पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५१९

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- चौपई १५९८ चोदसि+-वि० [हिं० चौदस] क्रम में चौदस को पड़नेवाला। जडाक टिकड़ी लगी होती है। २. कान की वह बाली जिसमें दे० 'चौदस'। उ०--कीन्ह परगना मरदन, श्री सखि दीन्ह मोती के चार दाने लगे हों। ... अन्हान | पनि में चार जो चौदसि, रूप गएउ छवि भान। चौदायनि-संहा पुं० [सं०] एक गोत्र प्रवर्तक ऋपि का नाम । -जायसी ग्रं. (गुप्त), पृ० ३४३ । चौदौना, चौदीवा-वि० [हिं० चौदावा ] दे० 'चौदावाँ' । . चौदसी -संश श्री० [हिं० चौदस] १. चतुर्दशी । २. पूणिमा चौधर-क्रि० वि० [हिं० चौ+धर ] चारों और । चारों तरफ । (मुसलमान पूनम को चौदहवीं कहते हैं)। उ०-रचा दी सन जल्वे का खशी सू', के चौधर चौंक - मुहा०-चौदसी का चाव- (१) पूर्ण कलाभों से उदित होने- मोतियां सू" संवारे । -दक्खिनी०, पृ०७५॥ वाला चाँद । (२) बहत सुदर व्यक्ति (ला०)। चौधर-संक्षा पुं० [देश॰] घोड़ों की एक जाति । उ० -ऐराकी ... चौदह --वि० [ सं० चतुर्दशा प्रा०, चउद्दस, अप० चउद्दह.] कक्षी सबज सुरपा समद सुरंग । वादामी अबलप बन, चौधर .. जो गिनती में दस और चार हो । जो दस से चार नुकर पिलंग। -प० रासो, पृ० १३८ । -... अधिक हो। चौधराई-संशा सी० [हिं० चौधरी] १. चौधरी का काम । २. .... चौदह संक पु० दस और चार के जोड़ की संख्या जो मंकों में इस चौधरी का पद । प्रकार लिखी जाती है-१४ । चौधरात - संशा स्त्री० [हिं० चौधरी] दे० 'चौधराना' । -..महा.-चौदह विद्या, चौदह भुवन, चौदह रत्न-दे० 'विद्या', चौधराना-मंधा पुं० [हिं० चौधरी] चौधरी का काम। २. चौधरी • भवन' और 'रत्न'। का पद । ३. वह जो चौधरी को उसके कामों के बदले - यो०-चौदह खंड-चौदह भुवन । उ०-चौदह खंड बर्स जाके मिले । ४. कुनबियों का मुहल्ला या टोला। ...:.:: मुख, सबको करत अहारा हो। —कबीर श०, भा०२, चौघरानी- श्री० [हिं० चौधरी] चौधरी की स्त्री। -.. पृ० १४ । चौदह चंदा-चौदह विद्याओं का प्रकाश । उ०- ', '.. चौसठ दीवा जोय के, चौदह चंदा माहि। तेहिं घर किसका त चौधरी--संज्ञा पुं० [सं० चतुर (-तकिया, मसनद)+घर (=धरने. वाला)] १. किसी जाति, समाज या मंडली का मुखिया ... चौदना, जेहिं घर सतगुरु नाहि । - कबीर सा० सं० भा०१, जिसके निर्णय को उस जाति, समाज या मंडली के लोग "पृ०१७। चौदह ठहर-चौदह लोक । उ०-बाखरि एक मानते हैं। प्रधान । उ० ---मनै रघुराज कारपण्य परणय विधाते कीन्हा चौदह ठहर पाठ सो लीन्हा ।-कवीर बी०, चौधरी हैं जग के विकार जेते सर्व सरदार है।--(शब्द०)। पृ. १२ । २. कुनबी या कुर्मी नामक जाति । चौदहवाँ-वि० [हिं० चे दह+वा (प्रत्य॰)] जिसका स्थान तेरहर्षे विशेष-कुछ लोग इस शब्द की व्युत्पत्ति 'चतुधुरीण' शब्द से 1. स्वान के उपरांत हो । जिसके पहले तेरह और हों। ... बतलाते हैं। चौदहवीं-मंचा श्री० [हिं० चौदह-+वीं=( प्रत्य०) ) मुसलमानों चौधारी"g+-संवा सी० [हिं० चौ (=चार)+धारा] वह कपड़ा के अनुसार परिंगमा की तिथि। जिसमें पाढ़ी और बेड़ी धारियाँ बनी हों। चारखाना । उ०- ' मुहा-चौदहवीं का चांद =(१) पनम का चांद । (२) पूरे पेमया डोरिया प्रौ चौधारी । साम, सेता पीयर हरियारी । .... चाँद जैसा सुदर व्यक्ति । जायसी (सन्द०)। चौदांत -संवा पुं० [हिं० चौ (चार)+दौतदो हाथियों की , चौधारी२-वि० [देश०] चौपहलू । उ०-दोनों चरणों का इकसार " . 'लड़ाई । हाथियों की मुठभेड़ । उ०-पीलहि पील देखावा भयो चौधारी (चौपहलू) चूरा. घुघरू पोर नुपूर ।-पोद्दार अभि० " दोहू चौदाँत । राजा चहै बुर्द भा शाह चहै शह माता- ग्रं०, पृ. १६३ । -:: जायसी (शब्द॰) । , चौना --संज्ञा पुं० [पुं० च्यवन] कूएं पर का वह ढालुवां स्थान जहाँ बादादा-वि० [हिं० चौ( चार)+दांव ] यह खेल (विशेषतः . खेत सींचनेवाले ठेकुली या चरस प्रादि से पानी निकालकर .:. सोरही या इसी प्रकार का और जूए का खेल ) जिसमें चार गिराते हैं। चीकर । लिलारी। - दांव हों। वह तेल जिसमें चार दाँद लग सके। चौनावा-वि० [हिं० चौ+नाय (वि० रेखा)] [ लौ चौनावी ] चौदा-संधा पुं० [हि. चौना दे० 'चौना'। ( तलवार आदि का फस ) जिसपर चार नांवें बनी हों। चादाल -वि० [हिं० 'दह ] दे॰ 'चौदह' । उ०-जब वरस - जिसमें गड्. बने हों। ..... चौदा मने पो पाया। इत्म होर हिकमत हुनर सब पाया । -दक्खिनी०, पृ० ३६३ ! चौप-संथा पुं० [हिं० चोप] दे० 'चोप'। चौपई-संघा स्त्री० [सं० चतुष्पदी] एक छंद का नाम जिसके प्रत्येक चादानिया-संवा बहि . चौदानी] दे० 'चौदानी'। पादानी-संचाबी० [हिं० ची (-चार)+दाना+ई. (प्रत्य०)] चरण में १५ मात्राएं होती हैं और अंत में गुरु लघु होते हैं। पोने की १. एक प्रकार की वाली जिसमें चार पत्तियों की सोने की जैसे,--राम रमापति तुम मम देव । नहिं प्रभु होत तुम्हारी चौदानिया- सत्र . ३-६४ :