पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चिलसी चिल्बास हैं कि खुजाते खजाते देह में दिदोरे पड़ जाते हैं |--काया०, चिल्ला बनाना, चौगान खेलना, तीर चलाना, और काई बाजे पृ०२५२। वजाना था। हुमायू, पृ०४८ । चिलसी-संगा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का तमाफू जो काश्मीर में क्रि० प्र०-चढ़ाना। उतारना । होता है । यह श्रीनगर के श्रासपास बहुत होता है और अप्रैल चिल्ला- संना पु० [ देश. ] पगढ़ी का छोर जिसमें कलावतून का में बोया जाता है। काम बना रहता है। तिल्ला । चिलहुल-संपापु० [सं० चिल] एक प्रकार की छोटी मछली जो डेढ़ चिल्ला-संजा पुं० [फा०] मुसलिम विचारों के अनुसार एक साधना वालिश्त के लगभग होती है । यह सिंध, पंजाब, उत्तर प्रदेश जिसके द्वारा अस्वाभाविक शक्ति वश में को जाती है। और बंगाल की नदियों में पाई जाती है। चिल्लाना--कि० प्र० पिसी प्राणी पा जोर से बोलना । मुह से चिला-संशा सी० [हिं० चिल्ला] दे० 'चिस्ला11०-चंद चिलो कंपा स्वर निकालना । शोर फरना । हल्ला करना। गहि मारो वान । -कबीर श०, पृ० २० । संयो० कि०-उठना ।-पढ़ना। चिलिमसंशश सी० [हिं० चिलम] २ चिलम' । चिल्लाभ-- संघा पुं० [सं०] छोटी छोटी चोरी करनेवाला । गिरहकट। चिलिया-संज्ञा स्त्री० [सं० चिल] चिलहुल मछली। चाई को चिलुमा संच बी० [हिं० चेल्हवा] दे० 'चेन्हवा' । चिल्लाहट - संशा रखी० [हिं० चिल्लाना] १. चिल्लाने का भाव । २. चिल्काउर-संक्षा सी० [?] प्रसूता स्त्री । जच्चा । हल्ला । शोर । गुल । चिल्ल'--संज्ञा पुं० [सं०] [जी. चिल्ला] १. चील । २. दुखती हुई . संयो॰ क्रि०-उठना ।-पड़ना । चिल्लिका-संथा हो. [सं०] १. दोनों भौहों के बीच या स्थान। आँख [को०)। २. एक प्रकार का बथुवा साग जिसकी पत्तियां छोटी होती चिल्ल-वि० दुखती आँखाला । कीचड़ मरी आँखवाला (को०] । हैं। ३. झिल्ली नामक पीड़ा मिल्लिका भींगुर (को०)। चिल्लका-संवा श्री [सं०] झींगुर को। ४. बिजली। वच्च (को०) । चिल्लड---संज्ञा पुं० [सं० चिल (वस्त्र)] जू" की तरह का एक बहुत यो...तिल्लफा लता=(१) भौं। त्र.। (२) बन्न। छोटा सफेद रंग का कीड़ा जो मैले कपड़ों में पड़ जाता है। विजली। इस कीड़े के काटने से शरीर में बड़ो खुजली होती है और आर चिल्ली-संवा रसी० [सं०] झिल्ली नाय का कीड़ा। छोटे छोटे दाने पड़ जाते हैं। चिल्ली-संशा स्त्री० [सं० चिरिका (-एक स्त्र का नाम)] विजली। क्रि०प्र०-पड़ना।-बीनना। वन । चिरौं । 3०-चमहू ते, निल्लिन तें, गले की विजुल्लिन चिल्लपो-संज्ञा स्त्री० } हिं० चिल्लाना-अनु० पों] चिल्लाना । शोर- ते जमतुल्य जिल्लिन ते जगत उजेरो।-पाकर ग्रं॰, पृ० गुल । पुकार । दोहाई। ३०५। (ख) चिल्लिन को चाचा प्रो विजुल्लिन यो वाप कि० प्र०- करना ।-~मचना । मचाना । बड़ो याँकुरो बबा है बवानल अजय फो।---पप्नाकर चिल्लभक्ष्या-~-संशा स्त्री [सं०] नख या नसी नाम का में धन्य। (शब्द०)। चिल्लवांस-संशा सी० [हिं० चिल्लाना ] बच्चों का चिल्लाना जो क्रि०प्र०-गिरना ।-~-पड़ना । जमुवा के रोग में होता है। चिल्लो-संषा पी० [मं०] १. लोध । २. बथुमा साग । चिल्लवाना--कि० स० [हिं० चिल्लाना का प्रे० रूप] चिल्लाने का चिल्ली - संसाली० [हिं० चित? ] एक प्रकार का छोटा वृक्ष काम दूसरे से कराना । चिल्लाने में प्रवृत्त करना । जिसकी छाल गहरे माकी रंग की होती है और जिसपर चिल्ला-संघा पुं० [फा०] १. चालीस दिन का समय । सफेद चित्तियां होती हैं। यो०-चिल्ले का जाड़ा-बहुत कड़ी सरदी। विशेष—यह देहरादून, रहेलखंड, अवध और गोरखपुर के जंगलों विशेष-धन के पंद्रह, मकर पचीस । जाड़ा जानो दिन चालीस। में पाया जाता है । इसकी पत्तियां एक बालिश्त से कुछ कम इन्हीं चालीस दिनों के जाड़े को चिल्ले का जाड़ा कहते हैं। लंबी होती हैं और गर्मी के दिनों में यह फलता है । इसके फल २. चालीस दिन का प्रत । चालीस दिन का बंधेज या किसी मछलियों के लिये जहर होते हैं। पुण्यकार्य का नियम (मुसल०)। चिल्ह। - संचा ली० [सं० चिल्त ] दे० 'चीद' और 'चील्ह'। कि०प्र०-खींचना उ०—करपि मुट्टि फम्मान तानि न बान छनं किय। चिल्ला --संहा पुं० [देश॰] १. एक जंगली पेड़। २. उर्द, मूग या मनहु बिलह दिसि सदल भोर वासं नमन किय।-पृ० रौदे के मैदे की परौंठी या घी चुपड़ कर सकी हुई रोटी। रा०,१।६३१। - चीला । उनटा। . . चिल्हवास-संज्ञा पुं० [हिं० चिलवास ] दे० 'चिलबांस' । उ०-भई चिल्ला--संज्ञा पुं० [फा० चिल्लह ] धनुप की डोरी। पतंचिका । पुछारि लीन्ह चनवासू । बैरिनि सवति दीन्ह चिल्ह्यांसू ।-

.' उ-कई प्रकार के गुण जानती थी जिनमें से धनुप का जायसी नं० (गुप्त), पृ० ३६३। .