पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४८

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खड्गपुत्र खड़ी चियाज ११२४ खड़ी नियाज-संशा स्त्री० [हिं० खड़ी+फा० नियाज] मनोरथ सिद्ध पोर खींचना, और अपने दाहिने पैर को उसके पैरों में होने पर की जानेवाली मनौती, प्रार्थना या चढ़ावा। डालकर उसकी पिंडली और ऐंदी को अपनी ओर खींचते खड़ी पाई-संबा सी- [हिं०] खड़ी सीधी रेखा (1) जो वाक्य .. हुए उसकी छाती पर धक्का देकर उसे चित्त गिरा देना ...' समाप्त होने पर लगाई जाती है। पूर्ण विराम । पड़ता है। खडीवोली-संक्षा ली० [हिं० खट्टी (या खरी?)+बोली (भाषा)] खड़ी हडी-संहा.वी० [हिं०] वह हडी जिसका रुपया चुकाया न .' वर्तमान हिंदी का एक रूप जिनमें संस्कृत के शब्दों की गया हो। बहलता करके वर्तमान हिंदी भापा की पीर फारसी तथा खड़--संज्ञा पुं० [सं०] अरवी।हिती [को०] । .. परवी के शब्दों की अधिकता करके वर्तमान उर्दू भापा की खड्मा-संज्ञा पुं० [हिं० कढ़ा+उपा] (स्वा० प्रत्य०]] हाय या सृष्टि की गई है। यह बोली जिसपर व्रज चा अवधी पादि पांव में पहनने का कड़ा। चढ़ा। की छाप न हो। ठंठ हिंदीं। भाज की राष्ट्रभाषा हिंदी का पूर्व खड-संघा बी० [सं०] खढ़ । अरथी (को०] । रूप। इसका इतिहास शताब्दियों से चला आ रहा है। खड्ला --संज्ञा पुं० [हिं०. फड़ा +ऊला (स्वा प्रत्य०] दे० 'खड़मा'। .. परिनिष्ठित पश्चिमी हिंदी का एक रूप । वि० दे० 'हिंदी' ३०-कोई कहे मैं इसका मामा । लाया खाड़ खड़ले जामा।. विशेष-जिस समय मुसलमान इस देश में प्राकर बस गए, उस --सहाजो०, पृ? २७ । समय उन्हें यहाँ की कोई एक भाषा ग्रहण करने की अाव- खड्ग-संश पुं० [सं०] २. प्राचीन काल का एक प्रसिद्ध अस्त्र ... श्यकता हुई। वे प्रायः दिल्ली और उसके पूरवी प्रांतों में जिसका व्यवहार अाजकल केवल पशुणों को बलि देने के ही अधिकता से बसे थे, और ब्रजमापा तथा अवधी भापाएं, लिये होता है । तलवार इसी का एक भेद है । खाँदा। २. ..क्लिप्ट होने के कारण अपना नहीं सकते थे, इसलिये उन्होंने गड़ा । ३.एक बुद्ध का नाम । ३. चोर । भटेकर । एक गंध मेरठ और उसके आसपास की वोली ग्रहण की, और उसका द्रव्य । ५. तंत्र के अनुसार शक्तिपूजा की एक मुद्रा । ६. . नाम खड़ी (बरी ?) बोली रखा। इसी खड़ी बोली में वे ___ लौह । लोहा (को०) 1७ गैंडे की सींग (को०)। धीरे धीरे फारसी और अरवी शब्द मिलाते गए जिससे अंत खड्गकोश-संज्ञा पुं० [सं०] खड्ग रखने का म्यान [को०] । में वर्तमान उर्दू भाषा की सृष्टि हुई । विक्रमी १४वीं शताब्दी खड्गट-संज्ञा पुं० [सं०] कांप का एक भेद [को०] । मे पहले पहन अमीर खुसरो ने इस प्रांतीय बोली का प्रयोग खड्गधर-संवा पुं० [सं०] न्यूड्न धारण करने वाला व्यक्ति [को०] । करना प्रारंभ किया और उसमें वहन कूस कविता की, जो सरल तथा सरस होने के कारण शीघ्र ही प्रचलित हो गई ! खड्गधार-संज्ञा पुं० [सं०] बदरिकाश्रम के एक पर्वत का नाम । बहुत दिनों तक मुसलमान ही इस बोली का बोलचाल और खड्गवारा-संघा पुं० [सं०] तलवार की धार [को०] । साहित्य में व्यवहार करते रहे, पर पीछे हिंदुओं में भी इसका। खड्गधारा व्रत-संज्ञा पुं० [सं०] अत्यंत दुष्कर कार्य [को०] 1 प्रचार होने लगा। १५वीं और १६वीं शताब्दी में कोई खड्गधारी-संका बी० [सं० खगघारिन् ] [बी० खड्गधारिणी हाथ कोई हिंदी के कवि भी अपनी कविता में कहीं कहीं इसका में खड्ग लिए हए । खड्गपाणि । प्रयोग करने लगे थे, पर उनकी संख्ण प्रायः नहीं के समान खड्गधेनु-संज्ञा स्त्री० [सं०] 1. छोटी असि। रिका। २. मौदा । थी। अधिकांश कविता बराबर अवधी और अजमापा में ही . . गैडा [को०] । . होती रही। १८वीं शताब्दी में हिंट भी साहित्य में इसका खड्गवेनुका-संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'खड्गधेनु' (को०)। व्यवहार करने लगे, पर पद्य में नहीं. केवल गद्य में और खड्गपत्र-संज्ञा पुं० [सं०] १.एक प्रकार का कल्पित वृक्ष । तभी से मानों वर्तमान हिंदी गद्य का जन्म हृया, जिसके विशेष-- कहते हैं. यह वृक्ष यमराज के यहां है और इसकी प्राचार्य मु० सदासुख, लल्लू जी लाल और सदल मिय माने डालियों में पत्नों की जगह तलवारें और फटार आदि लगी जाते हैं। जिस प्रकार मुसलमानों ने इसमें फारसी तथा हुई है। पापियों को यातना देने के लिये इस वृक्ष पर परवी यादि के शब्द भरकर वर्तमान उर्दू भाषा बनाई, उसी चढ़ाया जाता है । गरुड़ पुराण में इसे प्रसिपत्र भी कहा प्रकार विनों ने भी उसमें संस्कृत के शब्दों की अधिकता . . गया है। .. करके वर्तमान हिदी प्रस्तुत की। इधर थोड़े दिनों से कुछ लोग . २. तलवार की धार (को०)। संस्कृतप्रचुर वर्तमान हिंदी में भी कविता करने लग गए ह आर खड्गपाणि-वि० [सं०] खड्गधारी [को०] 1. . कविता के काम के लिये उसी को खड़ी बोली कहते हैं। खड्गपिघान-संज्ञा पुं॰ [सं०] तलवार का कोश । म्यान [को०] । खड़ी मसकली-संज्ञा स्त्री० [हिं० खड़ा+J० मसकला-रेती] खडगपिधानक-संज्ञा पुं० [सं०] दे० खड्गविधान'। खानी की तरह का कुंद धार का एक औजार जिससे सिकली खड्गपुत्र-संदा पुं० [सं०] प्राचीन कान की एक प्रकार की कटारी करनेवाले वरतन को खरंच कर जिला करते हैं । खडी सकी- संथा स्त्री० [हिं० खड़ा+देश० सफी] कुश्ती का एक पेंचा ... जो प्रायः एक हाथ लंबी और दो अंगल चौती होती 'डियो-इसमें वाहाय से प्रतिद्वंद्वी की दाहिनी कलाई पफट- जिसका व्यवहार बहुत निकट पाए हुए शत्र पर प्रहार करने ' ' कर और दाहिने हाथ से उसकी कुहनी 'पकड़कर अपनी .. के लिये होता था। ..