पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५०९

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चोरचकार चोरवाजारी चोरचंकार-संज्ञा पुं० [हिं० चोर+ अनु० चकार] [श्री चर] जो शत्रु के जासूनों से सेना की रक्षा के लिये गुप्त रूप से ..चारी त्रोर । उनका।। वैलाया जाता है २.किसी प्रकार का गुन्त पहरा। चोरा --वि० हिं० चोर+चमार] चोरी करनेवाला। नीच कोरपूष्प-मंडा पुं० [सं०] दे० 'कोरपुप्पी' । कार्य करनेवाला। चोरपुष्पका-संहामी [सं०] दे० 'चोरपुष्पी । चोरछिद्र-कर पु० म.] दो चीजों के बीच का अवकाश । संधि। चोरपुष्पी-मंशा स्त्री० [म.] एक प्रकार का जप जिसका उठल कुछ - दरज। लाली लिए होता है। चोरछेदः -संज्ञा पुं० [हिं० चोर+छेद ] दे० 'चौरछिद्र'। विशेष-इसके पसे लबे पोर रोएंदार होते हैं। इसमें प्रासमानी चोरजमीन-संधा. सी० [हिं० चोर-+-समीन] वह जमीन जो रंग का फूल लगता है। जो नीचे की ओर लटका रहता है। ..' ऊपर से देखने में तो ठीक जान पड़े, पर नीचे से पोनी हो वैद्यक में इसे नेत्रों के लिये हितकारी और मूढगर्भ को पाक- . . और जिसपर पर रखने ही नीचे धेस जाय । र्पण करनेवाला माना है। इसे अंधाहुली या शंखाहुली भी • चोरटा--संशा पुं० [हिं० बोरा (प्रत्य०)] [ली. चोरटी] कहते हैं। - ० 'चोट्टा'। पर्या--शंखिनी केशिनी। प्रवःपुप्पो। अमरपुष्पी। राजी । - चोरताला--संज्ञा पुं० [हिं० चोर+ताला] वह ताला जिसका पता चोरपेट-ममा पुं० [हिं० चोर+ पेट] १. बह पेट जिसमें के गर्म का दूर से या ऊपर से न लगे। जल्दी पता न लगे । २. किसी चीज के मध्य में वह गुप्त स्थान - विशेष-ऐसा ताला प्रायः किवादों के पल्ले के अंदर लगा जिसमें रखी हई कोई चीज लोगों पर प्रकट न हो। ३.वह चीज जिसके मध्य में कोई ऐना गुप्त स्थान हो। चोरथन- विहि चर+ थन] दुहने के समय अपना पूरा चोरपैर-संचा० [हिं० चोर+पर ऐसे ढंग से रखे जानेवाले धन देनेवाली और धनों में कुष्ट दृध चुरा रखनेवाली (गो, पैर जिनकी आहट न मालूम हो । भैस या करी आदि)। चोरवजार--- संज्ञा पुं० [हिं० चोर+दाजार वह बाजार जहां अवैध ..चोरदन-संश पुं० [हि. चोर--- दत] व्ह दांत जो बत्तीस दांतों ___ व्यापार होता हो या चोरी से चीजें बिकती हों। के अंतिरिक्त निकलता है और निकलने के समय बहुत कष्ट चोरबजरिया-वि० [हिं० चोरबजार + इया (प्रत्य॰)] चोरबाजारी चोरदंता-संशा पुं० [हिं० चोरदंत+पा (प्रत्य॰] दे० करनवाला । 'चोरदंत' चोरवत्ती-संधा सी० [हिं० चौर+वत्ती] बिजली की एक प्रकार की बत्ती जो बटन दबाकर जलाई जाती है। यहसबी बैटरी से - चोरदंताई वि० जिसके चोरदंत निकले हों। चोरदात वाला। जलती है। टार्च। -- चोरदरवाजा- संन्या पुं० [हिं०चोर दरवाजा]] किसी मकान में विशेष यह चोरों के लिये विशेष लाभप्रद होता है क्योंकि इसे ... पीछे की ओर या अलग कोने में बना हुया कोई ऐसा गुप्त जलाने के लिये दियासलाई की जमरत नहीं पड़ती तथा ....द्वार जिसका ज्ञान बहुत कम लोगों को हो। इसका प्रकाश चौतरफा न पड़ कर सामने पड़ता है। प्रतः . चोरान-मंशा पुं० [हिं० चोर+दांत दे० 'चोरदंत'। गुप्त स्थान में पड़ी वस्तु देखी जा सकती है और साथ ही ... चोरद्वार-संत्रा पुं० [हिं० चोर+द्वार] दे० 'चोरदरवाजा'। दुसरे इसका प्रकाश करनेयाले को नहीं देख सकते । यदि .. चोरधज- संझा ए० [हिं० चोर+घज] तलवार की लड़ाई का एक किसी व्यक्ति के मुंह पर इसका प्रकाश डाला जाय तो - ... तरीका। उसकी प्रांग चौंधने लगती है तथा वह चोरबत्ती जलानेवाले . . चोरना@--क्रि० स० हि० चोर से नामिक घातु] चुराना । को नहीं पहबान सकता। अतः चोर भागते समय भी इससे चौरपट्टा मंदा पुं० [हिट चोर+पाट (सन)] एक प्रकार का लाभ उठा लेते हैं। - जहरीला पौधा जो दक्षिण हिमालय, ग्रासाम, वरमा और - . लंका में अधिकता से होता है। चोरबदन---संज्ञा पुं० [हिं० चोर + फा० ददन] वह मनुष्य जिसकी मोटाई प्रकट न हो । वह मनुष्य जो वास्तव में बलवान हो, विशेप-अगिया की तरह इसके पत्तों और डंठलों पर भी बहुत पर देखने में दुबला जान पड़े। " जहरीले रोए होते हैं जो शरीर में लगने से सृजन पैदा करते हैं। सजे हुए स्थान पर दड़ी जलन होती है और वह कई चोरबाजार-संश पुं० [हिं०चोर बाजार] काला दाजार । चोरी दिनों तक रहती है। इसमें से बहुत बढ़िया रेशा निकल सकता से खरीदा या बेचा जाना । गैरकानुनी व्यापार । निश्चित है, पर इसी दोप के कारण कोई इसे छूता नहीं। और मूल्य से अधिक पर बेचा जाना। इसलिए इसका कोई उपयोग भी नहीं हो सकता । इसे सूरत भी चोरवाजारी-संशा ग्री० [हिं० चोर बाजारी] चोर बाजार का .. व्यापार । थोर गजार में खरीदने या बेचे जाने की स्थिति चारपदरा-संग्रा पुं० [हिं० चौर (गुप्त)+पहरा] १.वह पहरा या भाव ।