १. एका प्रसिश रमणीक पर्यत जहाँ सामने रहेगा, उसके दूसरे पोरकी कोणरेखा उससे छोटी और वनवास के समय राम और सीता ने यहुन दिनों तक निकाय जो पार्च कम दिखाई देगा, उसके दुसरे मोर की कोरगरेखा किया था। सबसे छोटी दिवाई पड़ेगी। अर्थात निकटस्थ कोण रेखा से लगा विशेप-यह तीर्थ स्थान बांदा जिले में प्रौर प्रयाग २७ गोड घा उत्त पार्श्व का कोय जो कम दिखाई देता है, अधिक दक्षिण में पड़ता है। इस पहाट ये नी पोशी नदी बहती है दिनाई पड़नेवाले पार्श्व के कोरा से छोटा होगा। जिसमें मंदाकिनी नाम की एक और छोटी नदी मिलती है। सरा सिद्धांत मालोक और छाया का है जिसके बिना सजीवता रामनवमी सौरदीयानी पयसर पर मन बहुत दूर दूर से लीय नहीं पा सकती। पदार्थ का जो अंश निकट और सामने रहेगा यापी मात है। वास्मीकि रामायण में सान को भार यह घुलता (पालोकित) और स्पष्ट होगा; और जो दूर या - बाजप्राथम से साईनीन पीरन दक्षिण की परनिना है। में पड़ेगा, वह स्पष्ट और मातिमा लिए होगा। पदावों