पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

... चमत्राम : .. १५७२ पूर्ण मंचामः संत्रा मी० [हिं० चूमा से बिरुद्ध स्वर द्विक्त ] चूमना। चनहार- पुं० [सं० च रहार] एक प्रकार की जंगली वेल सहलाना । प्यार दिखाना । उ०-छू मत तू प्रणय गान जिसके जिसके पत्ते बहूत लवे, चिकने और कुछ मोटे होते हैं। उलझे वितान। मादक. मोहक, मलीन चमचाम को लुभानकर विशेप-इसमें मीठी गंधवाले छोटे छोटे फूल भी लगते हैं। इसकी ..न मुझे चाहीत, एक गीत, एक गीत ।-हिम०, पृ०६०। जड़, पत्तियों और छाल प्रादि का व्यवहार भोपधों में होता आमना- क्रि० स० [सं० चुम्बन] प्रेम के आवेश में अथवा यों ही है। वैद्यक में इसे कसला, गरम विदीपनाशक, रुधिरविकार होठों से (किसी दूसरे के) गाल प्रादि अंगों को अथवा को दूर करनेवाला और कृमिनाशक माना है । कहते हैं, विषम किसी और पदार्थ को स्पर्श करना. चूमना या दबाना । चुमा ज्वर की यह बहुत अच्छी दवा है। सेना । वोसा लेना। चूरना -क्रि० स० [सं० च गन] १. चूर करना । टुकड़े टुकड़ें

मुहा०-- चूमकर छोड़ देना=किसी भारी कार्य को प्रारंभ करना । २. तोड़ना । तोड़ डालना । उ०—(क) ब्रह्मरंध्र

करके या किसी वस्तु को छूकर बिना उसका पूरा उपयोग किए फोरि जीव यों मिल्यो घुलोक जाइ । गेह बूरि ज्यों चकोर छोड़ देना । चूमना चाटना प्यार करना । च मना । चद्रमैं मिल कड़ाय । केशव (शब्द०)। (ख) वांधि गा

विशेष-किसी किसी देश में प्रादर सम्मान के लिये भी बड़ों

सुवा करत सुन्नु केली । चूर पांख मलेसि धरि डेली।- .. के हाथ नादि अंगों को चूमते हैं। जायसी (शब्द०)। चूमना --का पुं० हिंदुयों में विवाह की एक रस्म जिसमें वर की चूरमा--संज्ञा पुं० [सं० चूएं] रोटी या पूरी को चूर चूर करके घी ... जुली में चावल और जी भरकर पांच सोहागिनी स्त्रियां में भूना हुआ और चीनी मिलाया हुआ एक खाद्य पदार्थ । ..। मंगल गीत गाती हुई वर के माथे, कंधे और घुटने आदि बहुधा यह बाजरे का बनता है। .... पांच अगों को हरी दूध से छूती और तब उस दूब को चमकर चूरमूर'-संज्ञा पुं० देश०] वे खूटियाँ जो जो या गेहूँ के कट जाने पर खेत में रह जाती हैं। चूमनि-मंञ्चा स्त्री० [हिं० चूमना] चूनने का कार्य । चुवन । उ०- चूरमूर'-नष्ट । टूटा हुप्रा । तोड़ा हुआ। १ . चुपनि, चुवावनि, चाटनि चूमनि । नहीं कहि परति प्रेम की क्रि० प्र० करना ।--होना। उ०-औरन की सुधि सहज .. पूरनि । नंद००, पृ० २६६ । भुलावत हिय हुलसावत । सब जगचिता चूरमूर करि दूर वहावत । -प्रेमघन , भा० १, पृ०३। चूमा- संझ पुं० [सं० चुम्बन, हि० चूमना चूमने की क्रिया । चुबन ! चुरा'-संभा पुं० [20 चूर्ण] किसी वस्तु का पीसा हुप्रा भाग। चम्मा । मिट्ठी। कि०-प्र--देना।- लेना। चूर्ण । बुरादा । दि. ३० 'बूर । -: यो०- चूमाचाटी। चूरा--संचा पुं० [हिं० चूदा] दे० 'चिउड़ा'। चरामरिण - संझा ली० [मं० च डामणि ] दे० 'चूड़ामणि' । चूमाचाटीनटा पुं० [हिं० चूमना+चाटना] चमने और चाटने चूरामनि-संज्ञा हिं० च डामणि] १. श्रेष्ठ। शिरोमणि । उ०- का काम । म और चाटकर प्रेम प्रकट करने की क्रिया। - विधु बदन चकोर त्रारु चतुर बूरामनि चदधित चरन। फि०प्र०--करना- होना। चूर-संहा पुं० [सं० च । १. किसी पदार्थ के बहुत छोटे छोटे टुकड़े -पोद्दार अभि० ०, पृ० ४८८1 २. दे० 'चूडामणि' । । उस पदार्थ को खूब तोड़ने, कूटने प्रादि से बनते हैं। चूरी-झा को० [हिं० चूड़ी दे० चूड़ों। मुहा०-चूर करना या चूरदूर करना=किसी पदार्य को तोड़ यौ०-तरीगर चूड़ी बनानेवाला । मनिहार । उ0-टूक, टूक . . फोड़ कर उसके बहुत महीन कण जो इस पदार्थ को चरीगर लीन्हा । घरिया करम अत्रि पुनि दीन्हा ।- घट० .... रेती से रेतने अथवा प्रारी से चीरने प्रादि से निकलते हैं। पृ. २२॥ दुरादा । भूर। चुरी २-संशा औ० [सं० चू रग] १. चूर । चूरा। २.चूरमा । ..या०-च रचार=बहुत छोटा या बारीक टुकड़ा। चूरू-मंग पुं० [हिं० च र] एक प्रकार को बरस जो गांजे के मादा कराव०१. (किसी कार्य आदि में) तन्मय । निमन्न । तल्लीन। पेड़ों से निकलती पौर कुछनिष्ट समझी जाती है। - से-काम में चूर, शेखी में चर । २. जिसपर नशे का बहुन चूर्ण'-मंज्ञा०मि.] १ सबा पीसा हा प्रयवा बहुत ही छोटे अधिक प्रभाव हो। नशे में बहत मदमस्त । जैसे,-भांग में छोटे टुकड़े में किया हुपा पदार्थ । सफूफा बुकनी। २. कई ..... चर, पाराव में चूर, गांजे में चूर । पाचक अौषधों का बारीक पीसा हुमा सफूफ। ३.प्रवीर । .चूर- संथा श्री० [हि. चून] ३० 'चूल"। ४. धल । गर्द। ५. चना । ६.कोड़ी। कपर्दक । ७. पाटा। पूरण-संवा पुं० [सं० च 1 दे० 'चूर्ण' । पिसान (को०) ८. गंधद्रब्ध का चूर्ण (को०)। नार-वि० १.जो किसी प्रकार तोड़ा फोड़ा या नष्ट भ्रष्ट किया पूरन संच पुं० [सं० चूर्ण] १. दे० 'चूर्ण' । २. बहुत महीन पीसी गया हो । जैसे,—-गर्व चूर्ण करना। २. चूर्ण किया हुमा। . हुई पाचक सौषधों का चूर्ण। चांदी, सोना आदि का किया हुआ चूर (को० ॥ चरण-दि० दे० 'चूर्ण'!