पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४८५

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१५६४ · पड़ने से क्या होता है.। ३. चिकनी चुराड़ी कहना। चाप चुभी।-नूर (जन्द०)। ४. मग्न । लीन । तन्मय । २०-- - लसो करना । खुशामद करना । जिमि बालि त्यो लति ढुटुमी तिमि सोह्यो मति रन -चुपड़ा-संवा पुं० [हिं०/ पड़+पा (प्रत्य॰)] वह जिसकी आँखों चुभी 1-गोपाल (शब्द०)। - में बहुत कीचड़ हो । कीचड़ से भरी आँखोंवाला । चुभर चुभर--कि० वि० [अनु॰] १. प्रों से चूस चूसकर पीने का चपड़ी-संवा श्री. [हिं. चुपड़ना। १. घी लगाई हुई सादी रोटी। शब्द । २. बच्चों के दूध पीने का शब्द। - क्रि० प्र०: खाना। चुभलाना-कि०म० [अनुव०] १० चुवलाना'। - . २. चिकनी वात । प्रिय वचन । खुशामद की बात । चुभवाना--क्रि० स० [हिं० च मना का रूप] चुभाने का कार्य चपरना क्रि० स० [हिं० च पड़ना] १० 'चुपडना' । दूसरे से कराना। रूप] घेताना । गढ़ाना। चुभाग-क्रि० स० [हिं० च ननाका ..पपरी आलू.. संक्षा पुं० देश पिंडाल या खाल जो मद्रास और मत्य भारत में अधिकता से होता है। चुभोला. वि० [हिं० चुनना+ईला (प्रत्य॰)] [वि० श्री. पाना @ क्रि० अ० [हिं० च प] चुप हो रहना । मौन रहना। चुभीली ]१. नुकीला । १. मन में बट कने या च भनेवाला । - खामोश रहना । न बोलना। ३. मन को प्रापित करनेवाला । पाना' क्रि० स० चुप करना। शांत करना । खामोश करना। चुभोना क्रि० स० [हिं०] दे० 'चुमाना। चुप्पा-वि० [हिं० चन] [वि० स्त्री० च प्पी] जो बहुत कम दोले। चुभोना -वि० [हिं० चुनना-पीना (प्रत्य॰)] [वि० सी० ....... जो अपनी बात को मन में लिए रहे। जो बात का उत्तर घनौनी ] • 'चुभीला'। जल्दी न दे । धुन्ना । चुपकार-संबा सी० [हिं० चू मना+फार] चूमने का सा शब्द जो चप्पो-संज्ञा स्त्री० [हिं० चप] मौन । खामोशी । प्यार दिखाने के लिये निकालते है । पुत्रकार । क्रि० प्र०-साधना । चुमकारना-क्रि० स० [हिं० धुमकार) प्यार दिखाने के लिये चूमने चुबकी -संश स्त्री० [हिं० चमकी] दे० 'चुभकी' । उ० - जोग का सा शब्द निकालना । पुचकारना । दुलारना । जैसे, वह ... . जुक्ति सूचवकी लेकरि काय पहिमा होइ जावो ।- बच्चे से चमकारकर सब बातें पूछने लगा। ..... चरण० बानी, पृ०६६। चमकारी संशश [हि ]20 'चुमकार'। ' चुबलाना-क्रि० स० [अनु॰] किसी वस्तु को जीभ पर रखकर स्वाद । चनवाना--क्रि० स० [हिं० चूमन फारूप ] चूमने का काम - लेने के लिए मुंह में इधर उधर लाना । मुह में लेकर धीरे दूसरे से कमाना। -- .:: धीरे पास्वादन करना । चमाना--कि० म० [हिं० चूमना किसी दूसरे के सामने चमने के -': चतुक-संज्ञा पुं० [मं०] २ 'चिबुक' को० । लिये प्रस्तुत करना । ...चुद्र मंशा पुं० [मं०] मुख । चेहरा [को० । चमचमायन--मं: पुं० [.] घाब की खुजलाहट जो उसके पूजने के चुभम्ना क्रि० प्र. [अनु.] पानी में चुभ चुभ शब्द करते हुए लगभग होती है किो०] । गोता खाना 1 बार वार डूबना उत राना । चमन----संप पु० [सं० चुम्बन] ३ 'चुबन' । उ6--माजनि तोहर चुभकाना--क्रि० स० [मनु०] पानी में गोता देना। बार बार सिनेह भल भेल ! पहिया चूनन कि दूर गेल। -विद्यापति, ...पकड़कर डुबाना । पृ० ३०६। चुभकी संज्ञा स्त्री० [अन० चुम चन] १. सब्बी। गोला। उ०- चम्मका--संज्ञा पुं॰ [सं० चुन्दया दे० ' क'। " (क) लभकी चलि जाति जित जित जलकै लि धीर। चम्मा--मंशश पुं० [सं० चम्बा, हिच मना] नबनाबोसा । कोजत केसरि नीर से तित तित केसरि नीर । - बिहारा मि०प्र०--11...लेना। ... र०. दो।५२ (ख) जल विहार मिम भीर में ल चमकी इक यो०-चन्माचाटी- चुम्मा देना तथा प्यार से अंगों को चाटना। बार। दह भीतर मिलि परस्पर दोऊ करत बिहार । चरंगी-मा पुं० [हिं० चौरंगी ] चार मंग या विभागाला। .पीकर (शब्द०)।२. बुभकने की क्रिया या भाव। दे० 'चौरंगी। 50--रंगी मुबीर, जुटे जुद्ध मीरं । छुटे चमन-संह सीहि भना] १. चभने की क्रिया का भाव। २. मोप वान, गुदे प्रासमान । -पृ० रा०, १। ६४०।। ...। टीस। . चर-मंशा पुं० [विश०] १. वाघ प्रादि के रहने का म्यान । माद। कि०प्र०-होना। चार पांग्रादमियों के बैंडने का स्थान । बैठक । --पाट, - चुमना-क्रि० स० [अनु1१.किसी नुकीली वस्तु का दवाव पाकर बार, चौपार, चूर, देवल, हाट, मनान। नगवत रसिया। - किसी नरम वस्तु के भीतर घुसना । गड़ना । धंसना । जैसे- कोटा भना, सूई चभना। २. हृभ्य में मटकना । पित्त पर वर --मंझा पुं० [पनु.] फागज, रामे पने दिमे मुड़ने या टहने चोट पहुंचना । मन में व्यथा उत्पन्न होना । जैसे, उसकी चुभती हईवात कहाँ तक सुनें । ३. मन में कैना। हृदय पर चर'--[सं० प्रचन बहुत । प्रधिक। प्याया। 50-- प्रभाव फरना। चित्त में बना रहना। जैसे,उसकी बात मेरे प्रामा बिनय युन बैग करन ये माहि तेहि त होउ अनंद चुर मन में चुभ गई । उ०-दरति न टारे यह छवि मन में फुर उर लागत नाहि-विधाम (गट)।