पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४८७

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१५६६ चुल्लो '. चट--संक्षा पुं० [अ० शेरूट (-चेहट)] तंबाकू के पत्ते या चूर की चुलियाला--संज्ञा पुं० [? अथवा देग०] एक मात्रिक छंद का नाम बत्ती जिसका चूना लोग पीते हैं। इसका दोनों सिरा कटा जिसमें १३ और १६ के विधाम से २६ मात्राएं होती है। रहता है। सिगार का केवल एक सिरा कटा रहता है। इसके अंत में एक जगरण और एक लय होता है। " चूरू-संज्ञा पुं० [सं० चुलुक] चुल्लू । उ०--(क) हंसि जननी विशेष-दोहे के अंत में एक जगए और एक लघु रखने से यह .: चुरु भरवाए । तव कछु कछु मुख पखराए।—सूर शब्द०)। छंद सिद्ध होता है। कोई इसके दो और कोई चार पद . . . (ख) धरि तुष्टी झारी जल ल्याई । भरयो चुरू खरिका लं मानते हैं। जो दो पद मानते हैं। वे दोहे के अंत में एक ... आई.--सूर (शब्द॰) । जगण और एक लघु रखते हैं। जो चार पद मानने हैं, 'चुरैल-मंना स्त्री० [हिं० चुल] 'चुडैल' । वे दोह के अंत में एक यगण रखते हैं । जैसे,—(क) मेरी चुट-संचा पुं० [हिं० च रट] दे० 'चुरुट'। विनती मानि के हरि जू देखो नेक दया करि। नाहीं तुम्हारी .. म संहा पुं० [हिं० चु रुट] दे० 'चुन्ट' । जात है दुख हरिवे की टेक सदा कर (ख) हरि प्रभु चर्स - मंशा की [हिं० चुरस] दे० 'चुरस' । माधब वीर वर मन मोहन गोपति अविनासी । कर मुरलीधर .... चुल'-संज्ञा सी० : मे चल (-चंबल) १. किसी अंग के मले या घोर नरवरदायक काटत मव फांसी। जम विपदाहर राम सहलाए जाने की इच्छा । खुजलाहट । २. मस्ती । कामोग। प्रिय मन भावन संतन घड्यासी । अब मम ओर निहारि दुख . 'मुहा०--च ल उठना=(१) खुजलाहट होना । (२) प्रसंग की दारिद हटि कीने सुबरासी । - इच्छा होना । काम का वेग होना । चुल मिटाना-कामवासना चली:-संशा मोहिं० चल्लू] १. दान करने के लिये हथेली में ... तृप्त करना। जल लेकर दिया जाने वाला संकल्प । २. चुल्लू । चल्ली। वलसंध : [हिं० चर] दे० 'चुर' (माद)। चुलुप--संशा पुं० [सं० च लुम्प] बच्चों का लाड़ प्यार करना । शिशुओं चुलका संहा है [सं०] दक्षिण की एक नदी का नाम । का लालन किो०)। लघुलाना- क्रि० प्र० [हिं० दुल] खुजलाहट होना। चुल होना। चुलुपा--संज्ञा स्त्री० [सं० चु लुम्पा] वकरी [को०] । पुलचुलाहट-संज्ञा स्त्री० [हिं० च लच लाना] चुल या खुजली उठने चूलुपी-संज्ञा पुं० [सं० च लुम्मिन्] एक प्रकार का मत्स्य [को०] । का भाव । चुल । खुजलाहट। चुलुक-संज्ञा पुं० [सं०] १. उर्द के डूबने भर को जल । २. भारी कि० प्र०-उठना ।-मिटना 1-मिटाना ।—होना । दलदल । गहरा कीचड़। ३. गहरी की हुई हथेली जिसमें .. चुलंचुली · संघा गौर [हिं० चलच लाना] चुल । खुजलाहट । पानी इत्यादि पी सके। चुल्लू । ४. प्राचीन काल का .. कि० प्र०-उठना ।-मिटना --मिटाना। एक प्रकार का वरतन जो नापने के काम में प्राता था। ५. चुलबुल-मंदा मी० [२० त+बल अथवा चलोल] चुलबुलाहट । एक गोत्रप्रवर्तक ऋपि का नाम । ६. उड़द का धोवन (को०)। चंचलता । चपलता। चुलुका-संशा झी० [सं०] एक प्राचीन नदी का नाम जिसका वर्णन गुलबुला-वि० [सं० चल+चल] [वि० सी० चलबुली] १. जिसके महाभारत में पाया है। . अंग उमंग के कारण बहुत अधिक हिलते डोलते रहें। चंचल । चुलुकी-संज्ञा पुं॰ [सं० चु लुकिन् ] जलसूकर (को०) । ...... चपल । २. नटखट । चुलुपा संज्ञा स्त्री० [सं०] वकरी [को० ॥ बुलबुलाना-शिप [हिं०चनल] १. चलघुत करना । रह चलूक -पंक्षा पुं० [हिं० च लुक] दे॰ 'चुल्नु' । रहकर हिलना डोलना। २. चंचल होना ।पपलता फरना। ..जुलवलापन-संज्ञा पुं० [हिं० चुलबुल-पन (प्रत्य०)] चंचलता। चुल्ल'--वि० [सं०] कीचड़ भरी आँखवाला (को०] । चुल्ल-संणा पुं० कीचड़ भरी ग्रांख (को०] । चुल्ल'---संशा घी [ हि० च ल ] दे० 'चुल' । उपाहट-संज्ञा छो० [हिं० चलबुल+माहट (प्रत्य०)] चंचलता। ... चपलता । शोखी। चुल्लक-संच पुं० [सं०] चुल्लू [को०] । .. ललिया-वि० [हिं० चलतूला---इया (प्रत्य॰)] दे० 'चुलबुल'। चालपन-संज्ञा पुं० [हिं० चल्ला-पन (प्रत्य॰)] चंचलता। नट- चुन चुलबुली-संज्ञा स्त्री० हिं० चलखल+ई (प्रत्य॰)] चंचलता। खटपना । पाजीपन । शरारतीपन । 'चपलता शोखी। चल्लकी--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. शिशुमार या सूस नाम का एक पुलहाया--वि० [हिं० चल+हाया (प्रत्य॰)] [वि.लीच लहाई जलजंतु । २. एक प्रकार का जलपाम (को०)। .: : कामोन युक्त । काम की प्रबलतावाला । चुल्ला--संज्ञा पुं॰ [सं० चढ़ा (-वलय)] कांच का छोटा छल्ला जो लाना-शि०स०अहि.] २ 'वाना'। जुलाहों के करचे में लगा रहता है । १- सेवा पुं० [देश॰] वह पुलाव जिसमें मांस न पड़ा हो। चल्ला-वि० [अनु॰] चिलबिल्ला । नटखट । पाजी। संशा पुं० [हिं० च वाना ] चलाने या चुवाने का भाव । चल्लि-संज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'चुल्लो' [को०] । चल्ली-संशो०] १. अग्न्याधान । चूल्हा । २. चिता । ३. चपलता। शोती। - या शिया।