पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५०

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११२६ . खदंग खतमानाल-क्रि० स० [अ० खत्म, खतम] ममाप्त या पूर्ण करना। खतियाना-क्रि० स० [हिं० खाता] प्रति दिन के अाय व्यय और उ०-तुमहिं कोरान खतम खतमाना।-धरनी०, पृ० १८। क्रय विक्रय आदि को खाते में अलग अलग मद्द में लिखना। सतमाल-संवा पुं० [मं०] १. वादन । मेघ । २ धून । धूआँ चिो०] खतियोनी-संज्ञा पी० [हिं० नातियाना] १. बह वही या किताब खतमी-संवा सी० [अ०] गुलखरू की जाति का एक प्रकार का पौधा। जिसमें खतियाया जाय । खाता। २. खतियाने का काम । ३, विशेष-यह कश्मीर और पश्चिम हिमालय में होता है । इसमें पटवारी का वह कागज जिस में प्रत्येक असामी का रकबा और नीले, लाल, बैंगनी यादि कई रंगों के फूल होते हैं । पर लगान प्रादि दर्ज हो। ... ' सफेद फूल की बतमी सबसे अच्छी समझी जाती है। इसकी खतिलक-संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य [को०] । पत्तियां पीसकर लोग फोड़े पर लगाते हैं और इसके बीज खतीव-वि० [अ० सतीब] १. खुनबा पड़नेवाला । २. धर्मोपदेश । और जड़ का व्यवहार औषधियों में होता है। इसके बीज . ३ कोना ...को तन्म-खतमी और जड़ को रेणा बतमी कहते हैं। . खतीवा-संवा मी० [अ० खतीवह ] बोलनेवाली स्त्री । वक्तृत्व खतर-संज्ञा पुं० [अ० खतर] दे॰ खतरा' । _शक्ति से युवत स्त्री। वक्त्री [को०] । खतरनाक-वि० [फा. खतरनाक] १. खतरे से युक्त । खतरावाला। खतेयाजादी-संश पुं० [फा० सत+ए+प्राजादी मुक्तिपत्र । .. २. भयजनक (याशंकामय । ' बंधमुक्त करने का आदेशपत्र को०] | खतरम्मा-संधा पुं० [हिं० खत्री] १. त्रियों का समाज । २. वह खतेगुलामी- संज्ञा पुं० [प० खात-ए-गुलामी दासतापत्र [को०। वह स्थान जहां अधिकतर खत्री रहते हों। । खतेनस्तालीक - संचा पुं० [अ० सात-ए-नस्तालीक] सुदर अमरोंवाली खतरा--संज्ञा पुं० [अ० खतरह १. टर। भय । खौफ। २. प्राशंका। लिखावट जिसमें उर्दू की लीथो पद्धति से पुस्तकें छपती खतमनी-संद्धा नौ० [हिं० खत्री] खत्री जाति की स्वी। (को०)। खनरेटा-संज्ञा पुं०1180 खत्री+एटा (प्रत्य॰)] खत्री 1 30-केते खतशिकस्त संथा पुं० [फा०] वह लिखावट या लेख जो वक्षस टेवा . मुगलाने सेख पडाने सैयद वाने बांध चढ़े । कायय खतरेटे मेंढ़ा हो। वसीट लिखावट [को०]। लोह लपेटे देव चपेठे चाइ बढ़।-सूबन (शब्द०)। खतौनी-संज्ञा स्त्री॰ [हि खाता+मीनी (प्रत्य॰)] दे० 'खतियोनी', खता'- संश स्त्री० [अ० खता] [विक खताधार] | १. कसूर ! खत्ता--संधा पुं० [सं० खात या गर्तक] [ी०, खत्ती] १ गडढा । अपराध । २. धोखा! फरेब । २.अन्न रखने का स्थान । ३.नील या शोरा बनाने का गड्ढा । महा.-खता खाना= धोखे में पड़ना । धोखे में पड़कर हानि खत्तिन. खत्तिय -संशा पुं० [सं० क्षत्रिय, प्रा. खतिया है. 'क्षत्रिय' । उ०-(क) परसुराम अरु पुरिस जेन खत्तिन खम .उठाना । करिबट-कीति०, पृ० १ (ख) खत्तिय वंस गहै कर ' . '३. भूल । क । गलती। कत्तिय ।—प० रासो, पृ० १०॥ . महा०-खता खाना=गलतो करना । चूकना। खत्म-वि० [अ० खत्म दे० 'खतम' । खar@-संज्ञा पुं० [सं० सत] मत । घाव । उ०--सोइ बाधु को। खत्रवट, खत्रबाट@-संशा पुं० [सं० क्षत्री+क्ट (प्रत्य०) ...' ह्यो वो गई। कैमो चरणोदक दिय लाई। कह्यो साधु १ क्षत्रीपन । उ०-बत्रवट सरम सदा यां खोल । यो हिंदवाण . सब को मैं लायो । खता चरण लखि एक बचायो।-रघुराच . (शब्द०)। बचावी अोल । -रा० रू०,५०७७ । २ वीरता । (हिं०)। खता-संधा फा०चीन या चीन का एक प्रदेश [को०]। खत्रिय --संज्ञा पुं॰ [सं० क्षत्रिय, प्रा० खनिय क्षत्रिय । (हिं०)। खताई-संवा मौ० [फा० खताई] दे० 'मानखताई। उ०-सोया-' खत्रा-संक्षा पुं० [सं०, क्षत्रिय, प्रा० खतिय] [श्री० खत हिंदुओं में क्षत्रियों के अंतर्गत एक जाति जो अधिकतर पंजाब बीन की खताइयों-ज्ञानदान, पृ० १६३ । में बसती है। इस जाति के लोग प्रायः व्यापार करते हैं । खताकार-वि० [फा० खताकार] १. दोपी। अपराधी। मुजरिम।' .. २. क्षत्रिय (डि०) । उ०---देख कह सको देस, खत्री बीज गयो पारी । गुनहगार । पाउकी [को०] । सेस।-रघु० रू०, पृ०७६ । खतावार-अ० खता+फा० वार] दोषी । अपराधी। - खति-संज्ञा मौसिं०क्षति क्षति । हानि । नूकसान । ३०-कहै खत्री परदेदारसंघा स्त्री० [हिं० खत्री] लकड़ी का बना प्रकार का ठप्पा, जिससे कपड़ों पर वेल बूटे छापे जाते हैं। यह ..... पंदमाकर त्यौं वदन विशाल हात लाल होत हेरी छल छिट्टन की खति की। गंगा जी तिहारे गुणगान करे अजनब यान ठप्पा तीन इंच से छह इंच तक लंबा होता है। '.. होत बरपा सुधार्नेट की अति की।-पनाकर (शब्द०)। खत्रीवाट@-संज्ञा स्त्री- [हिं• खत्री+वाट] दे० 'खवट'। . खतिया -संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'खाती। खदंग--संज्ञा पुं०[फा० खदंग] १. एक वृक्षविशेष जिसकी लकड़ी . खतिया--संज्ञा श्री० [हिं० खना] छोटा गडढा । के बाण बनते हैं। २. छोटा वाण । ना वक (को०)। ३. केकड़ा (को०) . . ... ...