पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४८८

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१५६७ तीन विभागोंवाला विशाल कक्ष जिसका एक विभाग उनारमुख, चुवावनि@---संघा मी० [हिं० च वाना] चुवाने का कार्य या स्थिति : . दूसरा पूर्व मुख और तीसरा पश्चिममुखी हो (को॰) । उ-चुसनि, चुवावनि, जाटनि, चमनि । नहि कहि परति । चुल्ली --वि० [हिं० चुल्ल+ई (प्रत्य॰)] चिलबिला । नटखट । प्रेम की पूरनि ।-नंद ०, पृ० २६६ । चुल्ली-संवा स्रो० [हिं०] दे० 'चुल्लू। चुशमा@---संषा पुं० [हिं० चश्मा] दे॰ 'चश्मा' । सोता 1 उ० . दुइ चुशमे पानी के करे । पानी साथ समपूर्ण गरे । चुल्लू--संज्ञा पुं० [सं० च लुफ] गहरी की हुई हथेली जिसमें भरकर --प्रारण०, पृ०२२ । पानी प्रादि पी सके । एक हाथ की हथेली का गड्ढा। (इस न चुसनि-संक्षा खा- हिच सना] चूसने का कार्य या स्थिति । शब्द का प्रयोग पानी प्रादि द्रव पदार्थों के ही संबंध में होता तर ७०--चुसनि चुवावनि चाटनि चमनि । नहिं कहि परति है । जैसे, - चुल्लू भर पानी, चुल्लू से दूध पीना, इत्यादि।) प्रेम को घूरनि !-नंद0 ग्रे०, पृ. २६६ । यौ---चुल्लु भर-उतना ( जल, दूध आदि ) जितना च ल्लू में । - चुस-वि० [सं० चोप्य] दे० 'नीच' । उ०-चारिकार विचित्र पा सके। सुव्यंजन । भक्ष्य भोज्य चुम, लिह मनरंजन 1-नद० ग्रं, मुहा०-चुल्लू चुल्लू साधना= थोड़ा थोड़ा करके अभ्यास करना। पृ०३०२ । चुल्लू भर पानी में डूब मरो-मुह न दिखामो। लज्जा के चुसकी'-संशा श्री० [सं० चसफ] मद्य पीने का पात्र । पानपात्र। मारे मर जाओ । ( जब कोई अत्यंत अनुचित कार्य करता है प्याला |--(fse)। तब उसके प्रति धिक्कार के रूप में यह मुहा० बोलते हैं)। चुसको-संशा स्त्री० [हिं० च सना] १. प्रोठ से किसी पीने की चुल्लू भर लहू पीना शत्रु का वध करने के बाद चुल्लू भर चीज को सुड़कने की क्रिया । ओठ से लगाकर थोड़ा थोड़ा । खून पीना (प्राचीन काल में इसका चलन था। महाभारत के करके पीने की क्रिया । सुड़क।. २. उतना जितना एक बार .. अनुसार भीम ने दुःशासन के साथ यही किया था)। चुल्लू में सुड़का जाय । घुट । दम । जैसे,-दो चमकियां और लेने दो। उल्लू होना बहुत थोड़ी सी भांग या शराब में बेसुध होना । क्रि० प्र०-लगाना ।-लेना । चल्ल में समुद्र न समाना= छोटे पात्र में बहुत वस्तु न चुसना--मि०प्र० [हिं० च सना] १. सा जाना । अोठ से । पाना । कुपात्र या क्षुद्र मनुष्य से कोई बड़ा या पच्छा काम खींचकर पिया जाना । चचोड़ा जाना । २. निचुप जाना। न हो सकना । गर जाना । निकल जाना । ३. मारहीन होना । शक्तिहीन . विशेष- यद्यपि कुछ लोग दोनों हथेलियों को मिलाकर बनाई होना। ४. धनशून्य होना । देने देते पास में कुछ रह न जाना। हुई अंजली को भी चुल्लू कहते हैं, पर यह ठीक नहीं है। जैसे,—हम तो चुस गए, अब हमारे पास रहा क्या? . चुल्हौना- संज्ञा पुं० [हिं० चूल्हा+प्रौना (प्रत्य०) ] दे० 'चूल्हा'। संयो० कि०-- जाना । उ-समधी के घर समधी प्रायो, आयो बहू को भाई । गोड़ चुसना-संघा पुं० [हिं० च सनी] बड़ी चुसनी। चुल्होने दे रहे, चरखा दियो उड़ाई ।-कबीर (शब्द०)। चुसनी-संशा खी० [हिं० च सना] १. बच्चों का एक खिलौना । चुवना ---क्रि० अ० [हिं० चुप्रना] दे० 'चूना' । जिसे वे मुह में डालकर चूसते हैं । २. दूध पिलाने की शीशी। चुवना-क्रि० स० [हिं० च गना] दे॰ 'चुगना' । चुसवाना-फ्रि० स० [हिं० च सना काप्रे० रूप] चुसने का काम चुवना-संशा पुं० [हिं०] दे० 'चुअना। ____ कराना । चूसने में प्रवृत्त करना । चूसने देना। चुवा - संज्ञा पुं० [देश॰] हड्डी की नली के अंदर का मांस । मज्जा। चुसाई-संसात्री० [हिं० चूसना] चूसने की क्रिया या भाव। .. भेजा। चसाना-क्रि० स० [हिं० च सना फा प्रे० रूप] चसने का काम । चुवा--संज्ञा पुं० [हिं० चौना (चार पैरोंवाला) ] पशु । चौपाया। कराना 1 चूसने में प्रवृत्त करना । चूमने देना । ... उ० - चारु चुवा चहुँ ओर चलें लपट' झपट' सो तमीचर चुसौप्रल-संशा सी० [हिं०/चस+ौवल (प्रत्य०)]दे० 'चुतोवल'। .. तौकी -तुलसी (शब्द०)। चुसौवल-संशा श्री० [हिं० च सना] १. अधिकता से चूसने की . . . किया। २. बहुत से आदमियों द्वारा चूसने की क्रिया। चुवा'--संज्ञा पुं० [हिं० चोवा] दे 'चोवा' । उ०-चंदन खोरि र क्रि० प्र०-फरना ।--मचना ।--होना।

चवा ही की वेदी नवेली तिया सब संग संघाती। -गंग०, चमकी-into की हैन, ०.ला में

पृ० ३७। एक चुस्की लेकर वाहा ।-- रंगभूमि, भा॰ २, पृ०४६२। . 'चुवाना-क्रि० स० [हिं० चना का प्रे० ८५] टपकाना। गिराना। चुस्त--वि० [फा०] १. कसा हुमा। जो ढीला न हो। संकुचित । बूंद बूद करके गिराना । थोड़ा थोड़ा गिराना । उ०—(क)। जैसे,---यह अंगा बहुत चुस्त है। २. जिसमें पालस्य न हो। रीभत गाय बच्छ हित सुधि करि प्रेम उमगि थन दूध तत्पर । फुरतीला । चलता। चुवावत । जसुमति वोलि उठी हरपित्त ह्रकान्ही धेनु चराये । यो०--च स्त चालाक तेज और समझदार । च स्तदम = दृढ़ आवत ।--सूर (शब्द०)। (ख) कोई मुख सीतल नीर व्यक्तित्व जिसका हो । जिसके निश्चय में ढीलढाल न हो। दह । . धूवावें । कोइ अंचल सों पवन डोलावै। जायसी (शब्द०)। . . निश्चयवाला । उ०- इस राह पहुंचे चुस्तदम करि नाव