पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५११

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चोरबाजारी चोरचकार १५८८ चोरचकार-संधा पुं० [हिं० घोर+धनु० चकार] [त्री० चर] जो शत्रु के जासूमों से सेना की रक्षा के लिये गुप्त हा से ..'चारी] चोर । उनका । वाया जाता है २.किसी प्रकार का गुप्त पहरा। चोरचार-वि० हिं० चौर+चमार] चोरी करनेवाला। नीच मोरपुष्प-मंझा पुं० [सं०] दे० 'चोरपुप्पी' । - कार्य करनेवाला। चोरपुष्पिका-संहा भी [सं०] दे० 'चोरपुप्पी ।। चोरछिद्र-हा यु० । सं०] दो चीजों के बीच का अवकाश । संधि। चोरपुष्पी-मंशा सी० [सं०] एक प्रकार का क्षुप जिसका डठल कुछ - दरज। ___लाली लिए होता है। चोरछेद:-संहा पुं० [हि चोर+छेद ] दे० 'चोरछिद्र'। विशेष-इसके पत्ते लवे और रोएँदार होते हैं। इसमें प्रासमानी चोरजमीन-संज्ञा स्त्री० [हिं० चोर+जमीन] वह जमीन जो रंग का फूल लगता है। जो नीचे की ओर लटका रहता है।

अपर से देखने में तो ठीक जान पड़े, पर नीचे से पोली हो वैद्यक में इसे नेत्रों के लिये हितकारी और मूढगर्भ को पाक-

.. और जिसपर पर रखने ही नीचे बस जाय। र्पण करनेवाला माना है। इसे अंघाहुली या शंबाहुली भी चोरटा--संश पुं० [हिं० चोर+et (प्रत्य०)] [स्त्री० चोरटी] .. दे० 'चोट्टा' 1 पर्या--शखिनी केशिनी। अव.पुष्पो। श्रमरपुष्पी। राज्ञो । ...चोरताला--संज्ञा पुं० [हिं० चोर+दाला वह ताला जिमका पता चोरपेट-पक्षा पुं० [हिं० चोर+ पेट] १. वह पेट जिसमें के गर्भ का दूर से या ऊपर से न लगे। जल्दी पता न लगे । २. किसी चीज के मध्य में वह गुप्त स्थान - विशेष-ऐसा ताला प्रायः किवाड़ों के पल्ले के अंदर लगा जिसमें रखी हई कोई चीज लोगों पर प्रकट न हो। ३. वह वीज जिसके मध्य में कोई ऐषा गुप्त स्थान हो। जोरधन--वि० [हिं० र थन] दुहने के समय अपना पूरा चोरपैर-संज्ञा पुं० [हिं० चोर+पैर] ऐसे ढंग से रखे जानेवाले .... ध न देनेवाली और थनों में कुछ दूध चुरा रखनेवाली (गौ, पैर जिनकी प्राइट न मालूम हो । . भैस या बकरी प्रादि)। चोरबजार- संज्ञा पुं० [हिं० चोर बाजार वह बाजार जहां प्रबंध चोरदंत-संशा पुं० [हिं० चोर--- दत] वह दांत जो बत्तीस दांतों व्यापार होता हो या चोरी से चीजें विकती हों। के अतिरिक्त निकलता है और निकलने के समय बहुत कष्ट चोरखजरिया-वि० [हिं० चोरबजार+इया (प्रत्य॰)] चोरबाजारी - देता है। चोरदंता-संया पुं० [हिं० चोरदंत+पा (प्रत्य॰] दे० १० करनेवाला । . . . 'चोरदंत'। . चोरवत्ती-संहा मी० [हिं० चौर, वत्ती बिजली की एक प्रकार की बत्ती जो बटन दबाकर जलाई जाती है। यह सखी बैटरी से . चोरदंता:-वि० जिसके चोदंत निकले हों । चोरदात वाला। जलती है। टार्च। - चोरदरवाजा-- संभा पुं० [हिं० चोर दरवाजा]] किसी मकान में विशेष यह नोरों के लिये विशेष लाभप्रद होता है क्योंकि इसे . .पीछे की ओर या अलग कोने में बना हुया कोई ऐसा गुप्त .... द्वार जिसका ज्ञान बहुत कम लोगों को हो। जलाने के लिये दियासलाई की जरूरत नहीं पड़ती तथा इसका प्रकाश चौतरफा न पड़ कर सामने पड़ता है। प्रतः . चोरदार-मंथन पुं० [हिं० चोर दाँत] दे० 'चोरदंत'। गुप्त स्थान में पड़ी वस्तु देखी जा सकती है और साथ ही चोरद्वार-संया पुं० [हिं० चोर+द्वार] दे० 'चोरदरवाजा'। दूसरे इसका प्रकाश करनेवाले को नहीं देख सकते । यदि .... चोरघज- संशा पु० [हिं० चोर-+घज] तलवार की लड़ाई का एक किसी व्यक्ति के मुंह पर इसका प्रकाश डाला जाय तो ...तरीका। उसकी प्रांव चौधने लगती है तथा वह चोरबत्ती जलानेवाले चोरना--क्रि० स० हि चोर से नामिक धातु] चुराना । को नहीं पहनान सकना । अतः चोर भागते समय भी इससे . : चारपट्टा मंशा पुं० [हिट चोर+पाट (सन)] एक प्रकार का लाभ उठा लेते हैं। जहरीला पौधा जो दक्षिण हिमालय, प्रासाम, वरमा और . . . . लंका में अधिकता से होता है। चोरबदन-संहा पुं० [हिं० चोर + फा० बदन] वह मनुष्य जिसकी मोटाई प्रकट न हो । वह मनुष्य जो वास्तव में बलवान हो, विशेष-अगिया की तरह इसके पत्तों और डंठलों पर भी बहुत पर देखने में दुबला जान पड़े। पहरीले रोए होते हैं जो शरीर में लगने से सूजन पैदा करते है। सजेए स्थान पर दडी जलन होती है और वह कई चोरबाजार-संशा पुं० [हिं०चोर+बाजार] काला बाजार । चोरी दिनों तक रहती है। इसमें से बहत बरिया रेशा निकल सकता से खरीदा म येचा जाना । गैरकाननी व्यापार । निश्चित मूल्य से अधिक पर वैवा जाना । .... : है, पर इसी दोष के कारण कोई इसे छूता नहीं; और । इसलिए इसका कोई उपयोग भी नहीं हो सकता । इसे सूरत भी चोरबाजारी- संशा पी० [ हि० चोरबाजारी]चोर बाजार का व्यापार । चोर गाजार में खरीदने या बेचे जाने की स्थिति

चौरपहरा-रांचा पं० [हिं० चोर (गुप्त)+ पहरा] १.वह पहरा . या भाव। .