पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४९०

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१५६६ चूड़ा' मुहा०-चूतफन फरना=चुप रहना । एकदम मौन रहना । करि दुरजोधन ले लीन्ह । राजपाट अरु वित्त सब बनबास दै. चन होना या च'तफन होना=सन्नाटा होना । शांति दीन्ह । लल्लू (शब्द०)।। होना । कोई उन या विरोध न करना । उ०---महरी-और चूक-संशा पुं० [सं० चक] १. नीबू, इमली, प्राम, अनार या प्रादमी इधर उधर से शड़ाप शड़ाप कोड़े जमाते हैं। पायले प्रादि किसी खट्टे फल के रस को गाढ़ा करके बनाया कोई तक नहीं करता ।-फसाना०, भा० ३, पृ०४। हुमा एक पदार्थ जो अत्यंत खट्टा होता है। वैद्यक में इसे २-कि० वि० [फा०] १. किस कारण से। क्यों। उ०—दादू दीपन और पाचन कहा है। २. एक प्रकार का खट्टा साग। . दृग दीदार हिये के चू वेचू वेज्वावी। घट०, पृ० २११ । २. जो । यदि । अगर (को०) । ३. सदृश । समान (को०)। चूकर-वि० बहुत अधिक खट्टा । इतना खट्टा जो खाया न जा सके। यो०-चू चांदे० 'चूचरा'। चूकना-क्रि० प्र० [सं० च्युत्फ, प्रा० चु विक] १. भूल करना । चूकि-कि० वि० [फा०] इस कारण से कि । क्योंकि । इस गलती करना । २. लक्ष्यभ्रष्ट होना। २. सुअवसर खो . लिये कि। देना। उ०---समय चूकि पुनि का पछिताने ।-तुलसी चल-संधा पुं० [सं० चच ] दे० 'चोंच। 10-तान चूच सो (शब्द०)। ४. समाप्त होना । च कना। पकरि के, चित चिरिया हो जाय ।--ब्रज० ग्रं०, पृ०५२। संयो॰ क्रि०-जाना। चरा-संघा पुं० [ फा० चू(=क्यों)+(चराक्या ) ] १. प्रति- चूका-संज्ञा पुं० [सं० च क ] एक प्रकार का खट्टा साग जिसे चूक वाद । विरोध । २. आपत्ति । उज्र । ३. वहाना । मिस । भी कहते हैं। वैद्यक में इसे हलका, रुचिकारक और दीपक चूची-संध स्त्री० [सं० चुचि] दे॰ 'चूची'। माना है। चु -संभा पुं० [अनु०] १. चिड़ियों के बोलने का शब्द । खना -क्रि० स० [सं० च पण, हि० च हफना]च सना। उ०-देखें , परहित लागि प्रेम रस च खै ऊखन ।- पलटू०, भा०१, पृ० ११ ॥ फि० प्र०-चू चूहोना=चिड़ियों का चहचहाना । चूधना--क्रि स० [हिं० चौधना ] चोंधना। च गना । माहार २. किसी प्रकार का चू' शब्द । ३. कोलाहल । निरर्थक करना । उ०-...काह कबीर परगट भई खेड । ले ले को चपें शब्द । वेमतलब की वात ।। नित भेड।---कवीर ग्रं०, पृ. २७४। यो०-चूका मुरब्बा=अनेक वेमेल चीजों का मेल । चूच@-संज्ञा स्त्री० [सं० चञ्च ] दे॰ 'चोंच' ७०-जैसे पंखी चूच. महा०-चूचू करना=बेमतलब की बात करना । चू चू" करि च गत अहार पुनि तैसे ज्ञानी उर में उपासना धरत हैं। लगाना-वे मतलव का शोर करना । सुदर०, भा०२,पृ० ६४०।। ४. एक प्रकार का खिलौना जिसे दबाने या खींचने से चूचू चूची-मंगानी [सं० च चि या च च क १ स्तन का अग्न भाग । शब्द होता है। कुच के ऊपर की घुडी । २. स्त्री की छाती । स्तन ! कुच । चुटना-मि० स० [हिं० च टकना ] तोड़ने के लिये चुटकी से यो०-चू चीपीक्षा=बहुत छोटा (बच्चा) । नासमझ । नादान। . पकड़ना। मुहा०-च.ची पीना-चूची को मुह में लगाकर उसका दूध दरी-संहा सी. [हिं० च नरी] दे० 'चुनरी'। ०-दै उर जेव पीना। स्तनपान करना । चची म. ना-(पुरुप का) संभोग " जवाहिर की चुनि चोप सों चदरी पहिरावत । (शब्द०)। के समय पानंदवृद्धि के लिये स्त्री के स्तन को हाथों से धवाना, चूंदी-संदा सी० [हिं० च दी] दे० 'च. दी। मलना या मर्दन करना। चुप-संशा स्त्री॰ [हिं० चोप ] उत्साह । चोप । उमंग । ७०- चुचुक- संज्ञा पुं० [सं०] कुच का अग्र भाग । चूची की डेपनी । चावंडदास का भैरू दास भैरू के रूप । चावरती चद्र प्रहास उ०-- चूच क सारी परसि रहे तेहि निहुरि लखति सी। प्ररी ग्रास की चूप।-रा० रू, पृ० १५१ । सुकवि श्याम को निरखि निरखि विहसति सकुचति सी।-.. चूअरी - संघाली [देश॰] जरदाल । सूबानी। ध्यास (शब्द०)। चूऊ-संशा ० [देश॰] स्त्रियों को पहनने का एक प्रकार का महीन चूजा'- संज्ञा पुं० [फा० चूजह] मुरगी का बच्चा । ऊनी पड़ा जो पहाडी देशों में बनता है। चूजा-वि० जिसकी अवस्था अधिक न हो। कमसिन । (वाजारू)।। चुकसंपली. [हिं० नफना] १. भूल । गलती। उ०-इह जानि चूड़, चूड़क-संज्ञा पुं० [सं० च ट, चू उफ ] १. चोटी। शिखा । २. . नगा नियो नृपति रहै बस सुविहान को।-पृ० रा०, मस्तक पर की कलगी, जैसी मुरगे या मोर के सिर पर होती १०।१०। है। ३. शंखच ड़ नामक दैत्य । ४. खंभे, मकान, या पहाड़ कि०प्र०—करना ।---जाना--पढ़ना ।--होना । प्रादि का ऊपरी भाग । कंकण । ५. छोटा कूयाँ। २. दरार । दर्ज। शिगाफ।-(ल श०)। ३. पन । कपट । चूड़ांत'-वि० सं०च डान्त] चरम सीमा । पराकाष्ठा। . फरेब । दगा। घाया। उ०-(क) अहो हरि बलि सोंच का चूड़ांत--मि. वि. अत्यंत । बहुत अधिक। - परी।-परमानंद दास (गन्द०)। (प) धरम राग सौ चूत चूड़ा-संस स्त्री० [सं० चूडा] १. चोटी। शिखा । चुरकी। माग ७७.3