पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५१६

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चीचंद चौगानी १५६५ धावत सुख छावत पूछत कोउ नहिं कोई ।-रघुराज (शब्द०)। और चिपटा दाँत जो आहार कचने या चबाने के काम में ४. नगाड़ा वजाने की लकड़ी। . . . आता है । चौगानी-संक्षा मी० [फा० चौगान ?] हुक्के की सीधी नली जिससे चौघड़ा-संक्षा पुं० [हिं० ची (=चार)+घर (खाना)] १. चाँदी . धुमा खींचते हैं। निगाली । सटक। .. ___ सोने आदि का बना हुमा एक प्रकार का डिब्बा जिसमें चार चौगिर्द -कि वि० [हिं० चौ+फा० गिर्द (=तरफ) ] चारो खाने बने होते हैं। . प्रोर । चारो तरफ। विशेष -यह कई प्रकार का बनता है। विशेषतः . गोल होता चौगना--वि० [चतुर्गुण, हि० चौगुना] 0 'चौगुना'। मामालकीवीके ग्राकार के बनाए जाते हैं। चौगना-वि० [चतुर्गुण, प्रा. चउपगुण ] [ वि० सी० चौगुनी] इन खातों में इलायची, लौंग, जावित्री, सुपारी इत्यादि । चार बार और उतना ही। चतुर्गुण । चहारचंद । भरकर महफिलों में रखते हैं। ...... महा०---मम चौगुना होना= उत्साह बढ़ना। चित्त और प्रसन्न होना। ... २. चार खानों का बरतन जिसमें मसाला प्रादि रखते हैं । ३: उ.--विध्यावली तिया सी न देखी कहूँ तिया नंना वीक्ष्यो दीवाली के दिनों में बिकनेवाला मिट्टी का एक खिलौना • . प्रभु पिया देखि कियो मन चौगुनो।-प्रिया (शब्द०)। .. जिसमें आपस में जुड़ी हुई चार. छोटी छोटी कुल्हियां होती । चौगुनो g+-वि० [हिं० चौगुना ] ६० 'चौगुना' । उ०--चौगुनो हैं। लड़के इसमें मिठाई आदि रखकर खाते हैं। ४. पत्त की : रंग चढ्यो चित मैं चनरी के चुचात लला के निचोरत । नगी जिसमें चार बीडे पान हों। जैसे.--दो चौघड़े उधर -देव ग्रं॰, पृ० १५० । दे पायो। ५. बड़ी जाति की गुजराती इलायची। ६..एक चौगून'@t--वि० [हिं० चौगुन] दे॰ 'चौगुना' । प्रकार का वाणा। चौडोल । उ०-सौ तुपार ते इस 'गज - चौग---संगा पुं० [हिं० चौगुना ] १. चौगुना होने का भाव । पाया । दु'दुभि श्री चौघड़ा दियावा ।-आयसी (शब्द०)। . 5 प्रारंभ में गाने या धजाने में जितना समय लगाया जाय, सौ (चार)-+घडी- इया (प्रत्य०) | मागे चलकर उसके चौथाई समय में गाना या बजाना। दून चार घटियों का। चार घडी संबंधी । जैसे, चौघड़िया मुहूत। " से भी प्राधे समय में गाना या बजाना । । . चौघड़िया-संशा स्लीः [ हिं० चौ (चार) गोड़ा-(=पावा)] . विशेष--प्रायः किसी चीज के गाने या बजाने का प्रारंभ धीरे धोरे होता है, पर आगे चलकर उसकी लय बढ़ा दी जाती है एक प्रकार की छोटी ऊँची चौकी जिसमें चार पावे होते हैं ! .. तिरपाई । तिपाई । स्टूल। . और वही गाना या बजाना जल्दी जल्दी होने लगता है। जब गाना या वजाना साधा रण समय से आधे समय में हो। चौघड़िया मुहर्त - संज्ञा पुं० [हिं० चौघड़िया+सं० मुहूर्त] एक प्रकार तब उसे दून, तिहाई समय में हो, तब उसे तिगून और का मुहूर्त जो प्रायः किसी जल्दी के काम के लिये, एक के .. ... दिन के अंदर ही निकाला जाता है। . जब चौथाई समय में हो, तब उसे चौगून कहते हैं। ... .. . पैर विशषजब कोई शुभ मुहूर्त दूर होता है, और यात्रा या इसी । चौगोड़ा'--वि० [हिं० ची (= चार)+गोड( "रोंवाला । प्रकार का और कोई काम जल्दी करना होता है, तब इस चौगोड़ा--संज्ञा पुं० खरगोश । खरहा । ., प्रकार मुहूर्त निकलवाया जाता है । ऐसा मुहूर्त दिन के दिन । चौगोड़िया-संवा सी० [हिं० चौ (=चोर)+गोड़(पर)] १. एक या एक दो दिन के अंदर ही निकला जाता है । ऐसा मुहूर्त :- प्रकार की ऊँची चौकी जिसके पायों में चडने में लिये मोठी घड़ी, दो घड़ी या चार घड़ी का होता है और उतने ही... की तरह डंडे लगे रहते हैं। टिकटी। .. समय में उस कार्य को प्रारंभ कर दिया जाता है। ... .. . 'विशेष-यह छत, दीवार प्रादि ऊंचे स्थानों तक पहुचने, झाड़ने चौघड़ो।--वि०बी० [हिं० चौ+घेरा] चारतह की । चार परत की। ': पोंछने, सफेदी या रंग प्रादि करने के काम में आती है। चौघर: वि: [देश॰] घोड़ों की एक चाल । चौफाल । पोइयाँ । २. बाँस की तीलियों का बना हुआ एक ढाँचा या फंदा जिसके मरपट । उ०प्रबलक अबरस लखी सिराजी। चौघर चाल - ... 'चारों पल्लों में तेल में पकाया हुमा पीपल का गोंद लगा ।'. समुद.सब ताजी। जायसी (शब्द०)। ... 1:.'. रहता है। चौधर@२-संथा पुं० [हिं० चौघड़].दे० 'चोधड़'।. .. ...विशेष-बहेलिए इससे चिड़िया फंसाते हैं। ... चौघरा--संवा पु.[हिं० चौ+घर ] १. पीपल की दीयटः जिसके । .. ३.. मेंढकः । मंडूक । . ..... .

