पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४६०

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चित्री १५३६ चिनगारी - जिसपर नवकाशी हो । ३. जिसपर चित्ति यां या रंग की चिद्---संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'चिस्" (गो०] । धारियां हों। चिदाकाश--संघा.पुं० [सं०] साकाश के समान निलिप्त और सबका चित्री वि० [सं० चिनिन् ] १. चित्रयूक्त । चित्रित । उ--- प्राधार भूत ब्रह्म। परब्रह्म । ॐचा मंदर धौलहर माटी चित्री पौलि ।---कबीर ग्रंo, चिदात्मक-वि० [सं०] चेतना से युक्त [को०। पृ०७४। चिदात्मा-संग्या पुं० [मं० चिदात्मन् ] चैतन्य स्वरूप परब्रह्म । २. चितकबरा । कवरा । चिदानंद--संज्ञा पुं० [सं० चिदानन्द] तत्व और प्रानंदमय परब्रह्म । चित्रीकरण, चित्रीकार-संज्ञा पुं० [सं०] १. अनेक वषों से रंगना ।। चिदाभास--संघापु० [सं०] चैतन्य स्वरूप परब्रह्म का प्राभास या २. चित्रांकन । ३. अलंकरण । सजाना। ४. आएचर्य [को०] । प्रतिबिंब जो महत्तव या अंतःकरण पर पड़ता है। २. चित्रीकृत-वि० [सं०] १. चित्र रूप में प्रस्तुत किया गया। उ०--- जीवात्मा। मेरा मेरा मैं, जिस शब्द योजना से चित्रीकृत भावराशि की विशेष-अद्वैतवादियों के मत से अंतःकरण में ब्रह्म का प्राभास अनुभूति प्राप्त कर रहा है, उसका उपादान सामाजिक है, पड़ने से ही ज्ञान होता है। माया के संयोग से यह शान अनेक वैयक्तिक नहीं । काव्यशास्त्र, पृ०२६ । २. सणाया हुना। रूप विशिष्ट दिखाई पड़ता है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चित्रेश--संसा पु० [सं०] चित्रा नक्षत्र के पत्ति चद्रमा । स्फटिक पर जिस रंग की प्रामा पड़ती है, वह उसी रंग का चित्रोक्ति--संक्षा खी० [सं०] १. अाकाश । २. अलंकृत भाषा में दिखाई पड़ता है। ___ कथन । ३. प्रिय और सुंदर उक्ति या भापण (फो०)। चिदालोक----संशा पुं० [सं०] सदैव बना रहने वाला प्रात्मप्रकाश (को०] 1 चित्रोत्तर-संज्ञा पुं० [सं०] वह काव्यालंकार जिसमें प्रश्न ही के शब्दों चिद्धन'-वि० [सं०] जिसमें चेतना हो । चेतनायुक्त (को०।। में उत्तर हो या कई प्रश्नों का एक ही उत्तर हो । जैसे,-- चिद्धन-संज्ञा पुं० ब्रह्मा [को०)। (क) कोकहिये जल सो सुखी काहिये पर श्याम । काकहिये चिद्रप-संगापुं० [सं०] चैतन्य स्वरूप ब्रहा। ज्ञानमय परमात्मा। जे रस बिना कोक हिये सुख वाम । इसमें कोक' 'काक' 'पाम' चिद्विलास-संशा पुं० [सं० चित+विलास ]. १. चैतन्य स्वरूप पादि उत्तर दोहे के शब्दों ही में निकल पाते हैं। (ख) गाउ पीठ पर लेहु अंग राग अरु हार करु । गृह प्रकाश कर देहु ईश्वर को माया । 30-तुल सिदास कह चिद्विलास जग वूझत कान्ह कह्यो 'सारंग नहीं।' यहाँ 'सारंग नहीं से सब प्रश्नों बूझत बूझे ।--तुलसी (शब्द०)।२. शंकराचार्य के एक का उत्तर हो गया। (ग) को शुभ अक्षर? कौन युयति जो शिष्य। धन वश कीनी ? विजय सिद्धि संग्राम राम कह कौने दीनी? विशेप-बहुतों का विश्वास है कि शंकरविजय नामक ग्रंथ इन्हीं कंसराज यदुवंश बसत कैसे केशवपुर ? बट सों कहिए कहा ? का लिखा है, जिसमें चिद्विलास वयता और विज्ञानकद थोता हैं। नाम जानहु अपने उर । कहि कौन युवति जग जनम किया चिन- संघा पुं० [देश॰] १. एकबहुत बड़ा सदाबहार पेड़ जो हिमालय कमल नयन सूक्षम बरणि ? सुन वेद पुराणन में कहीं सनका- पर शिमले के शासपास बहुत होता है। दिक 'शंकरतण' । इसे 'प्रश्नोत्तर' भी कहते हैं। विशेष--इसकी लफड़ी बहुत मजबूत होती है और इमारतों में चित्रोत्पला- संक्षा सौ [सं०] १. उड़ीसा भी एक नदी जिरी प्राज लगती है। कल 'चितरतला' कहते हैं । २. मत्स्य, मारकंडेय और वामन .. २. एक घास जिसे चौपाए बड़ी रुचि से खाते हैं। पुराण के अनुसार एक नदी जो अक्षपाद पर्वन से निकली है। .. विशेष--यह घास खेतों के किनारे होती है। इसे सुखाकर भी चित्रोपला-संशा बी० [सं०] एक नदी जिसका उल्लेख महाभारत रख सकते हैं। चिनक-संज्ञा पुं० [हिं० चिनगो] १. जलन लिए हुए पीड़ा । चुनचु- चित्र्य--वि० [सं०] १. पूज्य । २. चनने या इकट्ठा करने योग्य नाहट । २. मत्रनाली की जलन या पीड़ा जो सुजाक में चिथड़ा-संक्षा पुं० [सं० चीर्ण -- फटा हुन्मा या चीर अथवा चीयर होती है। अथवा देश.)] फटा पुराना कपड़ा। कपड़े की धज्जी। - लता । लुगरा। कि० प्र०-उठना ।—होना । यो-चिथड़ा गुबड़ा फटे पुराने कपड़े। चिन -संहा पहि० चिनफ] ३० "चिनक। मृहा.. -चिं थहा लपेटना = फटे पुराने कपड़े पहनना । चिनगरा--संहा सौ[हिं० चिनगी] दे० 'चिनगी' । उ.-.-पट- चिथाड़ना-क्रि० स० [सं० चीख १. चीरना । फाइना । कपड़े, विजना तह अधिक सताव। छटनि ते उछटि चिनग जनु चमड़े, कागज आदि चद्दर के रूप की वस्तुनों को फाड़कर टुकड़े मावै ।--नंद० ०, पृ० १३२ । टुकड़े करना। धज्जी धज्जी करना। २. धज्जियां उड़ाना। चिनगटा--संज्ञा पुं० [हिं०] चिथड़ा। . . अपमानित लजिजत करना नीचा दिखाना। जलील करना। चिनगारो---संशा खी० [सं० धुरी, हिं० चुन+भंगार ? ] १.जलता चिथरा -संझा पुं० [हिं० चिथड़ा] दे० 'चीथरा' । उ-चिथरा हुई आग का छाटा पारण या टुकड़ा । .. पहिरि लंगोटी सापा कै गया। -पलट मा०.२, पृ०७६। .. चिनगारी आग इसपर रख दो। २. दहकती हुई. प्राग में