पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५०४

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चोया १५८३ ....योगर होनेगा चोप्रा-संज्ञा पुं० हिं० चपाना (=पकाना)] १. एक प्रकार का चोखg+-संघा एती० [हिं० चोखा] तेजी । फुरती। वेग। उ०- सुगंधित द्रव पदार्थ जो कई गंधद्रव्यों को एक साथ मिलाकर एक जे सयाने भर माठी जल पाने ले चढ़ाएं धाम धाम । गरमी की सहायता से उनका रस टपकाने से तैयार होता है। फेट वांधि ठाढ़े चोख सों। हनुमान (शब्द०), विशेष--इसके तैयार करने की कई रीतियाँ हैं--(क) चंदन चोख-वि० सं० चोक्ष] दे० 'चोखा। का बुरादा, देवदार का बुरादा और मरसे के फूलों को एक चोख १३.-संध्या पुं० [सं० चक्ष, हि० चल आँख (वग०)। में मिलाते और गरम करके उनमें से रस टपकाते हैं। (ख) चोखना क्रि० स० [सं० चूपण हि चूसना ] चूसना या चूस- केसर, कस्तूरी आदि को मरसे के फूलों के रस में मिलाते कर पीना। और गरम करके उसमें से रस टपकाते हैं। (ग) देवदार के चोखना--कि० अ० १. स्तनपान किया जाना (बच्चों द्वारा)। नियर्यास को गरम करके टपकाते हैं। २. दुहा जाना (गाय यादि का)। ३. धार तेज किया जाना।। वह कंकड़, पत्थर या इसी प्रकार की और कोई चीज जा चोखना --संघा पुं० [सं० चिविपर] चूहा । मूसा । किसी बार की कमी को पूरा करने के लिये पलड़े पर रखी चोखनि@-संया धी० [हिं० चोखना ] चोखने की क्रिया या.. जाती है । पसँगा । ३. खेल में लगे हुए दो समूहों में से किसी भाव । चूपण। . . समह का वह आदमी किसी खिलाड़ी ने थक जाने पर या चोखा-वि० [सं० घोक्ष] १. जिसमें किसी प्रकार का मैल, खोट। चोट खाने पर उपके स्थान पर खेलता है। __या मिलावट आदि न हो। जो शुद्ध और उत्तम हो । जैसे,-.. मुहा०-घोवा लगना=किसी की ओर से कोई काम करना । चोखा घी, चोखा माल । २. जो सच्चा और ईमानदार हो।। ४. वह थोड़ी चीज जो किसी प्रकार की कमी पूरी करने के लिये ' खरा । जैसे,--चोखा असामी। ३ जिसकी धार तेज हो । उसी जाति की अधिक चीज के साथ रखी जाती है। ५. धारदार । ४. सबमें चतुर या श्रेष्ठ । जैसे, तुम्ही चोखे . वह दांव जो मुख्य जारी के साथ दूसरे जुआरी छोटी रकम निकले जो अपना सब काम करके छुट्टी पा गए। के रूप में लगाते हैं। ६.३० 'चोटा' या 'छोवा चोखा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. उबाले या भूने हुए बैगन, भालू या :: चोई 1--संहाली [? या हिं०] कुछ मछलियों के शरीर पर होनेवाला गोलाकार छिलका । धरुई आदि को नमक मिर्च यादि के साथ मलकर (और. कभी कभी घी या तेल में छौंककर) तैयार किया हुया सालन । चोई---संशा सी० [? ] दाल का वह छिलका जो उसको भिगो और मलकर अलग किया जाता है और जो दाल चुरते समय भरता । भुरता । २. चावल --(डि.)। मापसे आप दाने से अलग होकर ऊपर उतरा जाता है। चोखी---वि० स्त्री० [हिं० चोखा दे० 'चोखा"। कराई। २. मछली के ऊपर का चमकदार छिलका । मुहा०-चोखी चुटपियाँ लेना-खिल्ली उड़ाना । उ०- उनकी । चोक-संज्ञा पुं० [सं०] भड़भाड़ या सत्यानासी नामक क्षुप की चूक पर चोखी चुटकियां ले उनकी पतरात्मा दुखाई जाय। जड़ जिसका व्यवहार प्रोषधि में होता है। -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ४६७ । चोखो छुरी चलाना ; चोका'--संज्ञा पुं० [ चोप्रा ] चोना नाम का गंधद्रव्य । उ०- चुभती बात कहना । उ०---उन्हीं पर अपनी जीभ की चोखी, केसर अगर कपूर, चोक (व) वेदोकत चन्नण --रा०६०, छुरी चलाते । -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २०६। .. पृ०३५६ । चोंखाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० चोखा-ई (प्रत्य०)] 'चोखा' का भाव । चोकर--संक्षा पुं० देश. या हि० चून (पाटा)+कराई (= चोखापन। .. छिलका)] आटे का वह अंश जो छानने के बाद छलनी में चोखाई:--संज्ञा हौ [हिं० चोखना] 'चोखना' का भाव या काम बच जाता है। यह प्रायः पीसे हुए अन्न (गेहू, जो आदि) चूसने की क्रिया या भाव । चुमाई। . . की भूसी या छिलका होता है। चोखाना-कि० स० हिं० चौखना] १. स्तनपान करना (बच्चों : चोकस --वि० [गुज० चोकस, हिं० चोकस] टे० 'चौकस' । उ०-- द्वारा)। २. (गाय आदि का) दूध दुहना । ३. धार .. एक भाइ चोकस हतो ।--दो सौ वाचन०, भा० १, चोखी करना। . पृ० २०६॥ चोखाना--क्रि० अ० [हिं० चोख से नामिक धातु] उग्र होना। : चोका"---संज्ञा पुं० [सं० चूषण] चूसने की क्रिया । चूसना । प्रचंड होना । जैसे, किसके वने पर इतना चोखाते हो? मुहा०--चौका लगाना मुह लगाकर चूसना,। उ० ते जोगड़द -क्रि० वि० [हि०.चौगिद ] दे० 'चौगिर्द' । उ-पांच .. छकि रस नव के लि करेहीं। चोका लाइ अधर रस लेंहीं।- सात छोरा चोगदे बैंडो कहि कहि बोले ।-राम० धर्म, जायसी ग्रं०, पृ० १४०। पृ०४५। .. चोका-वि [हिं० चोखा] दे० 'चोखा'। .. चोगद-संज्ञा पुं० [हिं० चुगद] दे० 'चुगद'। । चोकी--संचा कौ० [हिं० चौकी] दे॰ 'चौकी' । चोगर-संशा पुं० [फा० चुगद] वह घोड़ा जिसकी . आँखें उल्लू की। चोक्ष-वि० [सं०] १. शुद्ध । पवित्र । २. दक्ष । होशियार । ३. तीक्ष्ण । तेज । ४. जिसकी प्रशंसा की गई हो। . विशेष---ऐसा धोड़ा ऐवो समझा जाता है। "