पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५१८

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चौताली १५६७ चौदस चौतालो-संचा क्षी० [देश॰] कपास की 'देंढी या डोडा जिसमें से यौ०---चौथिया जर । चौथिया बुखार। . . रूई निकलती है। २. चौथाई का हकदार । चतुर्थांश का अधिकारी । चौतुका'-वि० [हिं० चौ+तुक+पा : (प्रत्य॰)] जिसमें चार चौथी'--वि०बी० [हिं० चौथा का बी०] दे० 'चौथा'! चौथी--संज्ञा स्त्री० [सं० चतुर्यो ] १. विवाह की एक रीति जो चौतका-संधा पुं० एक प्रकार का छंद जिसके चारों चरणों की विवाह हो जाने पर चौथे दिन होती है। इसमें वर कन्या के तुक मिली हो। हाय के कंगन खोले जाने हैं। उ०-चौथे दिवस रंगपति चौथ'—सक बी० [ पुं० चतुर्थी, प्रा० चउत्यि, हि० चउथि ] पाए । विधि चौयी कर चार कराए।--रघुराज (शब्द०)। १. प्रतिपक्ष की चौथी तिथि । हर पखवारे का चौथा दिन । मुहा०--चौथी का जोड़ा-वह जोड़ा या लेहंगा जो वर के घर चतुयी। से पाता है और जिसे दुलहिन चौथी के दिन पहनती है। मुहा०-चौथ का चांद% भाद्र शुक्ल चतुर्थी का चंद्रमा जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि यदि कोई देख ले तो कुठा कलंक चौथी खेलना-चौथी के दिन दूल्हा दुलहिन का एक दूसरे के . लगता है। उ०--लग न कहु ब्रज गलिन में प्रावत जात ऊपर मेवे, फल प्रादि फेंकना । चौथो टूटना-चौथी के दिन- वर कन्या के हाथों का कंगनं खलना। चौथी की रीति कलंक । निरखि चौथ को चंद यह सोचत सुमुखि ससंक ।- पद्माकर (शब्द०)। होना । चौथी छुडाना-चौथी की रीति करना । ... विशेष--भागवत प्रादि पुराणों में लिखा है कि श्रीकृष्ण ने चौथ २. विवाह तथा गौने के चौथे दिन वधू के घर से वर के घर पानेवाला उपहार । उ०--गौने के द्यौस छ सातक बीते न, का चंद्रमा देखा था; इसी से उन्हें स्यमंतक मणि की चोरी चौथी कहा अबहीं चलि पाई.1---मति० प्र०, पृ० ३१६ ॥ . . लगी थी। पतक हिंद भादों सुदी चौथ के चंद्रमा का दर्शन किलोकोपकार की है। प्रनसार' । बचाते हैं। और यदि किसी को झूठ मूठ कलंक लगता है तो विवाह तथा गौना दोनों में चौथी भेजी जाती है। परंतु . . कहते हैं कि उसने चौथ का चांद देखा है। काशी में लोग कहीं कहीं वधू के ससुराल रहने पर ही चौयी भेजी जाती.. इसे ढेला चौथ कहते हैं। है । यह चार दिनों के पूर्व या बाद भी भेजी जाती है। २. चतुर्थाश । चौथाई भाग। ३. मराठों का लगाया हुमा एक ३. मुसलमानों की एक प्रथा, जिसमें शादी के बाद लड़का अपनी प्रकार का कर जिसमें आमदनी या तहसील का चतुर्थांश ले पत्नी से मिलने के लिये ससुराल पाता है। इस प्रथा के - लिया जाता था। अनुसार मिलन चौथी आने पर ही होता है। . फसल चौथ -वि० चौथा । उ--चंपकलता चौथ दिन जान्यो मृगमद की वांट जिसमें जमींदार चौथाई लेता है और प्रसामी तीन सीर लगायो ।--सूर (शब्द०)। चौथाई। चौकुर । चौथपन -संज्ञा पुं० [सं० चौथा+पम ] मनुष्य के जीवन की चौथया"-संज्ञा पुं० [हिं० चौथाई] चौथाई। चतुर्थाश। . . चौथी अवस्था । बुढ़ाई । बुढ़ापा । ज-होइन विषय चौथैया--पंथा डी० छोटी नाव जिसमें बहुत थोड़ा बोझ विराग भवन बसत भा चौथपन । हग्य बहुत दुख लाग जनम लद सके। . गएउ हरि भगति बिनु |--मानस १।१४२ चौदंता'--वि० [सं० चतुर्दन्त] [विली चौवंती]१. चार दातोंवाला। . चौथा-वि० [सं० चतुर्थ, प्रा० उत्य] [वि.पी. चौथो] क्रम में जिसके चार दांत हो । जो पूरी वाढ़ को न पहुँचा हो । बचपन । चार के स्थान पर पहनेवाला। तीसरे के उपरांत का । और जवानी के बीच का । उभड़ती जवानी का।

जिसके पहले तीन और हों। विशेष--इस शब्द का व्यवहार घोड़े के बच्चों और बलों प्रादि । चौथा - संघा पुं० मृतक के घर होनेवाली एक रीति जिसमें संबंधी के लिये होता है। तथा विरादरी के लोग इकट्ठे होते है और दाह करनेवाले '२. अम्हड़। उग्र। उहड। को रुपया पगड़ी आदि देते हैं। यदि मृतक की विधवा स्त्री चौदंता...- संज्ञा पुं० स्याम देश के हाथी की एक जाति जिसे चार ... . . जीवित हो तो उसे धोती चद्दर आदि दी जाती है । जैसे,- . दांत होते हैं। .. कल तुम उनके चौथे में गए थे?. : चौदंती'--संवा नो [हिं० चौदंता ]. अल्हड़पन । उदंडता : चौथाई संज्ञा पुं० [हिं० चौथा+ई (प्रत्य०) चौथा भाग। धृष्टता । ढिठाई। चार सम भागों में से एक भाग । चतुर्थाश । चहारुम। चौटती विक ता . ...: . चौथि@t-संक्षा बी० [हिं० चौथ] दे० 'चौथ' । चौद+ वि० [हिं० चौदह दे० 'चौदह' । २०-चौद ब्रह्म. ... चौथियाई-संज्ञा पुं० हिं० चौथाई] दे॰ 'चौथाई। । रह्या भर पानी ।--रामानंद०, पृ०११।। चौथिहारी-वि०, संथा पुं० [चौथी+हार (प्रत्य॰)] चौथी . चौदश-संक्षा ली [सं० चतुर्दशी] दे० चौदस' । . .. . लानेवाला। चौदस-संज्ञा स्त्री० [सं० चतुर्दशी, प्रा० उद्दसि ] वह तिथि, जो चौथिया-संज्ञा पुं० [हिं० चौथा] १. वह ज्वर जो प्रति चौथे किसी पक्ष में चौदहवें दिन होती है । चतुर्दशी । उ०-फागुन . दिन पाए। " . . . . बदि चौदस को.शुभ दिन अरु रविवार सुहायो । नखत उत्तरा क्रि०प्र०-पाना । . पाप विचार घो काल कंस को आयो।—सूर (शब्द०)। .