पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४७६

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चीवर चीवर-संशा पुं० [सं०] १.योगियों, संन्यासियों या भिक्षुओं का चुचु-संघ पुं० [सं० च ञ्च ] १. छछु दर । २. वैदेहिक स्त्री और - फटा पुराना कपड़ा । १. बौद्ध संन्यासियों के पहनने के वस्त्र ब्राह्मण से उत्पन्न एक संकर जाति । · का ऊपरी भाग। चुचु-या स्त्री० १. बूटी या पौधा । चिनियारी।.. विशेष चौद्ध संन्यासियों के पहनने का वस्त्र दो भागों में होता है। चुचुक-संष्टा पुं० [सं० चञ्चफ ] बहरसंहिता के अनुसार नेऋत्य ऊपरी भाग को चीवर और नीचे के भाग की निवास कहते हैं। कोण पर स्थित एक देश । चीवरी-संक्षा पुं० [सं० चीवरिन्] १. बौद्ध भिक्षुक । २.भिखमंगा। चुचुरी-संशा खी० [सं० चुञ्च री] वह जूया जो इमली के चौनों से चीस' - संज्ञा स्त्री॰ [हिं० टोस] दे० 'टीस'। खेला जाय। चीस -संज्ञा खो- [ गुज०] किलकारी। चिटकार । चिचिया- . चुचुल-संशा पुं० [सं० चु चल] विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम जो ____संगीत शास्त्र का बड़ा भारी पंडित था। हट । कूक । उ०-धरे गैन सीसं चले [रवेद रीसं । गदा मुदग- चुचुली—संशा जी [सं० चुञ्च ली] दे॰ 'चुचुरी'.. दंत पारंत चीस-पृ० रा०,२।६३। चुटली -संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] घुघची। . ... पीसका संघा पुं० [हिं० सका] दे० 'चसका' । उ०प्रलम चुटा, चुटी-संज्ञा स्त्री० [सं० च एटा, घण्टी] दे० 'चुडा'। वाँका बड़ा छुट ना चीसका जीव के संग जब मुहें लाग ।-- चुंडा-संश पुं० [सं०] [ी अल्पा० ची] कूया. । कूप । पलटू०, भा॰ २, पृ० ३६ । चुडित-वि० [हिं० ची] चुटियावाला । 'चुडीवाला। उ०- चीसना,-कि० अ० [हिं० पीस] दे॰ 'चीखना। योगी कहै योग है नीको द्वितीया और न भाई । चडित मुंडित चीसाँ@ - संशा सी० [हिं० चीस] दे॰ 'चिंघाड़' । २.चीखन । मौन जटाधरि तिनहुँ कहाँ सिधि पाई।--कबीर (शब्द०)। घ-भाग्यो हस्ती चीसों मारी, वा मूरति की मैं बलि- .: हारी।-कबीर पं०, पृ० २१० । चुंडी-संक्षा होहिं० च दी] दे० 'चुदी'। ... चीह-संहा सी० [फा० चौख चिल्लाहट | चीत्कार। चुंदो'–संडा स्की [सं० चुन्दी] कुटनी। दूती।। बुगा - संज्ञा पुं॰ [देश॰] सिर का प्राभूषण । चुदी --संज्ञा स्त्री० [सं० चूड़ा] वालों की शिखा जिसे हिंदू सिर पर चुगल-संज्ञा पुं० [हिं० चों+गुल या फा० चंगाल] २. चिड़ियों रखते हैं । चुटया। या जानवरों का पंजा जो कुछ टेढ़ा या भका हा होता है। चुधा-वि० [हिं० चौ (-चार+अंघ).] [सी० चुधी] १. जिसे चंगुल । २. मनुष्य के पंजे की वह स्थिति जो उगलियों को सुझाई न पड़े । २. छोटी छोटी आँखों