पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४८४

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चुनौटी चुपड़ना होता। . विशेष--यह रंग हल्दी, दर्रा, कसीस पोर पतंग (बकम) की निकले । अवाक । मौन । खामोश । जैसे, च प रहो । बहुत लकड़ी के संयोग से बनता है। इसकी रंगाई लखनऊ में होती मत बोलो। है । यह प्राकिलखानी रंग से कुछ अधिक काला होता । क्रि० प्र०—करना ।--रहना ।- साधना - होना । चुनौटी-षा स्त्री० [हिं० च ना+ौटी] (प्रत्य०)] डिबिया की तरह यौ० चुपचाप= (१) मौन । खामोश । (२) शांत भाव से । का वह वरतन जिसमें पान लगाने या तंबाकू में मिलाने के बिना च'चलता के । जैसे, यह लड़ का घड़ी भर भी च पचाप लिये गीला चूना रखा जाता है। नहीं बैठता । (३) विना कुछ कहे सुने । विना प्रकट किए । चुनौती'-संशा खी० [?] १. प्रवृत्ति बढ़ानेवाली बात : उत्तेजना । गुप्त रीति से । धीरे से । छिपे छिपे । जैसे,—(क) वह चुप- . बढ़ावा । चिट्टा । उ0-मदन नपति को देश महामद चाप रुपया लेकर चलता हुआ। (ख) उसने च पचाप उसके बुद्धि बल बसि न सकत उर चैन । सूरदास प्रभु दूत हाथ में रुपए दे दिए । (४) निरुद्योग । प्रयत्नहीन । प्रयत्नः : दिनहि दिन पठवत चरित चुनौती दैन ।—सूर (शब्द०) वान् । निठल्ला । जैसे -अब उठो, यह च पचापीठने का समय . २. युद्ध के लिये उत्तेजना या आह्वान । ललकार । उ०- नहीं है । चु पच प= दे० 'चुपचाप' । चु पछिनाल-(0) छिपे (क) लछिमन अति लाधव सों नाक कान बिनु कोन्हि । ताके छिपे व्यभिचार करनेवाली स्त्री। (२) छिपे छिपे कोई काम कर रावन कहँ मनहु च नौती दीन्हि । —तुलसी (शब्द॰) । करनेवाला । गुप्त गुंडा । छिपा रुस्तम । (ख) छठे मास नहिं करि सके बरस दिना करि लेय। कहै मुहा०--चुप करना=(१) बोलने न देना । । (२) चुप होना । कबीर सो संत जन यमै चुनौती देय ।-कबीर (शब्द०)। मौन रहना । जैसे,—चुप करके बैठो । चुप नाधना, चुप लगाना, क्रि० प्र० देना। चुप साधना=मौनावलंबन करना । खामोश रहना. चुप : ३. वह आह्वान जो किसी को वादविवाद करके अथवा और किसी मारना = मौन होना । चुपके से दे० 'चु पका' का मुहा०। । प्रकार किसी विषय का निर्णय या अपना पक्ष प्रमाणित चपर-संज्ञा स्त्री मौन । खामोशी । जैसे,—(क) सबसे भली चुप। .. फरने के लिये दिया जाता है । प्रचार । (ख) एक च प सौ को हराने । उ० ऐसी मीठी कुछ नहीं चुनोती-संज्ञा स्त्री० [हिं० चुनौटी] दे० 'चनोटी'। जैसी मीठी च प |-- कवीर (शब्द०)। चुन्नट--संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'च नट' । चुप संवा स्त्री॰ [देश॰] पक्के लोहे की वह तलवार जिसमें टूटने से यो०-चुन्नटदार । उ०-बंगाली सज्जन रेशमी कुर्ता और बचाने के लिये एक कच्चा लोहा लगा रहता है।। चुन्नटदार धोती पहने थे और ऊपर से रेशमी चादर पोढ़ थे। चुपका ... हिल [हिं० च ५] [वि० स्त्री०च पकी] १. मौन । दामोश । ' -संन्यासी, पृ० १८४ । क्रि० प्र०- होना। चुन्नत-संशा स्त्री॰ [हिं०] है 'च नट' । मुहा०-च पके से = विना किसी से कुछ कहे सुने । शांत भाव से । चुन्नन-संवा स्त्री॰ [हिं० च नन] दे० च नन' । छिपाकर । गुप्त रूप से । चुन्ना'-संज्ञा पुं० [हिं० च रमा] दे० 'धु रना' । २. च प्पा । घुम्ना। चुन्ना-वि० [नि० सी० च न्नी] च ननेवाला । जैसे चन्नी दाल। चुपकाना-क्रि० स० [हिं०च पका] मौन करना । न बोलने चुन्ना-क्रि० स० [हिं० च नना] दे॰ 'च नना' । देना । खामोश करना। चुन्ना-संज्ञा पुं० [हिं० च ना] दे॰ 'चूना' । चुपकी-संक्षा स्त्री॰ [हिं० च प] मीन । खामोशी। .. चुन्ना-वि० [हिं० चूना=टपकना] चूने या रिसनेवाला । जैसे,-- क्रि०प्र०-साधना। . . . . चुन्ना लोटा। मुहा०-- पकीलगाना मुंह से बात न निकालना। सन्नाटे में चुन्नी-संज्ञा स्त्री० [सं० च गिफा या चीकृत] १.मानिक, याकूत रहना। या पोर किसी रत्न का बहुत छोटा टुकड़ा। बहत छोटा चुपचाप-कि० वि० [हिं० चप+अनुष्व० चाप] दे० 'चुप' शब्द का नग । २.अनाज का चर । भूसी मिले अन्न के टकडे। योगिक 'चुपचाप'।.. ३. स्त्रियों की चद्दर । प्रोढ़नी। ४.लकड़ी का बारीक चुपचुप-क्रि० वि० [हिं०] १० यो० 'चुपचाप । च र जो मोरी से चीरने पर निकलता है । कुनाई । ५. चुपचुपाते-क्रि० वि० [हिं० च पच पाना] दे० यौ० 'चुपचुप । चमकी या सितारे जो स्त्रियाँ अपना सौंदर्य बढ़ाने के चुपचुपाना-क्रि०अ० [अनुध्व या हिं० चिपचिपाना] दे० लिये माथे और कपोलों पर चिपकाती हैं । उ-तिलक चिपचिपाना' । .. संवारि जो जो चुन्नी रची । दुइज मांझ जानहु कचपची। चुपड़ना-क्रि० स० [अनुर०] १. किसो गीली वस्तु को फैलाकर . .. —जायसी (शब्द०)। लगाना । पिसी चिपचिपी वस्तु का लेप करना । पोतना। । मुहा-- चन्नी रचना-मस्तक और कपोलों पर सितारे या . जैसे,-रोटी में घी च पड़ना । दोष छिपाना । किसी चमकी लगाना। दोप का आरोप दूर करने के लिये इधर उधर की बातें चप-वि० [सं० च प (चोपन )=मौन] जिसके मुह से शब्द न करना । जैसे,--उसने अपराध तो किया हा ६, अब आप