पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४८६

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१५६५ . . पुरी चुरडल -संज्ञा स्त्री हि चुडैल] दे॰ 'चुडैल'। उ०--देखि चुरमुराना-फ्रि० स० [अनु॰] चरमुर शब्द करके तोड़ना ।. रूप मुख पर खरा । विधि एह चुरइल के अपछरा |-- जैसे,- चना, पापड़ प्रादि चुरमुराना । चित्रा०पृ० ३३ । चुरवाना--क्रि० स० [हिं० चु राना (=पफाना)] पकाने का काम चुरकट-संशा पं० [हिं०] दे० 'चिरकुट'। करना। चुरक्टर-वि० [हिं०] दे० 'चुरकुट' । चुरवाना-- क्रि० स० [हिं० धुराना फा० रूप] 'चोरवाना'। चुरकट ---संज्ञा पुं० [हिं० चोरफट] दे० 'चोरकट' । चुरस.....संध. स्त्री० [देश॰] कपड़े आदि की शिकन । सिलवट । सिकुड़न।। चुरकना--क्रि० अ० [अनु०] १. बोलना। चहचहाना। चहफना। चुरस'-संश हिं०] चुरुट । चीं चीं करना । चचें फरना। (व्यंग्य या तिरस्कार में चुरा -संघा पुं० [हिं०] दे० च रा'। उ०-देखत च रे कपूर बोलते हैं )। २. चटकना। चूर होना। ३ टूटना । फटना । ज्यों उप पाय जिन लाल । छिन छिन होत खरी खरी छीन . चुरकी--संवा स्त्री० [हिं० चोटी] चुटिया । शिखा । छबीली बाल ।--बिहारी (शब्द०)। चरकुट--क्रि० वि० [हिं० चूर+कू दना] चकनाचुर। चर च। चुरा' गंधा स्त्री० [सं०] चारी । चूणित । उ०-मुष्टि को गद मरदि चार गूर चुरफुट करचो कंस धुरा कट करयो कंस चुराई'-संशा खी० [हिं० च रना] चुरने की क्रिया या भाव। मनु कंप भयो भई रंगभूमि अनुराग रागी ।--सूर (शब्द०)। पकने का काम। चुरकूसgt-संज्ञा पुं० [हिं० चर] चूर चूर । चूरमूर । चुर्ण 'वुकनी । चुराई --वि० [हिं० चुर+माई (प्रत्य०)] चोरी की हुई । जैसे,.. उ.--तिलक पलीता माये दसन बज के धान । जेहि हेरहि चुराई कविता, न राई धोती। तेहि मारहिं चुरकुस कर गिदान । जायसी (शब्द०)। चुराना'-कि० स० [सं० च र (=चोरी फरना)] १. किसी वस्तु को चरगना--क्रि० अ० [हिं० च रकना] १. दे० 'चुरकना' २. प्रसन्न उसके स्वामी के परोक्ष या अनजान में ले लेना । किसी दूसरे " होकर बोलना । अल्हड़पन से बोलना। की वस्तु को इस प्रकार ले लेना कि उसे खबर न हो । गुप्त चरगमा-संक्षा स्त्री० [ हिंच रगना] १. प्रसन्न होकर की जाने- रूप से पराई वस्तु हरए करना । चोरी करना। वाली बात । २. कानाफूसीवाली बात । मुहा०—चित पराना-मन को याकर्षित करना । मन मोहित . . करना। चरचुरा--वि० [अनु जो खरा होने के कारण जरा सा दबाने से चूर चुर शब्द करके टूट जाय । जैसे,-कुमकुमा, पापड़ पादि। २. परोक्ष में करना। लोगों की दृष्टि से बचाना। छिपाना । .. चुरचुराना--कि० अ० [अनु०] १. बहुत थोड़े पाघात से चर जैसे,-वह लड़का पैसा हाथ में च राए है। चर हो जाना। २. धुर चु र शब्द करना या होना । ३. मुहा०--प्रांख चुराना--नजर बचाना । सामने मुह न करना। " पक जाना । चुर जाना । चरना। जो चुराना=(१) वशीभूत करना । (२) काम को उपेक्षा : चुरचुराना-क्रि० स० १. किसी खरी चीज को चूर चूर करना। करना । मन लगाकर काम न करना । .. . २. चुर च र शब्द उत्पन्न करना । ३ किसी वस्तु के देने या काम के करने में कसर । जैसे,- चुरट---पंथा पुं० [हिं० च रट] दे० च रुट'। (क) यह गाय दूध च राती है । (ख) यह गवैया सुर च राता है। चरना-कि अ० [सं०चर (=जलना, पकना)] १. अांच पर मुहा०--जांगर च राना काम करने में कसर रखना। खौलते हए पानी के साथ किसी वस्तु का पकना । गीली वस्तु ४. किसी के भाव पादि अपना लेना । भाव चुराना .... का गम होना । सीझना । जैसे,--दाल चु राना । २. पापस चुरावना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'चुराना' । उ.-मोरि मुर्ख . में गुप्त मंत्रणा या वातचीत होना। मुसकाय के चारु चित मतिराम' चुरावन लागी।-मति० ... 4०, पृ०३८३। चुरना--संज्ञा पुं० [च नव नाना] सूत के से महीन सफेद कीड़े जो पेट में पड़ जते हैं और मल के साथ निकलते हैं। ये कीड़े। चुरि-संज्ञा श्री० [सं०] दे० 'चुरी' (को० ।। बच्चों को बहुत कष्ट देते हैं । च नच ना। चुरिला-संवा पुं० [हिं० डला] १.कांच का मोटा टुकड़ा जिससे क्रि० प्र०—लगना। - लड़के तख्ती या पट्टी को रगड़कर चमकाते हैं। २. लोहे की । चरनार...वि० रनेवाला । जिसकी सहायता से कोई वस्तु जल्दी एक चूडी जिसमें तागा बांधकर नचनी के बीचो बीच में , बांध देते हैं। (जुलाहे)। से च र जाय । जैसे,-च रना नमक। चु रिहारा-संधा पुं० [हिं० प डिहारा] दे० 'चुड़िहारा'। .... चुरना-क्रि० अ० [हिं०] चोरी जाना। च रिहारा-संशा पुं० [हिं० च डिहारा] दे० 'चुड़िहारा' . चुरमुर --संज्ञा पुं० [अनु॰] खरी या कुरकुरी वस्तु के टूटने का च रो@t--संज्ञा स्त्री० [हिं० चूड़ी]. दे० 'चूड़ी'। उ०--(क) शब्द । करारी चीजों के टूटने की आवाज । जैसे,--सूखी ‘किकिनी कटि कुनित कंकन कर चुरी झनकार । हृदय चौकी पत्तियों का च रमुर होना । उ०--चना चुरमुर बोले । बाबू चमकि बैठी सुभग मोतिन हार--सूर (शब्द॰) । (ख) खाने को मुंह खोले ।-हरिश्चद्र (शब्द०)। सा च द्र (शब्द०)।. . . घर घर हिंदुनि तुरुकिनी देति असीस सराहि । पविन राखि .:--- चुरमुर -वि० [हिं०] ६० 'चुरमुरा'। . चादर, चुरीत राखी जयसाहि । -विहारी (शब्द॰) । ना--क्रि० स० [अनु॰] चरमुर शब्द करके टूटना। चुरी-संशा श्री० [सं०] छोटा कुआ। ... . पट मत