वाला। बिना हथेली से लगाए किसी वस्तु को लेने या पकड़ने में होती चुधियाना-क०' चुधियाना-कि० अ० [हिं०] दे॰ 'चुघलाना' । . है। वटोरा हुमा पंजा। वकोटा । चंगुल । जैसे-चुगल भर चुंब-संज्ञा पुं० [सं० चुम्ब | दे० 'चुवन (को०)। प्राटा साँई को दो। चुवक- पुं० [सं०] १. वह जो चुवन करे । २. कामुक । कामी । मुहा०--चुगल में फंसना=वश में पाना । काबू में होना । पकड़ ३. धूर्त मनुष्य । ४. ग्रंथों को केवल इधर उधर उलटनेवाला । में माना। विषय को अच्छी तरह न समझनेवाला । ५. पानी भरते समय चुगली:--संज्ञा दी [देश॰] नाक में पहनने का एक प्राभूषण घड़े के मुह पर बंधा हुग्रा फंदा । फांस । ६. एक प्रकार का जिसे 'समया' भी कहते हैं । एक प्रकार की नथ । पत्थर या धातु जिसमें लोहे को अपनी ओर आकर्षित करने । चुंगा-संचा पुं० [हिं० चोंगा] दे० 'चोंगा'। की शक्ति होती है। .. चूंगी-संशा प्री० [हिं० चुगल] १. चुगल भर वस्तु । चुटकी भर विशेष--चबक दो प्रकार का होता है-एक प्राकृतिक दूसरा चीज। कृत्रिम । प्राकृतिक चुवक एक प्रकार का लोहा मिला पत्थर यो०-घुगी पैठ = वह पैठ या बाजार जिसमें हर एक दूकानदार होता है जो बहुत कम मिलता है। इससे कृत्रिम या बनावटी से जमींदार को चुगल भर चीज मिलती हो । चुवक ही देखने में अधिक पाता है जो या तो घोड़े की नाल २.वह महसूल जो शहर के भीतर भानेवाले बाहरी माल पर के आकार का होता है या सीधी छड़ के आकार का । यदि लगता हो। चुवक की छड़ को लोहे के चूर के ढेर में डालें तो दिखाई यो०-- 'गी कचहरी = नगरपालिका का कार्यालय जहाँ अन्य पड़ेगा कि लोहे का चूर उस छड़ में यहाँ से वहाँ तक बराबर कार्यों के साथ चुगी वसूलने का भी कार्य होता है। 'नहीं लिपटता बल्कि दोनों छोरों पर सबसे अधिक लिपटता चुगी घर=चुगी की वसूली के लिये बना हुमा घरे । है। इन दोनों छोरों को आकर्षण प्रांत कहते हैं । छड़ के मध्य चुगी चौथी -वह स्थान जो च 'गी की वसूली और देखरेख के भाग को मध्य या शून्य प्रांत कहते हैं । कभी कभी किसी छड़ लिये बना हो। के पाकर्षण प्रांत दो से अधिक होते हैं। यदि किसी 'चुवक- चुगुल@---संशा पुं० [हिं० चगुल] दे० 'चुगल'-१ । उ०—ज्यों शलाका को उसके मध्यभाग ( मध्याकर्षण केंद्र) पर से ऐसा छुधित बाज लखि गन कुलंग । चुगुल चपैट करि देत भंग । ठहरा कि वह चारों भोर घूम सके तो वह धूमकर उत्तर- --सूदन (शब्द०)। दक्खिन रहेगी, अर्थात् उसका एक सिरा उत्तर की ओर और चुंचा-संशा श्री० [चञ्चु] दे॰ 'चोंच' । दूसरा दक्खिन की ओर रहेगा। ध्रुवदर्शक यंत्र में इसी प्रकार की 'चरी-संवा स्त्री० [सं० चञ्च री] दे० चुचुरी'। शलाका लगी रहती है। पर ध्यान रखना चाहिए कि शलाका