पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४७

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खड़ी तैराकी खड़िया - संज्ञा की जाति का एक बहुत जानवरों की मदद करना । जैसे,---कोई किसी की विपत्ति में नहीं खड़ा विशेष—इसमें प्रतिद्वंद्वी की जाँच में अपना हाथ पढ़ाकर उसी के होता । (२) किसी चुनाव में उम्मीदवार होना । बल के उसके उस हाथ को, जो अपने पेट पर हो, दबाकर खड़ी पछाड़े खाना- क्रोध या शोका से पृथ्वी पर गिर उसकी पीठ पर जाना और उसे मरोड़ा देकर गिराना पड़ता पड़ना । खड़ी लगाना = सिर्फ पांव के सहारे खड़े तैरना । है । इसे हनुमंत बंध भी कहते हैं। उ.-पानी ने वोस कदम पीछे हटा दिया । कमी मल्लाही खडानन@-संञ्चा पुं० [सं० षडानन] दे० 'पडानन' । . चीरते थे, कभी खड़ी लगाते थे।—फिसाना, भा०, ३, पृ० । खड़ा पठान-संचा पुं० [देश॰]जहाज के पिछले भाग का मस्तूल।- १६० । खड़ी सवारी= (किसी के आवागमन के सबंध में (लश). व्यंग्यार्थ प्रयुक्त) तुरंत । झटपट । शीघ्र ! खड़े खड़े =(१) खड़िका-संक्षा खी० [सं० खडिफा] खड़िया [को० खड़े रहने की दशा में । जैसे,—खड़े खड़े पानी मत पीओ। खड़िया-संवा स्त्री० [हि. खरिया] रुपया पैसा. रसाने को थलो। (२) तुरंत । झटपट । जैसे,—यों खड़े खड़े कोई काम नहीं होता । खड़े घाट = (१) एक दिन के भीतर हो कराई जाने- उता पाछे जव वैष्णवन जाइवे फी कहे तय कृष्ण भट वाली कपड़ों की धुलाई । (२) झटपट । तुरंत । ढके पांव = रात्रि को उनकी गाँठ खाडिया सोलि खारची बांधि देते ।-दो (१) बीच में बिना रुके या बैठे। (२) झटपट । तुरंत । खड़े सो० बावन०, भा०१, पृ० २७1 . ... वाल निगलना अत्यंत हानि कर काम करना । अनुचित काम खड़िया - संज्ञा स्त्री० [सं० खटिका, खड़िका] एक प्रकार की सफेद . करना । उ०-बड़े बाल निगलनेवाले हैं 1-चुभते०, पृ०४॥ मिट्टी या पत्थर की जाति का एक बहुत मुलायम सफेद पदार्थ । ३. ठहरा हुआ । टिका हुआ । रुका हुआ । स्थिर । जैसे, इस विशेष—यह जमीन के अंदर शंख, घोंघे आदि जानवरों की तरह यहाँ दीवार काव तक खड़ी रहेगी। ४. प्रस्तुत । उप हड्डियों के चुने से आप ही आप जमकर बनता है । साड़िया । स्थित । उत्पन्न । तैयार। पैदा । जैसे,-दाम खड़ा करना इंगलैंड में लंडन के आसपास और फ्रांस के उत्तरी भागमें .. झगड़ा खड़ा करना, मामला खड़ा करना । जैसे,--(क) बहुत होती है। इससे दीवारों पर चूने की भांति सफेदी की. उसने अपना दाम खड़ा कर लिया। (ख) उसने बीच में एक जाती है और अनेक प्रकार की धातुएँ साफ की जाती हैं। नई वात खड़ी कर दी। ५. संनद । उद्यत । तयार । जैसे,- प्रायः काले तख्तों पर इससे लिखा भी जाता है । यह कई (क) जिस काम के लिये आप खड़े होंगे, वह क्यों न होगा । प्रकार की होती है। (ख) बात समझते नहीं, लड़वे को खड़े हो जाते हो। महा०-खड़ा दोना= मिठाई आदि जो किसी पीर को चढ़ाई २.एक प्रकार की खाड़िया जो वहुत कड़ी होती है । खरिया। जाय । ६. प्रारंभ । जारी। जैसे,—काम खड़ा करना । खाड़ी। छुही । उ०-मोरियों पर ढकने के लिये सक्सार का - ७.(धर, दीवार आदि ऊंची वस्तुओं के विषय मे ) स्थापित सफेद खाड़िया पत्थर काम में आता था।-हिंदु० सभ्यता निर्मित । उठा हुआ । जैसे,-इमारत खड़ी करना, तंबू खड़ा पृ० १६। करना । विशेष—यह इमारतों में पत्थर के स्थान पर काम आती है। महा-खड़ा करना= ठाँचा खड़ा करना। स्थूल रूप से प्राकार एक और प्रकार की साड़िया काली होती है जो स्लेट के ... भादि बनाना । जैसे, तुम्हारा कुरता खड़ा कर चुके हैं। सोना . अंतर्गत है। वाकी है। • मुहा०-खड़िया में फोयला वेमेल वात ! अच्छे के साथ बुरे । जो उखाड़ा न गया हो। जो काटा न गया हो। जैसे,-खड़ी ..... का संयोग। फसल, खड़ा खत । ६.विना पका । वासद्ध । कच्चा । जसा खड़िया-संसा चौर [सं० काण्ड या हि० खड़ा] अरहर का वह खड़ा चावल । १०.समचा। पूरा । जैसे-खड़ा चना चवाना। ११ जिसमें गति न हो। ठहरा हुआ । स्थिर । जैसे,-खड़ा पेड़ या बड़ा डंठल जिसमें पत्तियाँ.या फलियाँ बिलकुल न हों। " . पानी । . . . .. ., . खाड़ी। रहा। क्रि० प्र०.-फरना । —रहना ।—होना । खड़ी-संग्मा श्री० [सं० साडी] बड़िया। खाड़िया मिट्ठी । छुही। खडाऊँ-संथाली [हिं० फाठ+पांव या 'खटखट' नामें खड़ा-संमा [हिं० साड़ा सीषा] १. पहाड़। पर्वत। २. पहनने के लिये तलुए के आकार की, काठ की पटरी। इसमें ३० 'बारहखाड़ी'।। .... ..... मागे की ओर एक खटी लगी होती है, जिसे पहनने के समय खड़ी चढ़ाई-संक्षा खी० [हिं० साड़ी+चढ़ाई। बहुत थोड़ी ढाल- . पैर के अंगूठे और उसके पास की गली में अटका लेते हैं। .... वाली सीधी चढ़ाव की भूमि। पादुका । . खड़ी डंकी-संशा जी० देश॰] मालखंभ की एक कसरत। खडाका'- संवा पुं० [अनु०११. खड़ खड़. शब्द । खका. २. खड़ीण-संशा को देश०] बाडुड की सूखी हुई. वह जमीन जो जल . आघात । र प्रतिध्वनि । टकराहट । उ०-जीरन के ऊपर से जोती वोई जाती है।५० जेहल ताल खडी है। . बड़ाके खड़गन के ।-भूपण.०, पृ०.३३० । . ... तरवर लाकड़ होय ।---बाँकी ० प्र०, भा०३, पृ० १० . खड़ाका'-क्रि० वि० चटपट । घ्रिता से। . . खड़ी तैराकी-संज्ञा स्त्री० [हिं०] खड़े होकर जल में तैरने की क्रिया। घरदसरंग-ग्रंथादेव०] कुश्वी का एक पेंच ।।