दीये में चार बत्तियाँ- जलती हैं । २.दे० 'चौघड़ा।. ..

चौगोशा-संहा पुं० [हिं० चौफो० गोशा] चौखटी तश्तरी जिसमें चौघरिया---संज्ञा स्रो० [देश॰] शहनाई। रोशनचौकी। उ०- मेवे, मिठाइयों आदि रखकर कहीं भेजते हैं। ४ : बाजन. लागु चपल चौघरिया चित्त चतुरता. भागिरे। . चौगोशिया-वि०सी० [फा०] चार कोनेवाली। : ... " ......---धरती०, पृ०-२८ । चौगोशिया:--संवा स्त्री० एक प्रकार की टोपी.जो कपड़े के चार चौधोड़ी+--संक्षा श्री० [हिं० चौ+घोड़ा] चौकड़ी. गाड़ी। चार .:. तिकोने टुकड़ों की सीकर बनाई जाती है। . घोड़ों की गाड़ी या रथ। . . चौगोशिया-संज्ञा पुं० तुरकी घोड़ा। .. . ... .. . चौचंद@+--संज्ञा पुं० [हिं० चौथ--चंद या चवाव+चंड] १. कलंक- चौघड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० चौ (चार)+दाढ़] किनारे का बह चौड़ा सूचक अपवाद । वदनामी की चर्चा। निंदा । उ सखि! .. 1 - A