पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५१३

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चौमा . १५१२ चीकलियाई चौमा-संवा पुं० [सं० चतुप्पाद] गाय, बैल, भैस आदि पशु । चौकठ- पुं० [हिं०] दे० 'चौखट'। . . . चौपाया । (विशेषकर गाय बैल के लिये)। क्रि० प्र०-पूजना=मुख्य द्वार पर किवाड़ लगाते समय एक चौमा-संज्ञा पुं० [हिं० चौ (चार).] १ हाथ की चार उंगलियों प्रकार का पूजन संस्कार करना जो मंगल के लिये होता .. का विस्तार । चार अंगुल की माप । २.ताश का वह पत्ता जिसपर चार चूटियाँ हों। वि०३. 'चोवा' . . चौकठा--संह of चौका दे० 'चौखटा। चौमाईल-संवा स्त्री० [हिं० चौवाई] दे० 'बौदाई। चौकड़ - वि० [हिं० चौ+० कला (-प्रगाभाग)] दुरुस्त । : - चौयाना -क्रि० अ० हिं० चीकना] १. चकपकाना । चकित बढिया । प्रछा । जैसे,—चौकड़ माल 1-बाजारू)।. ..... होना । विस्मित होना । उ०-भोर भए जागे यतिराई। चौकडपाक-संबा दे लखंड में होली के दिनों में गाया .... चहु दिशि लखत भए चौपाई।-रघुराज (शब्द॰). २. जानेवाला एक गीत। ..चौकन्ना होना । घबरा जाना । उ०-सा व दाम जेतनो रह्यो, चौडा चौकडा १. कान में पहनने की वाली ...... तेतनो लियो देखान । पापा कह तु बावरो, वरिण चित्त " जिसमें दो दो मोती हों । २. फसल की एक प्रकार की बेटाई चौग्नानं ।-रघुराज (शब्द०)। ३. सतर्क होता। चौक-संका पं० [सं० चतुष्क, प्रा. चक्क ] १. चौकोर भूमि। जिसमें से जमींदार को चौयाई मिलता है। . .... चौखू टी खुली जमीन । २. घर के बीच की कोठरियों और चौकड़ी'-संशा सौ० [हिं० चौ (-चार)+० कला (-अंग)] १. वरामदों से घिरा हुया वह चौखूटा स्थान जिसके कपर किसी . हरिण की वह दौड़ जिसमें वह चारों पर एक साथ फेंकता हुमा प्रकार की छाजन न हो। प्रांगन । सहन। ३. चाबूटा जग्ता है। चौफाल कुदाना फलांग। कुलांच। उड़ान । छलांग। ... क्रि० प्र०-मरना। .. चबूतरा । बड़ी वेदी । ४. मंगल अवसरों पर आंगन में या मुहा०-चौकड़ी भूल जाना एक भी बाल न सूझना । बुद्धि .और किसी समतल भूमि पर ग्राटे, अबीर आदि की रेखाओं का काम न करना। किंकर्तव्यविमूढ़ होना । सिटपिटा से बना हुमा चौबूटा क्षेत्र जिसमें कई प्रकार के खाने पौर जाना । घबरा जाना । भौचक्का रह जाना। ...... ... चित्र बने रहते हैं। इसी क्षेत्र के पर देवताओं का पूजन २. चार आदमियों का गुट्ट । मंडली। ... प्रादि होता है। उ०—(क) कदली खंभ, चौक मोतिन के, यौ०-चांडाल चौकड़ी-उपद्रवी मनुष्यों की मंडली। - , बाँध बंदनवार ।-सर (शब्द)।(ख) मंगल चार भए घर ३.एक प्रकार का गहना । ४. चार युगों का समूह । ..: . घर में मोतिन चौक पुराए 1-सूर (शब्द०)। चतुर्युगी । ५. पलथी। ..क्रि० प्र० - पूरना !-बंठना। क्रि० प्र०- मारना। ५. नगर के बीच में वह लंबा चौड़ा खुला स्थान जहाँ बड़ी । .६.चारपाई की वह वुनावट जिसमें चार चार सुतलियां इकट्ठी - बड़ी दुकानें ग्रादि हों। शहर का बड़ा बाजार । करके वुनी गई हों। ६. वेश्याओं की बस्ती या मुहल्ला जो अधिकतर चौक या ७.मंदिरों का शिखर जो चार खंभों पर स्थित रहता हो। ....... मुख्य चौराहों के पास होता है। उ०-चौक में जाके अपने . चौकड़ी-संवा स्त्री० [हिं० चौ+घोड़ी] वह गाड़ी जिसमें चार .. कुनबे की किसी को बिठायो। खुद जाके बैठो।-सैर०, पा भा०१.पृ० २८ घोड़े जुतें । चार घोड़ों की गाड़ी। मुहा० चौक में बैठना वेश्यावृत्ति करना । वेश्या का धंधा या चोकानकास-संशा पुं० [हिं० चीक+निकास] बह कर या महसल जो किसी चोक (बाजार) में बैठने वाले दुकानदारों से लिया पेशा करना । 30-जो चौक में बैठना होता तो यह छह रूपे जाता है। और खाने पर न पड़े रहते 1- सैर०, भा० १,०२८।। से चारों ग्रोर रास्ते गए चौकना -क्रि० प्र० [हिं० चौंकना] दे॰ 'चौंकना' । उ.--देव - "हों। चौगहा । चौमुहानी। ८ चौसर खेलने का कपड़ा। कहा कहीं राधिका के गुन तो तिन सौतिन के डर सालें । प्राजु . विसात । उ०-राखि संबह पुनि अठारह चोर' पाँचौं मारि । लौ लाज लजी चित चौकृति सीख यथोचितु सादर पालें।- .. डारि दे तू तीन काने चतुर चौक निहारि-सूर (शब्द०)। .देव मं०, पृ०६५। सामने के चार दांतों की पंक्ति । उ०-दसम चौक पैठेजनु चाकन्ना-वि० [हि० ची (चारो योर)+कानी १. सावधान । . होशियार । चौकस । सजग ।। " हीरा । प्रो बिचबिच रेंग स्याम गंभीरा । जायसी (शब्द०)। १०. सीमंत कर्म । अठवासा ! भोड़ें । ११. चार समूह । क्रि० प्र०—करना ।-होना। २. चौंका हुया । आशंकित । ३. विपत्ति का सामना करने उ-पुनि सोरहो सिंगार जस चारिहु औक कुलीन । दीरघ के लिये प्रस्तुत। सारि चारि लघु चारि सुमट भी खीन ।-जायसी (शब्द०)। . .. चोकगोभी--संज्ञा श्री. देशाचौकं ?--हि गोभी] एक प्रकार चोकरी--मंधा स्व० [हिं० चौकडी] 2. चौकडी', की गोभी । चौकल-संभा पुं० [सं०] चार मात्रामों का समूह । इसके पांच भेद चौकचौदनी संज्ञा मौ. ह. चीक+चाँदनी] भादों के कृष्ण हैं (5,115, 15ism) . पक्ष में पड़नेवाला एक त्योहार । चौकलिपाई:-वि० [हिं० छिकुला] छिलकेदार । उ०हूँ तो रोधन