पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४९६

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चर १५७५ चेउरी -संज्ञा पुं० [हिं० जेवड़ी (= रस्सी)] कुम्हार का वह डोरा जिसके द्वारा चाक पर तैयार किया हमा वरतन शेप मिट्टी से .. काटकर अलग किया और उतारा जाता है।.... चेक-संक्षा पुं० [अं०] १. वह रुवका या प्राज्ञापत्र जो किसी बंक. आदि के नाम लिखा गया हो और जिसके देने पर वहाँ से उस- . . पर लिखी हुई रकम मिल जाय । एक प्रकार की हु'डी।.. विशेष- साधारणत: चेकों का एक निश्चित स्वरूप हुपा करता है। किसी बैंक के नाम चेक लिखने का अधिकार उसी को होता है जिसका रुपया बैंक में जमा हो। . महा.-.चोक काटना चेक लिखकर (चेक बुक में से अलग कर। या उसमें से काटकर) देना। यो०-चोक बुक-बहुत से सादे चेकों को सीकर वनाई हुई। किताब। चेचर --वि० [चें में से अनु०] चें चें करनेवाला । बक बक करने- वाला । वकवादी। वकी। चेचियाना-क्रि० अ० [अनुच्छ० या हि० चिचियाना] १. 'चिचियाना' उ०-चेंचियाकर महाराजिन ने सचेत किया।- भस्मावृत० पृ०६३ । चेचुनाt--- संज्ञा पुं० [ों में से अनु०] चातक का बच्चा । चेचुला- संज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार का पक्वान्न । विशेष-इसके बनाने में पहले गूधे हुए पाटे या मैदे को पूरी की तरह पतला वेलकर गोंठते और चौखूटा बनाकर कुछ दवा देते हैं और तब घी यादि में तल लेते हैं। चे"चे-संज्ञा स्त्री० [अनु०] १. चिड़ियों के बोलने का शब्द । ची चीं। २.व्यर्थ की वकवाद । बकबका। क्रि० प्र०-करना।--मचना ।-होना। चेंबर-संज्ञा पुं० [अं॰] वह बड़ा कामरा जिसमें किसी विषय की ____ मंत्रणा हो । सभागृह । चेंबर आफ कामर्स-संशा पं० [अ० सेंबर पाँव कामर्स] किसी नगर के प्रधान व्यापारियों की वह सभा जिसका संटघन न व्यापारियों के व्यापार संबंधी स्वत्वों की रक्षा के लिये हुपा हो। चेटियारी-संशा सी० [देश॰] अवलक रंग का एक प्रकार का बहुत बड़ा जलपक्षी। विशेष- इसके पैर प्रायः हाथ भर लंवे और चोंच एक बालिपत की होती है। इसके सिरपर बाल या पर नहीं होते। इसका मांस स्वादिष्ट होता है और इसी लिये इसका शिकार किया जाता है। पेटो - संज्ञा स्त्री० [हिं० चींटी] दे० 'चिउँटी'। चेटुआई-संशा पुं० [हिं० चिड़िया] चिड़िया का बच्चा । स०- - अंड फोरि कर यो चेटुमा तुप पर यो नीर निहारि । गहि चंगुल चातिक चतुर डारयो बाहिर बारि ।-तुलसी (शब्द०)। ३०) चेंडाई-संज्ञा पुं० [हिं० नंगड़ा] दे० 'चेंगड़ा' । चेयरी --संस पी० [देश॰] मस्तक का सबसे ऊपरी भाग । उ०-- अक्कल चेयरी में चढ़ गई सो अत्र उने कछ सूझत नइयाँ!-- झाँसी०, पृ० १६१ । चें धी--संज्ञा स्त्री० [हिं० चेंगी] दे० 'बोंगी'। चे--संज्ञा स्त्री० अनु०] १. वह धीमा शब्द या कार्य जो किसी बड़े के सामने किसी प्रकार का विरोध प्रकट करने के लिये किया जाय। ची चपड़ । २. व्यर्थ की वकवाद । बकबक । चेप:-संक्षा पुं० [देश॰] ऊध का छिलका । चेअर-संक्षा स्त्री० [अ०] १. वैठने की कुरसी। यो०-- ईजी चेअर-पाराम कुरंसी। . . २. किसी विश्वविद्यालय में किसी विषय के पढ़ाने के लिये किसी महान व्यक्ति के नाम पर स्थापित की हुई व्यवस्था । जैसे,- इतिहास की बड़ौदा चयर, कानून की रंगोरचेयर। ३. अध्यक्ष के पद पर बैठा हुअा व्यक्ति । जैसे- चेंगर का प्रस्ताव । चेयरमैन--संश पुं० [पं०] किसी सभा या बैठक का प्रधान । ..। सभापति । भव्यक्ष । . २.बहुत सी सीधी रेखामों पर बाड़ी खींची हुई रेखाएं जिनसे बहुत से चौकोर खाने बन जाय । चारखाना । ३. एक प्रकार का चारखाने का कपड़ा। वित'-संज्ञा पुं० [सं०] एक ऋपि का नाम । . . . चोकित-वि० बहुत बड़ा ज्ञानी। चेकितान'-संधाप० [सं०] १. महादेव । शिव । २. केकय देश के राजा धृष्टकेतु के पुत्र का नाम जिसने महाभारत के पांडवों की सहायता की थी। चचेकितान-वि० वहत बड़ा ज्ञानी। चोचक-संशा सी० [फा०] शीतला या माता नामक रोग । जा .. चेचकरू-संथा पु० [फा०] वह जिसके मुह पर शीतला के दाग हों। . चेजा-संज्ञा पुं० [हिं० छेव ? ] सूराख । छेद । छिद्र। उ०- .. पोखड़ियां रतनालिया चेजा कर पताल । मैं तोहि बूझों.. माछली तू क्यों बंधी जाल ।-कबीर (शब्द०)। .. सोलार जारा--संज्ञा पुं॰ [देश॰] दीवाल उठानेवाला । दीवाल की चुनाई करनेवाला । स्थपति । थबई 1 राजगीर । उ०-कवीर मंदिर ढहि पड्या सेंट भई संचार । कोई चेजारा चिरिण गया, मिल्या. ' न दूजी बार।--कवीर ग्रं॰, पृ० २२। । चोट--संज्ञा पुं० [सं०] [ो चेटी था चेटिका] - १. दास । सेवक ।। नौकर । २. पति । खाविंद। ३.नायक और नायिका को मिलानेवाला प्रवीण पुरुष। भड़वा । ४. एक प्रकार की. मछली । भाड़। . . चेटक'--संघा पुं० [सं०] १: सेरक दास । नोकर । २. चटक मटक ३.दूत । ४. जल्दी। फुरती। ५. चाट । चसका । मजा। ... क्रि० प्र०---लगना । । ६. उपपति । जार (को०)। चेटकर--संश्चा पुं० [हिं०] १. जादू या इंद्रजाल विद्या । नजरबंद का तमाशा । उ०-कोऊ न काहू की कानि कर, कछु'- चेटक सो जु करयो जंदुरैया --ब्रज०, पृ० १५०।- २. भाड़ों का तमाशा। कौतुक। 30--(क) कत' नाद । शब्द हो भला । कतहू' नाटक चेटक कला । जायसी