पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४६९

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चियरों हवाड़ा १५४७ हवाड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० चील] एक खेल जिसे लड़के पेड़ों पर चिहु२-वि० [हिं० बहु दे. 'चहु" । उ०--नगन तिद्धिअनु जानु चढ़ कर खेलते हैं । गिल्हर । गिलहर । नाम चिहु चक्क चलाइय । --पृ० रा० (उ०), १०२१।। ल्हील-संज्ञा स्त्री० [सं० चिल्ल] चील नाम की चिड़िया। निरी मि का चिड़िया । चिहर--संज्ञा पुं॰ [सं० चिकुर या चिहर] सिर के बाल । केश । -उ०--धिकारी चहूँ और ते चार चिल्हीं ।-सूदन (शब्द॰)] उ०---छूट चिहर बदन कु म्हिलाने ज्यों नलिनी हिमकर की होर-संज्ञा स्त्री० [सं० चिल्ह, हिं० चील्ह+और (प्रत्य०)] मारी।-सूर (शब्द०)। .. दे० 'चिल्हीं । चिरार-संज्ञा पुं० [मं० चिकुर या चिर+मार केशभार वि-संज्ञा स्त्री० [सं०] चिबुक । ठोड़ी। चिकुरमार। विट --- संज्ञा पुं० [सं०] चिरड़ा। चिड़वा । विल्लिका--मंडला स्त्री० [सं०] एक प्रकार की झाड़ी [को०) । चिह्न-संशा पुं० [सं०] [वि. चिहित] १. वह लक्षण जिसमे किसी चीज की पहचान हो। निशान । २. पताया। झंडी । ३. वुक-संचा पुं० [मं०] १. बुड्ढी । ठोढ़ी। २. मुचकुंद वृक्ष । किसी प्रकार का दाग या धब्बा। ४. छाप (पैरों का निशान) बहर-वि०दिश०] चित्र विचित्र । अनत । उ०-बाजी चिहर ' रचाई करि, रह्या अपरछन होइ। माया पट पड़दा दिया, (को०।५. रेखा । लकीर (को०)। ६. पद आदि की सूचक · ताथै लक्ष न कोई।-दाटू०, पृ. २३४ । चीज (को०) 1 ७. लक्ष्य (को०)। ८. स्मृति दिलानेवाली वस्तु (को०) । हराना-क्रि० प्र० वि०] चिटक ना। दरार पड़ना । उ०- मीन लिया कोड. मार ठांव ढेला चिहराना। पलटू, पलट.. चिह्नकारी-वि० [सं० चिन्हकारिन] १.चिह्न बनानेवाला । २.चाव भा० १.पृ०२५ । करनेवाला । घायल करनेवाला। ३. मार डालनेवाला । ४. चहाना-क्रि० अ० [हिं०] चिल्लाना ।और करना। भयानक (को०)। चहार--संज्ञा पुं० [सं० चीत्कार, हि. चिग्घाड़] चीत्कार। शिवारिगी--संचा श्री० [सं०] श्यामा नाम की लता । कालीसर । चिल्लाहट । चिघाड़ । दे० 'चिकार' । २०-मिले सेन पंमार चिह्निन--वि० [सं०] चिहन किया हया। जिसपर चिह्न हो। . चालुक्क एतं । फुहू रैन जुट्ट मनी प्रेत हेतं । भरं सीस तुट्ट चीं, चींची संशा डी० [अनु०] १. पक्षियों अथवा छोटे बच्चों का विट्ट विहारं । करै गल्ल जै पिसाचं चिहारं । पृ० रा०, बहुत नहीन शब्द । २. पक्षियों अथवा बच्चों का वहन महीन १२ । १०४। स्वर में बहुत बोलना या शोर करना । बिहारनाम-क्रि० अ० [हिं० "चिहार' से नामिक धातु] चियाड़ना मुहा०—ची बोलना=अयोग्यता, अकर्मण्यता या अधीनता .. चिल्लाना। गिहानिg-संज्ञा स्त्री० [हिं० चिहार] ३०. 'चिहार' । उ०-गाड़े स्वीकार करना । दबैल होना। ___ गहो गहिर गुहारियो चिहारि कियो एही दीनबंधु अब दीन कहू यो०-चींचपड़। दल गो।-गंगा, पृ० १। गींचन--संज्ञा श्री० [अनु॰] चिल्लाहट । रोना। बहु कना -क्र० प्र० [सं० चमत्कृ, प्रा. चवं]ि चौंकना। बींचषड़-संद्धाश्री [अनु॰] वह शरद या कार्य जो किसी बड़े चिहु टना-क्रि० स० [सं० चिपिट, हिं० चिमटना अथवा हि. या सबल के सामने प्रतिकार या विरोध के लिये किया जाय । चमोटना (-चमड़े सहित ग्रंग का कोई भाग पकड़ना)] १. जैसे,--अगर जरा भी चींव पड़ करोगे तो हाथ पैर तोड़कर • घुटकी काटना । चुटकी से शरीर का मांस इस प्रकार पकड़ना रख दूंगा। जिसमें कुछ पीड़ा हो। चींटवा - संज्ञा पुं० [हिं० चींटी] दे० 'चीटा' या 'च्यूटा' । उ०-- मुहा०--चित्त चिहटना-चित्त में संवेदना उत्पन्न करना । ममें गम मर नो हम मरं नातर मर बनाय । अविनाभी का' स्पर्श करना । चित्त में चभना । उ०-- लभकी निकस धंस चींटवा. मन मारा जाय-कबीर (शब्द०)। .. विहंस अंग दिखाय । तकि तकि चित चिट वरी ऐड भरी चींटा संशा ३० [हिं०] दे० विटा'। . गिराय ---गार सत. (शब्द०)। चींटी-बी० [हिं० चींटी] देविटी'। २. चिपटना । लिपटना । उ०-वाल को लाल लई चिहुटी नींतना'-संहा स्रो० [हिं० चीतना दे० 'चीतना' । रिस के मिस लाल सों वाल चिहटी।-देव (शब्द०)। .. जीतना --क्रि० स० [हिं० चितना] १. चिना करना । २. चिटनी-संश स्वी० देश० गजा। दी। चिरमिटी। चिटी-संश हौ हि चिहटना] चटकी। चिकोटी । उ०- चेतना। ... बाल को लाललई चिह टी रिसके मिस लाल सो बाल चिहटी। चीना गोला-संज्ञा पुं० [हिं० छींटा गोला] दे॰ 'छींटा गोला। -.'--देव (शब्द०)। चीथना-क्रि० स० [हि. बीयना] देवीथना'। पहु-संक्षा प्रा० चीन चिता] दे० 'चिता' । चीथरा--मंचा पुं० [हिं० चिरड़ा] ३० "चिया' । उ० बोले 50--दोनों कोने में प्राई । बिहु रचि अग्नि जरी मैं हम यो भयो बरा बदन तुम्हारो!--प्रेमचन, जाई। पालम् ।-हिं० क० का० पृ० २१६ । भा० १, पृ०५।