पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५०८

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चोर १५६७ 'चोरगली चोर'-संशा पुं० [सं०] १. जो छिपकर पराई वस्तु का अपहरण मुहा०-चोर, चौर खेलना इस प्रकार का खेल खेलना । करे । स्वामी की अनुपस्थिति या अज्ञानता में छिपकर कोई ५. ताश या गंजीफे प्रादि का वह पत्ता जिसे खिलाड़ी अपने हाथ । चीज ले जानेवाला मनुष्य । चुराने या चोरी करनेवाला । में दबाए या छिपाए रहता है और जिसके कारण दूसरे तरकर। खिलाड़ियों की जीत में बाधा पड़ती है। मुहा०-चोर की दाढ़ी में तिनका-चोर का सशंकित रहना । यो०-गुलाम चौर-ताश का एक खेल जिसमें गड्डी में का एक चोर के घर छिछोर= दे० 'चोर के घर ढिंढोर' । चोर के घर पत्ता गुप्त रूप से निकालकर छिपा दिया जाता है और शेप . ढिंढोर-पक्के बदमाश से किसी नौसिखु ए का उलझना। चौर पत्ते सब खिलाड़ियों में रंग और टिप्पियों के हिसाब से जोड़ा के घर में मोर पड़ना-धूर्स के साथ घूर्तता होना। चोर के मिलाने के लिये बांट दिए जाते हैं। अंत में किसी खिलाड़ी पाँव कितने-चोर की हिम्मत कम होती है। उ०-इन गीदड़ के हाथ में छिपाए हुए पत्ते के जोड़ का पत्ता रह जाता है। . भपकियों में हम न पाने के चोर के पाँव कितने ।--फिसाना, जिसके हाथ में वह पत्ता रह जाता है, वह भी चोर भा० ३, पृ० २३८ । चोर चोर मौसेरे भाई-धुरं लोगों में कहलाता है। स्नेह सहयोग होना । चोर पड़ना=चोर का आकर कुछ चुरा ६. चोरक नाम का गंधद्रव्य । ७. ( मन की) दुर्भावना। । ले जाना। चोर पर मोर पड़ना-घूर्त के साथ धूर्तता होना। जेसे, मन का चोर । ८. रहस्य संप्रदाय का पारिभाषिक चालाक के साथ चालाकी होना । चोर से कहे चोरी करो, शाह शब्द जिसका अर्थ है पड् विकार या मृत्यु । से कहना जागता रह-दो विरोधी तत्वों को प्रोत्साहन देना। चोर-वि०१. जिसके वास्तविक स्वरूप का ऊपर से देखने से पता . 30--पुलिसवाले चोर से कहें चोरी कर शाह से कहें जागता न चले। रह।--फिसाना०, भा० ३, पृ०८४। चोरों का पीर चोर उरद-संघ to ffo चोर-+परद] उरद का वह कड़ा दाना . उठाईगीर-चोरों से भी बड़ा उचक्का । चोरी से धोखा बड़ा जो न तो चक्की में पिसता है और न गलाने से गलता है। ठहराना । उ०-यह शसस बदमास भी परले सिरे के थे। जोर परले सिरे के थे। चोरकंटक संज्ञा पुं० [सं० चोरफराटक चोरक नामक गंधद्रव्य । चोरों के पीर उठाईगीरों के लंगोटिए चार !फिसाना०, चोरक-संक्षा पुं० [सं०१. एक प्रकार का गठिवन जिसकी गरगना भा० ३. पृ० ४१ । मन में चोर बैठना=मन में किसी प्रकार गंधद्रव्यों में होती है। फा खटका या संदेह होना। विशेष-वद्यक में इसे तीव्रगंध, कड़ना और वात, कफ, नाक यौ--चोर चकार-चोर उचक्का । चोरीचकारी, चोरीचिकारी तथा मुह के रोग, अजीर्ण, कृमिदोष, रुधिरविकार' और.. = चोरी पूर्ण मजाक । उ०-क्या चोरीचिकारी की। खुदा मेद आदि का नाशक माना जाता है। न स्वासता किसी को करल कर डाला किसी को मार डाला २. एक प्रकार का गंधद्रव्य जिसका व्यवहार यौषधों में भी . . किसी का घर फांदे। --फिसाना० भा० ३, पृ० ७६ । ___ होता है और जि से असवरग भी कहते हैं। . कामचोर । मुहचोर । चोरकट संचा पुं० [हिं० चोर + कट (= काटनेवाला) ] चोर। । २. घाव आदि में वह दूपित या विकृत अंश जो अनजान में प्रदर रह जाता है और जिसके ऊपर का घाव अच्छा हो जाता है। चोट्टा । उचक्का । . . विशेष-ऐसा दूपित घंश अंदर ही अंदर बढ़ता रहता है और चोरकर्म-संक्षा पुं० [सं० चोरकर्मन्] चोरी [को०)। शीघ्र ही उस घाव का मुह फिर से खोलना पड़ता है। चोरखाना-संज्ञा पुं० [हिं० चोर+फा० खान्ह ] १. संदूक आदि ३. वह छोटी संधि या अवकाश जिसमें से होकर कोई पदार्थ बह में का गुप्त खाना । २. पिंजड़े आदि में का वह छोटा खाना या निकल जाय जिसके कारण इसी प्रकार का और कोई जो बड़े खाने के अंदर हो। अनिष्ट हो । जैसे, छत में का चोर । मेंहदी का चोर। चोरखिड़की-संज्ञा चौ० [हिं० चौर+खिड़की ] छोटा चोर विशेष-मेंहदी का चोर हथेली की संधियों आदि का वह सफेद दरवाजा। अंश कहलाता है जिसपर असावधानी से मेंहदी नहीं लगती चोरगढ़ा-संवा पुं० [सं० चौर+ हि० गढ़ा] गुप्त या छिपा- हुमा . या दाब पड़ने से मेंहदी के सरक जाने के कारण रंग नहीं गड्ढा । चढ़ता । यद्यपि इससे किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं होता, .. तथापि यह देखने में भद्दा जान पड़ता है। चोरगणेश -संशा पुं० [सं०] तांत्रिकों के एक गणेश । . . . . . ४. सेल में वह लड़का जिससे दूसरे लड़ के दांव लेते हैं और जिसे विशेष-इनके विषय में यह विश्वास है कि यदि जप करने के.. पौरों की अपेक्षा अधिक श्रम का काम करना पड़ता है। समय हाथ की उंगलियों में संधि रह जाय, तो ये उसका फल .. विशेष--चौर को प्रायः दूसरे खिलाड़ियों को छूना, हूँढ़ना या . हरण कर लेते हैं। अपनी पीठ पर चढ़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले चोरगली-मंधा खी० [हिं० चोर-+-गली] १. वह पतली और जाना पड़ता है । सेत में चोर जिसे छूता या टूट लेता है वही तंग गली जिसे बहुत कम लोग जानते हों। २. पायजामे का .. चोर हो जाता है।। वह भाग जो दोनो जांघों के बीच में रहता है।