पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४७९

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१५५८ चुचाना. क- संक्षा पुं० [मं] चूका का सान। अपने नृप को इह सुनायो। ब्रजवारित बटपारिन हैं सब चुगली फल-संका पुं० [सं०] इमली। श्रापहिं जाय लगायो ।- सूर (शब्द०)। वास्तुक--संज्ञा पुं० सं०] अमलोनी का साग । महा०-च गुरली खाना-पीठ पीछे निदा करना । झुडी निंदा वेधक-संवा पु० [सं०] एक प्रकार की कांजी। करना। का-संडा सी० [सं०] १.अमलोनी का मायः २. इमली। चुगा'---संज्ञा पुं० [हिं० चुगना[ वह अन्न पादिजो विड़ियों के काम्ल · संग्रा पुं० [सं०] १ चूक नाम को खटाई । २. च का का आगे चुगने के लिये डाला जाय । चिड़ियों का चारा। - साग। चुगा-संज्ञा पुं० [हिं० चोगा ] दे० 'चौगा' । शाम्ला--संभ ० [सं०] कमलोनी का साग। चुगाई-मंशा मो० [हिं० च गाना--ई (प्रत्य? )] चुगने की. त्रिका, चुक्री-संक्षा को [मं०] १.अमलोनी का साग । नोनिया । क्रिया या भाव। - २. इमली। .. चुगाई–मंशती [हिं० चुगाना+ई (प्रत्य॰)] गाने की [श्मिा-संवा श्री० [सं० चुक्रिमन्] खट्टापन । खटास [को०] । क्रिया या भाव । २.चुगाने की मजदूरी। क्षा--संकी० [सं०] १ हिंसा । वध। २. क्षालन । प्रक्षालन चगाना--क्रि० स० [हिं० च गना चिड़ियों को दाना खिलोना । - (को०। . चिड़ियों को चारा डालना। उ०--छोड़ मन हरि विमुखन बुखाना-मि० स० [सं० चप] १.दुहते समय गाय के थन से दूध को संग। जिनके सग फुबुधि उपजत है परत भजन में मंग। · उतारने के लिये पहले उसके बछड़े को पिलाना । उ० -याई कहा होत पय पान कराए, विष नहिं तजत भुजंग । काहि .. ही गाइ दुहाइवे को सु चुदाइ वली न बछानि को घेरति । कहा कपूर च गाए स्वान न्हवाए गंग ।-सूर (शब्द०)। 'नकु डेराय नहीं कब की वह माय रिसाय अटा चढ़ि टेरति । संयो० कि०--देना। -: देव (शब्द०)। २. - चखाना । उ०-भरि अपने कर कनक चुगल -संज्ञा पुं० [फा० चु गुल] दे॰ 'चुगल'। - कचोरा पीवति प्रियहि चुनाए।-सूर (शब्द॰) । चुगलखोर-संज्ञा पुं० [फा० चुगलखोर] दे० 'चुगुलखोर'। ' चुगद'-संवा पु० [फा० चु गढ़ ] १. उल्लू पक्षी । २ मूर्त व्यक्ति । चुगलखोरी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० च गुलखोरी] दे॰ 'च गुलखोरी'। मूड़ व्यक्ति । वेवकूफ प्रादमी। चुगली:-संज्ञा स्त्री० [फा० चु गुली] दे॰ 'चुगली'। बुगद-वि० मूर्ख । मूढ़ । देवकूफ । चुगाा-संसा पुं० [हिं० चुगना] दे० 'चु गा'। चुगना-क्रि० स० [सं० चयन] चिड़ियों का चोंच से दाना उठाकर, चुग्घी-संघा स्त्री॰ [देश॰] चखने की थोड़ी सी वस्तु । चाट। चसका। - खाना । चोंच से दाना दीनना। उ० -उथलहिं सीप मोति चुचप्राना-क्रि० प्र० [हिं० चु चाना] दे० 'चुचाना' 1 उ०-- . उतराहीं। चुगहि हंस पो केलि कराहीं।-जायसी सोभित नवनति जड़ित सु कुंडल स्वेद धुंद च वधाइ।-नद० १ . (शब्द०)। . ग्रं॰, पृ० ३६॥ चुगना-संज्ञा पुं० विड़ियों का माहार । चुग्गा। चुचकनारे-क्रि० प्र०-[हिं० च च कना ] दे० 'चु चुकना' । चुगल-संज्ञा पुं० [फा० च गुल] १. परोक्ष में दूसरे की निंदा करने चुत्रकार-संज्ञा स्त्री० [हिं० चुचकारना या अनु०] चुमकारने या वाला। पीठ पीछे शिकायत करनेवाला । इधर की उधर दुचकारने की ध्वनि या क्रिया । चुचकारी। लगानेवाला । लुतरा। 3०-कहा कर रसखान को, कोऊ चुचकारना-क्रि० स० [अनु०] प्यार से चुवन के ऐना शब्द मुह चुगल लवार । जीप राखनहार है माखन चाखनहार ।- से निकालकर बोलना । चुमकारना । पुचकारना । दुलारना। .. रसखान (शब्द०)। २.वह कंकड़ जिसे चिलम के छेद में प्यार दिखाना । उ०-(क) मैया बहुत बुरी बलवाक। कहन रखकर तंबाकू भरते हैं । गिट्टी । गिट्टक ।। लगे वन बड़ो तमासो, सर मोड़ा मिलि पाक। मोहू' को चुगलखोर-संघा पुं० [फा०च गुलखोर] परोक्ष में निदा करनेवाला। चुचकारि गये लें, जहाँ सघन वन झाऊ। भागि चले कहि गयो पीठ पीछे शिकायत करनेवाला । इधर की उधर लगानेवाला। उहाँ ते, काटि खाइहै हाऊ।—सूर (शब्द०)। (ख) चाहि लुतरा। च चकारिच वि लालतलावत उर तसे फल पावत जैसे सुबीज चुगलखोरी-संझा मी० [फा० च गुलखोरी] चुगली खाने का काम । वए हैं ।--तुलसी (शब्द०)। परोक्ष में निदा करने की क्रिया या भाव । चुचकारी-संज्ञा स्टी० [अनु०] चुचकारने की क्रिया या भाव । चुगलस-संशा की देश०] एक प्रकार की लकड़ी। . चुवाना--क्रि० स० [सं० च्यवन] करण कण या दबूद करके युगला-संशा. पुं० [हिं० चल] दे० 'चुगलखोर'। निकलना । चूना । टपकना । रसना । निना । गरना। -युगलाना -क्रि० स० [हिं० च भलाना दे० 'चुमलाना'। ('चूना' या 'टपकना' क्रिया के समान इसका प्रयोग भी पला-संका सी० [फा० च गली] पीठ पीछे की शिकायत । दूसरे टपकनेवाली वस्तु (जैसे, पानी) तया जिसमें से टपके (जैसे, 'की निंदा-जो उसको अनुपस्थिति में तीसरे से की जाय । उ०- .. धर) दोनों के लिये होता है।) उ०--(क). अकुलित जे