पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५०२

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चैत्य' १५८१ चला त्य-संग पुं० [सं०] १. मकान । घर। २. मंदिर । देवाल । ३. वह स्थान जहाँ यज्ञ हो । यज्ञशाला । ४. वृक्षों का वह समूह जो गांव की सीमा पर रहता है । ५ बुद्ध बुद्धि की मूर्ति । ७. अश्वत्य का पेड़ । ८. वेल का पेड़ । ६. बौद्ध संन्यासी या भिक्षु । १०. बौद्ध संन्यासियों के रहने का मठा विहार । ११. वह मंदिर जो आदिवुद्ध के उद्देश्य से बना हो । १२. विता। १३. वल्मीक । बमोट (को०)।१५ भूमिभाग का सूचक पत्थर का ढेर (को०) । १५. समाधिमंदिर (को०) । १६. चितन । विचार (को०)। १७. राजमार्गस्थित कोई वृक्ष (को०)। यी-चंत्यत । चत्यद म । चैत्यवक्ष । चंत्यपाल । चैत्य-वि० चिता संबंधी। चिता का । चैत्यक-संज्ञा पुं० [सं०] १. अश्वत्य । पीपल । २ चैत्य का प्रधान अधिकारी। ३. वर्तमान राजगृह के पास के एक प्राचीन पर्वत का नाम। विशेष—इस पर्वत पर एक चरणचिह्न है जिनके दर्शनों के लिये प्राय; जैनी वहां जाते हैं। चैत्यतरु-संज्ञा पुं० [सं०] १. अपवत्थ । पीपल । २. गांव का कोई प्रसिद्ध वृक्ष। चैत्यद्र म-संज्ञा पुं० [सं०] १.अश्वत्य । पीपल । २. अशोक का पेड़। चैत्यपाल-संक्षा पुं० [सं०] चैत्य का रक्षक । चैत्यक । प्रधान अधिकारी। चैत्य मुख --संज्ञा पुं० [सं०] कमंडलु । चैत्ययज्ञ संक्षा पुं० [म.] एक प्रकार का यज्ञ जिसका वर्णन प्राश्वला यन गृह्यसूत्र में प्राया है। विशेष-पाचीन काल में इस यज्ञ का संकल्प किसी चीज के खो जाने परौर अनुष्ठान उस चीज के मिल जाने पर होता था। चैत्यवंदन-संडा पुं० [सं० चौत्य वन्दन] १.जैनियों या बौद्धों की मूर्ति । २. जैनियों या बौद्धों का मंदिर । ३. चैत्य या देवालय संबंधी धन की रक्षा। चैत्यविहार-संक्षा पुं० [सं०] १. बौद्धों का मठ । २.जैनियों का मठ। चैत्यवृक्ष-संज्ञा पुं० सं०] 'चैत्यतरु' । त्यस्थान- संज्ञा पुं० [सं०] १. वह स्थान जहाँ बृद्धदेव की मूर्ति स्थापित हो। २. कोई पवित्र स्थान । चैत्र'---संसा पुं० [सं०] १. वह मास जिस की पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र पड़े । संवत् का प्रथम मास । चैत । २. सात वर्षपर्वतों में से एक । ३.वौद्ध भिक्षुक । ४. यज्ञभूति। ५. देवालय । मंदिर ।। ६. चैत्य । ७. पुराणानुसार चित्रा नक्षत्र के गर्भ से उत्पन्न बुध ग्रह का एक पुत्र जो पुराणोक्त सातों द्वीपों का स्वामी माना जाता है। चैत्र-विचित्रा नक्षत्र संबंधी । चित्रा नक्षत्र का । चैत्रक-संश्वा पुं० [सं०] चैत्रमास । चैत्र। . . चैत्रगौड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० पोड़व जाति की एक रागिनी जो सांध्या ____ समय अथवा रात के पहले पहर में गाई जाती है। . विशेष--कोई कोई प्राचार्य इसे श्रीराग की पुत्रवधू मानते हैं। चैत्रमख-संचा पुं० [सं० ] चैत्र मास के उत्सव जो प्रायः मदन संबंधी होते हैं। चैत्ररथ-संशा पुं० [सं०] १. कुबेर के बाग का नाम जो चियरय का बनाया हुआ और इलावतं खंड के पूरब में अवस्थित माना जाता है। २. एक प्राचीन मुनि का नाम जिनका जिक्र महाभारत में पाया है। चैत्ररथ्य-संक्षा पु० [सं०] कुवेर का बाग । चैत्ररथ । ... चैत्रवती-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक नदी जिसका नाम हरिवंश में पाया है। चैत्रसखा--संज्ञा पुं० [मं० च त्रसख कामदेव । मदन । चैत्रावली-संद्या श्री० [सं०] १.चत्रशुवला त्रयोदशी । २. पत्र की पूणिमा। पर्या०-मधूत्सवासुवसत । काममह । वासंती । फर्दमी। . चैत्रि-संशा पुं० [सं०] चैतमास । चैत [को०] । चत्रिक-संवा पुं० [सं०] ३० पैत्रि' [को०] । चैत्री'-संघा मी० [सं०] चित्रा नक्षत्रयुक्त पूणिमा । चैत की पूर्णिमा । चैत्री--संज्ञा पुं० [सं० च मिन] चैतमास को०] । चीदिक-वि० [सं० चोदि देश संबंधी । कोदि देश का। चैद्य-संशा पुं० [सं०] शिशुपाल । चैद्य-वि० चेदि संबंधी। चेदि का [को०] । चैन'–संञ्चा पुं० [संपायन] १. पाराम । सुख । प्रानंद। " .. क्रि० प्र०-पाना।-फरना। देना।—पड़ना ।-मिलना। . होना। मुहा०-चन उडाना-चैन करना । पानंद करना । न पड़ना= शांति मिलना । सुख मिलना । चीन से फटना सुखपूर्वक समय बीतना । चन की बांसुरी बजाना आनंद का भोग करना । २. शांति । मानसिक शांति । चैन-संझा पुं० [सं० चलक?] एक नीच जाति । चैपला-सं ० [देश॰] एक प्रकार का पक्षी । उ०-फहत पापला पीपली, नितहि चैपला प्राइ। मीत खूब यह परध को समझ लेहु चित लाइ।--रसनिधि (शब्द०)। चैयाँ@-संज्ञा सी० [?] बाह । उ०—चैयां चैयाँ गही या वैयाँ . बयां ऐमे वोल्यो ।--सूर (शब्द०)। चैराही–वि० [हिं०] दे० 'चेहरई' (रंग)। चल--संज्ञा पुं० [सं०] १. कपड़ा । वस्त्र । २. पहनने के योग्य बना हुमा कपड़ा। पोशाक । यो०-- लवावक = धोबी। . चैलक-संक्षा पुं० [सं०] शूद्र पिता और क्षत्रिया माता से उत्पन्न एक प्राचीन वर्णसंकर जाति । चला--संज्ञा पुं० [हिं० चीरना, छीलना ] [ सी० प्रल्पा चली ] कुल्हाड़ी से चोरी हुई लकड़ी का टुकड़ा जो जलाने के काम में आता है । फट्टा। ..